डोनाल्ड ट्रंप ने यूं ही नहीं छेड़ी कश्मीर पर मध्यस्थता की बात, इस खतरनाक प्लान पर काम कर रहा अमेरिका
अमेरिका के विदेश विभाग से लेकर खुद व्हाइट हाउस ने बयान का खंडन किया हो, लेकिन इस बयान ने अमेरिका के खतरनाक इरादों की पोल खोलकर रख दी है.
नई दिल्ली:
भले ही भारत से लेकर अमेरिका तक डोनाल्ड ट्रंप के बयान की तीखी आलोचना हो रही हो, अमेरिका के विदेश विभाग से लेकर खुद व्हाइट हाउस ने बयान का खंडन किया हो, लेकिन इस बयान ने अमेरिका के खतरनाक इरादों की पोल खोलकर रख दी है. डोनाल्ड ट्रंप के पूर्ववर्ती राष्ट्रपतियों ने पहले अफगानिस्तान और उसके बाद इराक के अलावा अन्य खाड़ी देशों में युद्ध की शुरुआत की पर ट्रंप इन देशों से अपने सैनिकों की वापसी चाहते हैं. राष्ट्रपति बनने से पहले डोनाल्ड ट्रंप ने जनता से यह वादा भी किया था कि दुनिया भर में जहां-जहां अमेरिकी सैनिक तैनात हैं, वो उन्हें वापस बुलाएंगे.
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इसी नीति पर काम करते हुए डोनाल्ड ट्रंप ने सीरिया से सैनिकों को वापस बुला लिया है. अब वह अफगानिस्तान से सैनिकों की वापसी चाहते हैं, जहां वहां 18 साल से तैनात हैं. पाकिस्तान की मदद के बिना यह काम अमेरिका के लिए आसान नहीं होगा, क्योंकि अफगानिस्तान में तालिबान को बनाने वाला पाकिस्तान ही है. जाहिर है कि इमरान खान को भी इसके लिये धन भी चाहिए.
कुवैत में तालिबान से कई दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन कुछ मुद्दों पर सहमति नहीं बनी है. अमेरिका पहले कोशिश कर रहा था कि उसके सैनिकों की वापसी के बाद भारत अफगानिस्तान में सैनिक सहयोग करे, लेकिन भारत ने इससे इनकार कर दिया, जिससे ट्रंप ने अप्रसन्न होकर एक बयान में व्यंग्य किया था कि भारत अफगानिस्तान में बड़ी मदद को अंजाम दे रहा है. भारत वहां एक लाइब्रेरी खोलने जा रहा है.
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भारत नहीं चाहता कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिक चले जाएं. ऐसा करने से सत्ता तालिबान के हाथ में चली जाएगी. भारत ने अफगानिस्तान में 5 अरब डॉलर का निवेश किया है और भारत का विरोधी होने के नाते तालिबान किसी भी प्रोजेक्ट को पूरा नहीं होने देगा. तालिबान के आने से भारत को कश्मीर में आतंकवाद बढ़ने का भी खतरा है.
हालांकि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस बात पर अड़े हैं कि वह अपने सैनिकों को वापस बुलाएंगे और इसके लिए उन्हें पाकिस्तान का सहयोग चाहिए. अमेरिका का पेंटागन और कांग्रेस भारत के साथ है लेकिन ट्रंप उलजुलूल बयान देकर दोनों देशों के रिश्तों में खटास पैदा कर रहे हैं. भारत के लिए अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों का जाना और तालिबान की वापसी चिंताजनक है.
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बिना कीमत के पाकिस्तान ने नहीं की मदद
इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान के शासनाध्यक्ष ज़िया उल हक ने अमेरिका से 25 अरब डॉलर और F16 विमान लिया था. उद्देश्य था मजबूत सोवियत संघ से लड़ने के लिए तालिबान को बनाना. वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले के बाद अल-कायदा के खिलाफ कार्रवाई के लिए राष्ट्रपति मुशर्रफ ने 34 अरब डॉलर लिए थे, जबकि पूरी दुनिया जानती है कि अल-कायदा के सरगना ओसामा-बिन-लादेन को पाकिस्तान ने ही पनाह दी थी.
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