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Fact Files With Anurag: मानसून भारत को कैसे बनाएगा “सोने की चिड़िया”?

बारिश के सामान्य होने का मतलब है अर्थव्यवस्था में नई उम्मीदों का पैदा होना. सामान्य बारिश मतलब खेतों में लहलहाती फसलें, फसल बिकने से किसानों की कमाई और उस कमाई का बाजार में खर्च होना.

Updated on: 05 Jul 2022, 06:08 PM

नई दिल्ली:

मानसूनी बारिश का मतलब आपके लिए क्या है? ट्रैफिक में फसना या फिर लांग ड्राइव एंजाय करना, दफ्तर में बेमन से काम करना या घर की बालकनी में पकोड़े और चाय का लुत्फ उठाना? आपकी जिंदगी में बारिश के मायने इनमें से कुछ भी हो सकते हैं. लेकिन देश और दुनिया के लिए मानसून का मतलब इससे कहीं ज्यादा है. हमारे देश में मानसून को ही असली वित्त मंत्री कहा जाता है. क्यों है मानसून हमारी अर्थव्यवस्था की लाइफलाइन Fact Files With Anurag में बात मानसून के उसी पहलू की. 

99% बारिश होने के आसार 

शुरूआत अच्छी खबर के साथ. मौसम विभाग के मुताबिक इस साल मानसून ‘सामान्य’ रहेगा. जून से सितंबर के दौरान औसत की तुलना में 99% बारिश होने के आसार है. प्राइवेट एजेंसी ‘स्काईमेट’ ने भी इस साल भारत में ‘सामान्य’ मानसून की भविष्यवाणी की है. स्काईमेट को सामान्य बारिश की 65% उम्मीद है. मौसम विज्ञान की भाषा में समझें तो ये सब कुछ तय होता है. 'ला नीना' और 'अल नीनो' से. ला नीना स्पैनिश शब्द है, जिसका मतलब है छोटी बच्ची. इसका असर दिखने पर ठंड और बारिश बढ़ जाती है. अल नीनो भी मौसम पर तगड़ा असर डालती है, लेकिन ला नीना से ठीक उलट. राहत की बात ये है कि ये दोनों ही हालात 3 से 7 साल में दिखते हैं. 

किसान एफएमसीजी सेक्टर में जान फूंकता है

वैसे बारिश के सामान्य होने का मतलब है अर्थव्यवस्था में नई उम्मीदों का पैदा होना. सामान्य बारिश मतलब खेतों में लहलहाती फसलें, फसल बिकने से किसानों की कमाई और उस कमाई का बाजार में खर्च होना. किसान की जेब में पैसा पहुंचता है तो बाइक्स से लेकर ट्रैक्टर की बिक्री बढ़ती है. वहीं किसान एफएमसीजी सेक्टर में जान फूंकता है. एफएमसीजी मतलब, रोजमर्रा की तमाम चीजें जैसे टूथपेस्ट, साबुन, डियो, कोल्ड ड्रिंक! भारत में एमएमसीजी सेक्टर टोटल वर्कफोर्स में 20 फीसदी की हिस्सेदारी रखता है! ये भारत की इकनॉमी का चौथा सबसे बड़ा सेक्टर है! जो 14.7 फीसदी की रफ्तार से बढ़ते हुए 2025 तक करीब 220 बिलियन डॉलर का होगा. इतना ही नहीं, भारत में खरीदे जाने वाले सोने में भी 60 फीसदी हिस्सेदारी ग्रामीण इलाकों की है. आपको जानकर शायद हैरानी हो कि हमारे यहां हर साल 800 से 850 टन गोल्ड की खपत होती है! यानी मानसून सामान्य हो तो हमारे गांव कस्बों में 500 टन सोना खरीद लिया जाता है. 500 टन! एक टन मतलब करीब 1000 किलो! आज 10 ग्राम सोना 50 हजार रूपए के पार है! लेकिन अगर मानसून सामान्य से कम रहता है तो देश के दिग्गज पॉलिसी मेकर्स की मुश्किलें बढ़ जाती हैं. 

मॉनसून का खराब होना यानी फसलों का बर्बाद होना

अलनीनो के चलते साल 2015 में भारत में बारिश बेहद कम हुई थी. मानसून सामान्य से करीब 15 फीसदी कम रहा था नतीजा देश के करीब 250 जिलों में सूखे जैसे हालात, जिसका सीधा असर करीब 50 करोड़ आबादी पर. गांवों में सिचाई के लिए पानी की किल्लत और शहरों में पीने के पानी का संकट! भारत जैसे देश में मानसून का सामान्य से कम होना मुश्किलें कई गुना बढ़ा देता है. क्योकिं दुनिया की करीब 18 फीसदी आबादी भारत में रहती है जबकि दुनिया का केवल 4 फीसदी पीने लायक पानी ही हम लोगों के नसीब में है. जो है वो भी साफ मिल जाए तो आप किस्मत वाले हैं! क्योंकि हमारे ही मुल्क में अकेले गंदे पानी के चलते होने वाली बीमारियों से सालाना लाखों की लोगों की मौत होती है. तब जबकि अदालतें साफ पानी को नागरिकों का हक बता चुकी हैं! मॉनसून का खराब होना यानी फसलों का बर्बाद होना. कम पैदावार के चलते अनाज, फल-सब्जी और दूध जैसी रोजमर्रा की चीजों के दाम बढ़ना. यानी 'डायन' महंगाई की मार पड़ना. नतीजा आपकी परचेजिंग पावर का घटना और आपकी जेब में कम पैसे बचना. बचत और निवेश की क्षमता का भी घटना! एफएमसीजी, कंज्यूमर ड्यूरेबल, टू-व्हीलर्स, ट्रैक्टर और गोल्ड की डिमांड में कमी आ जाती है! असर सिर्फ बिक्री पर नहीं बल्कि शेयर मार्केट पर भी दिखता है. 

