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कोविड के बाद ऑमिक्रॉन के प्रत्यक्ष-परोक्ष दुष्प्रभाव बन सकते हैं चुनौती  

वैश्विक महामारी कोविड-19 और इसकी दूसरी लहर के बाद ऑमिक्रॉन वायरस के मंडरा रहे खतरों ने स्वास्थ्य लाभ की पाचन क्रियाओं से लेकर मनोवैज्ञानिक स्तर पर कई चुनौतियां पैदा की हैं.

Updated on: 29 Dec 2021, 11:13 PM

नई दिल्ली:

उमाकांत लखेड़ा, वरिष्ठ पत्रकार : वैश्विक महामारी कोविड-19 और इसकी दूसरी लहर के बाद ऑमिक्रॉन वायरस के मंडरा रहे खतरों ने स्वास्थ्य लाभ की पाचन क्रियाओं से लेकर मनोवैज्ञानिक स्तर पर कई चुनौतियां पैदा की हैं. सर्जन और लेखक डॉक्टर महेश भट्ट कहते हैं, कोविड महामारी ने आम लोगों के जीवन पर प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों ही तरह के दुष्प्रभाव डाले हैं जाहिर है इन हालात से उबरने में हर एक प्रभावित व्यक्ति पर कुछ ना कुछ असर ज़रूर डाला है.  देहरादून स्थित डॉक्टर भट्ट कहते हैं कि जिन लोगों पर इस वायरस का असर नहीं पड़ा और किस्मत से वे इसकी चपेट में सीधे तौर पर नहीं आए हों, उनके जीवन पर भी वायरस का गहरा मनोवैज्ञानिक असर हुआ है| जैसा कि परिवार, पास पड़ोस और ऑफिस या मित्रों को हमेशा के लिए खोने का गम कइयों के लिए बड़ा सदमा रहा| 
 इस तरह के नाजुक हालत मे व्यक्ति के जाने के मनोवैज्ञानिक दुष्प्रभाव ने बड़ी तादाद में लोगों को झकझोर दिया था| उनके सामान्य जीवन पर भी वायरस का गहरा मनोवैज्ञानिक  असर हुआ है| महीनों तक भी लोग उबर नहीं  पाए| 
 
 डॉक्टर भट्ट अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पुस्तक ‘स्प्रिचुअल हेल्थ’ के भी लेखक हैं| उन्होंने माना कि कोविड से निजात पाकर उबरे व्यक्तियों पर सबसे ज़्यादा असर न्यूरोलॉजिकल समस्याओं के कारण भी पड़ा है| 
 जैसे कि अन्य दुश्वारियों के साथ पुरानी नई घटनाओं और चीजों को भूलने की आदतों का गहराना और मस्तिष्क में एकाएक शून्यता का अहसास का होना| 
डॉक्टर भट्ट ने अपनी आगामी पुस्तक में भावनात्मक चुनौतियों, नींद ना आना, घबराहट के साथ ही बड़े पैमाने पर नौकरियाँ जाने और आर्थिक समस्याओं के कारण घर-परिवार और समाज पर पड़ रहे दीर्घकालीन असर का कोविड और  ऑमिक्रॉन वायरस की समानताओं को भी रेखांकित किया है| उनकी नयी पुस्तक अगले साल के मध्य तक बाज़ार में आयेगी| 
 
 दूसरी ओर कोरोनावायरस का पाचनतंत्र प्रणाली पर गंभीर असर देखा गया है। सर्वविदित है कि कोरोनावायरस फेफड़ों को सबसे
ज्यादा संक्रमित करता है। लेकिन पाचनतंत्र प्रणाली भी कोरोनावायरस के संक्रमण से काफी प्रभावित होती है,"
यह कहना है डॉ अज़हर परवेज़ का जोकि गुड़गांव-स्थित मेदांता-मेडिसिटी अस्पताल में जी. आई. सर्जरी, जी. आई. आन्कोलॉजी ऐंड बरिएट्रिक सर्जरी, इन्स्टीट्यूट ऑफ़ डाइजेस्टिव ऐंड
हेपटो-बिलियरी साइंसेज़ विभाग में ऐसोसिएट डिरेक्टर के पद पर कार्यरत हैं।

डॉ अज़हर परवेज़ आगे बताते हैं कि कोरोनावायरस के संक्रमण की वजह से मिचली आना, उल्टी होना तथा डायरिया जैसी स्वास्थ्य
समस्याएं आती हैं। साथ ही लीवर एन्जाइम के अव्यवस्थित होने से लीवर प्रभावित होता है। लेकिन कोरोनावायरस की वजह से लीवर के पूर्णतः क्षतिग्रस्त होने की शिकायतें
नहीं आई हैं।

डॉ परवेज़ कुछ वैज्ञानिक विचारों पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं कि कोरोनावायरस द्वारा संक्रमित व्यक्ति में पाचनतंत्र प्रणाली
के लक्षण तथा श्वसनतंत्र प्रणाली के लक्षणों का रहना कोविड-19 रोग की उग्रता का संकेत नहीं है। कोरोनावायरस
द्वारा संक्रमित रोगी में वायरस मल के रास्ते निकलता है। "फ़ीको-ओरल (feco-oral)" माध्यम से अन्य व्यक्तियों को संक्रमित होने
का खतरा बना रहता है।

"फ़ीको-ओरल" माध्यम से तात्पर्य यह है कि पैथोजन (वायरस रोगाणु) जोकि वायरस-संक्रमित व्यक्ति के मल में मौजूद रहते हैं, एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के मुंह में
प्रवेश कर जाते हैं।

डॉ परवेज़ कहते हैं कि ऐसी रिपोर्ट आई है कि उदर गुहा (ऐब्डोमिनल केविटी) में एकत्रित द्रव्य से कोरोनावायरस के अलग होने से
स्वास्थ्यकर्मियों को पेट की सर्जरी या लेप्रोस्कोपिक सर्जरी करने के दौरान
जोखिमों से गुज़रना पड़ा।

अंततोगत्वा, डॉ परवेज़ कहते हैं कि कोरोनावायरस से लड़ाई हमारी अपनी खुद की लड़ाई है। हम अपनी मदद कर अपने परिवार, अपने समाज, समुदाय और देश की मदद कर सकते हैं।