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पाकिस्तान छोड़िए...पहले जो घर के अंदर 'जयचंद' मौजूद हैं उसकी पहचान कीजिए

जम्मू-कश्मीर के डिप्टी पुलिस सुपरिटेंडेंट देविंदर सिंह की गिरफ्तार इस बात की तस्दीक करती है. शनिवार को देविंदर सिंह श्रीनगर-जम्‍मू हाईवे पर गाड़ी में दो आतंकवादियों के साथ सफर करते हुए पकड़े गए.

Updated on: 15 Jan 2020, 04:31 PM

नई दिल्ली:

हिंदुस्तान के जिस्म को कई बार आतंकियों ने जख्म दिए. संसद पर हमला, मुंबई में हमला, पुलवामा हमला समेत कई ऐसे आतंकी हमले हुए जिससे पूरा देश हिल गया. कई बेगुनाहों की जिंदगी चली गई. सैकडों जवान शहीद हो गए. सवाल यह है कि आतंकी कैसे भारत के अंदर अपने खतरनाक मंसूबों को अंजाम दे पाते हैं. क्या हमारे घर के अंदर 'जयचंद' मौजूद हैं जो इनकी मदद कर रहे हैं?

जम्मू-कश्मीर के डिप्टी पुलिस सुपरिटेंडेंट देविंदर सिंह की गिरफ्तार इस बात की तस्दीक करती है. शनिवार को देविंदर सिंह श्रीनगर-जम्‍मू हाईवे पर गाड़ी में दो आतंकवादियों के साथ सफर करते हुए पकड़े गए. देविंदर सिंह के साथ हिजबुल मुजाहिदीन के दो आतंकी थे. ये वो देविंदर सिंह हैं जिन्हें बहादुरी के लिए राष्‍ट्रपति मेडल से सम्मानित किया जा चुका है. देविंदर सिंह आतंकियों को अपने साथ दिल्ली ला रहे थे. हालांकि देविंदर सिंह अपने बचाव में कह रहे हैं कि वो आतंकियों को सरेंडर कराने के लिए ले जा रहे थे. सवाल कि क्या बिना उच्चाधिकारियों को सूचना दिए बिना ऐसा किया जा सकता है. जवाब नहीं है. किसी भी अपराधी को सरेंडर कराने से पहले सिस्टम को सूचना देना जरूरी होता है.

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देविंदर सिंह वो मौका है जब हम अपने अंदर भेड़ की खाल में छुपे हुए भेड़ियों को खोजें. दविंदर सिंह का नाम पहली बार सामने नहीं आया है, इससे पहले दविंदर सिंह का नाम संसद हमले के दौरान भी आया था. अरुंधित रॉय की किताब 'द हैंगिंग ऑफ अफजल गुरु' में देविंदर सिंह का जिक्र है. इस किताब में लिखा हुआ है कि देविंदर सिंह ने अफजल गुरु को टॉर्चर करते हुए अपना काम करवाया. किताब के मुताबिक देविंदर सिंह संसद हमले से पहले जम्मू-कश्मीर के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप में थे और हमहामा में तैनात थे. उस दौरान उन्होंने अफजल गुरु को टॉर्चर किया और उससे आतंकी की मदद करायी. देविंदर सिंह ने संसद हमले में मारे गए मोहम्मद को अफजल के साथ दिल्ली भेजा. यहां अफजल की मदद से मोहम्मद को दिल्ली में मकान दिलाया. अरुंधित राय के किताब के मुताबिक देविंदर सिंह की संसद हमले की साजिश रचने के दौरान आतंकी मोहम्मद और अफजल से बातचीत भी होती थी.

देविंदर का नाम उस वक्त भी सामने आया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. यहां तक की इसपर कोई जांच भी नहीं बैठाई गई. अगर उस वक्त देविंदर सिंह पर जांच बैठाई गई होती तो शायद आतंक के कई राज खुल सकते थे. लेकिन ऐसा नहीं किया गया.

देविंदर सिंह का नाम तब भी सुर्खियों में आया था जब वो एसओजी में थे. 2001 में कश्मीर के बडगाम में उनकी पोस्टिंग थी. इस दौरान एसओजी के कस्टडी में लोगों की बड़े पैमाने में मौत हो रही थी. लोग इसके खिलाफ सड़कों पर उतरने लगे थे जिसके बाद एसओजी के डीएसपी के रूप में तैनात देविंद्र सिंह का ट्रांसफर कर दिया गया था.