सबसे ज्यादा कहर बाढ़ ही बरपाती है

मानसून का औसत से ज़्यादा बरसना भी लोगों की मुश्किलें बढ़ाता है. पैडी की फसल के साथ साथ खरीफ सीजन में मिलने वाली सब्जियां महंगी हो जाती हैं. अरहर, उड़द, मूंग, बाजरा, मक्का जैसे फसलों पर भी इसका बुरा असर दिखता है. ज्यादा बारिश से आई बाढ़ आर्थिक तौर भारी नुकसान पहुंचाती है. हाल ही में सरकार ने संसद में बताया कि 1953 से लेकर 2017 तक बारिश और बाढ़ की वजह से देश को 3 लाख 65 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ! यूएन की रिपोर्ट की मानें तो पिछले 20 सालों में बाढ़ के चलते भारत में करीब 55 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ! द एशियन डेवलपमेंट बैंक के मुताबिक भारत में नेचुरल कैलेमिटिज़ में सबसे ज्यादा कहर बाढ़ ही बरपाती है. प्राकृतिक आपदाओं के कुल नुकसान का 50 फीसदी  केवल बाढ़ से होता है! यानी मानसून का असामान्य होना! नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक़ भारी बारिश के चलते 2017 से 2020 के बीच 4 सालों में भारी बारिश के चलते 432 मौतें हुईं यानी औसतन 108 मौतें हर साल! या कहें हर तीसरे दिन एक शख्स की मौत अकेले बाढ़ के चलते! देश के बड़े हिस्से में बाढ़ का खौफ दिखता है! मुल्क के 90 से 100 जिले ऐसे हैं जहां हर साल बाढ़ आना तय है. असम के 30, बिहार के 28, यूपी के 11, वेस्ट बंगाल के 15, ओडिशा के 8, आंध्र प्रदेश के 4 से 7, केरल के 4 और गुजरात के 5 जिले बाढ़ की दहशत में जीने को मजबूर हैं! मौजूदा वक्त की बात करें तो अभी असम के 75% जिले बाढ़ की चपेट में हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 18 लाख से ज्यादा लोग बाढ़ से प्रभावित हैं! और ढाई लाख से ज्यादा लोग रिलीफ कैम्प में रहने को मजबूर! 

सिर्फ 8% ठीक ढंग से पानी उपयोग कर पाते हैं

इस बीच दुनियाभर के जानकार बारिश के पानी के बेहतर इस्तेमाल पर आवाज उठाते रहे हैं. नेशनल वाटर कमीशन के मुताबिक इंडिया में औसतन 4000 बिलियन क्यूबिक मीटर से भी ज्यादा का बारिश का पानी मिलता है लेकिन अफसोस हम उसका सिर्फ 8% ठीक ढंग से इस्तेमाल कर पाते हैं! सिर्फ 8 फीसद! ऐसे में सवाल बारिश के पानी के बेहतर इस्तेमाल पर भी है. वैसे जब भी ये सवाल उठता है नदियों को जोड़ने के अटल जी के सुझाव का जिक्र भी जरूर होता है! नेशनल वाटर डेवलपमेंट एजेंसी ने 30 लिंक आइडेंटिफाई किए हैं, जिनमें 16 पेनीनूजलर कम्पोनेंट के तहत और 14 हिमालयन कम्पोनेंट के तहत हैं! सरकार के मुताबिक इस पर कुल खर्च करीब 5 लाख 60 हजार करोड़ का होगा! हालांकि यह बस अनुमान है.

50 फीसदी आबादी पानी की किल्लत का सामना कर रही 

नीति आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत की लगभग 50 फीसदी आबादी पानी की किल्लत का सामना करती है! करीब 60 करोड़ से ज्यादा लोग! ये दुनिया के दर्जनों देशों की कुल आबादी से कहीं ज्यादा है. इस हालात की बड़ी वजह भारत में वाटर डिस्ट्रीब्यूशन का कमजोर इंफ्रास्ट्रचर! ये तब है जबकि मनरेगा में 10 साल में 2 लाख करोड़ रूपए वाटर स्टोरेज पर खर्च हुए लेकिन हालात मानों आज भी जस के तस! लगता है बाढ़ या सूखा भ्रष्ट अफसरशाही के लिए किसी पर्व से कम नहीं!सेंट्रल वाटर कमीशन के मुताबिक तालाब, रूफ टॉप वाटर कंटेनर और रिवर्स बोरवेल ड्रेनिंग के जरिये 20 से 25% रेन वाटर को बचाया जा सकता है, जो हमारे देश में पानी की समस्या को 20 से 30 प्रतिशत तक कम कर सकता है! खेती के लिहाज से भी ये वक्त की जरूरत है क्योंकि आज भी खेती का बड़ा हिस्सा इंद्रदेव की मेहरबानी पर निर्भर है! उम्मीद है अब आप भी बारिश को सिर्फ ट्रैफिक जाम या बालकनी में चाय-पकोड़े तक सीमित नहीं रखेंगे! इससे जुड़े इन तमाम मुद्दों को लोगों से साझा करेंगे और हुक्मरानों से सवाल करेंगे बेहतर वॉटर स्टोरेज पर, क्योंकि सवाल आने वाले कल का है. सवाल आपकी-हमारी जिंदगी का है.

इसी मुद्दे पर News Nation Digital पर देखिए - Fact Files With Anurag इस बुधवार रात 8 बजे. आप इस मुद्दे पर अपनी राय भी दे सकते हैं. Email कीजिए -factfileswithanurag@newsnation.in