देविंदर सिंह अकेले वो 'जयचंद' नहीं होंगे जो दहशतगर्दों को मदद की होगी, कई ऐसे 'जयचंद' होंगे जो सिस्टम के अंदर देशविरोधी गतिविधियों में शामिल होंगे. मुंबई हमले का दर्द कभी भी भुलाया नहीं जा सकता है. उसने आर्थिक राजधानी को वो जख्म दिया था जिसकी टीस आज भी उठती है. लश्कर-ए-तैयबा के 10 आतंकवादी जिसमें कसाब शामिल था उसने गोलीबारी से मुंबई को दहला दिया था. सवाल यहां भी उठता है कि आखिर इतने बड़े पैमानें में आतंकियों को मुंबई में घुसने में किसने मदद की. मुंबई में जहां- जहां हमला हुआ उसकी रेकी किसने की? कोई तो होगा ना जो रेकी करके आतंकियों को बताया होगा. कोई तो होगा ना जिसने आतंकियों को पनाह दी होगी. लेकिन इस पर भी कोई जांच नहीं हुई? जमात उद दावा के प्रमुख हाफिज सईद और पाकिस्तान को दोषी बता कर सरकार चुप हो गई. अंदर के 'काले भेडियों' की जांच नहीं हुई जिसने इतने बड़े साजिश में साथ दिया.

2 जनवरी 2016 को पठानकोट हमले ने कई सवाल खड़े कर दिए थे. जम्मू-कश्मीर के बार पहली बार किसी सैन्य प्रतिष्ठान पर इतना बड़ा हमला हुआ था. पठानकोट हमले से पहले आतंकियों की घुसपैठ को लेकर 29 दिसंबर को एक अलर्ट जारी किया गया था. इसके बावजूद हमला हुआ. बताया जाता है कि आतंकी भारतीय सीमा के अंदर 30-31 दिसंबर को आ. सीमा सुरक्षा बल की चौकियों की इसकी सूचना भी दी गई थी. लेकिन बावजूद इसके घुसपैठ को नहीं रोका जा सका. इससे यह साबित होता है कि सीमा सुरक्षा क्षेत्र में बड़ी खामियां हैं.

जांच में यह भी सामने आया कि पठानकोट हमले में ड्रग तस्करों की भूमिका भी थी. उन्होंने आतंकियों की मदद की. सीमावर्ती जिलों में ड्रग तस्करों का गठजोड़ स्थानीय पुलिस अधिकारी और कई राजनेताओं के साथ है. ये पता होने के बावजूद भी कोई जांच नहीं होती है. यह बेहद ही खतरनाक होता है जब कोई बड़ा हमला देश दर्द दे जाता है.ॉ

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यहीं नहीं 2019 में पुलवामा हमला हुआ. इस हमले ने पूरे देश को हिला कर रख दिया. लोग सोच ही नहीं पा रहे थे कि इतना बड़ा हमला कैसे हो सकता है. पुलवामा में 2500 जवानों के काफिले में से एक बस को आतंकी ने 350 किलो से भरी कार से टक्कर मारी और इसमें सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए हैं. इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक कहां से आया. पुलवामा हमले से पहले इनपुट मिला था कि सेना के काफिले पर हमला हो सकता है. लेकिन इसके बावजूद उस रास्ते पर काफिला भेजा गया. इतनी भारी मात्रा में विस्फोटक एक दिन में सीमा के अंदर आ नहीं सकता है. सवाल कई है. लेकिन इसपर भी कोई जांच नहीं हुई कि इस हमले में अंदर का वो 'जयचंद' कौन है?

भारत के अंदर स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) का नाम आए दिन आतंकी गतिविधियों में सामने आता रहा है. इस पर हमेशा नजर रखी जाती है. सिमी' पर पहला प्रतिबंध 27 सितंबर वर्ष 2001 में अमरीका में 9/11 को हुए हमलों के बाद लगाया गया था. इसके बाद कई बार इस प्रतिबंध हटा और फिर लगाया गया. सिमी में कई ऐसे देशद्रोही मौजूद हैं जो लगातार भारत को नुकसान पहुंचाने के लिए काम कर रहे हैं. स्लीपर सेल अलग-अलग हिस्सों में काम कर रहे हैं, उन स्लिपर सेल की मदद सिस्टम के अंदर रहकर कौन कर रहा है इसकी जांच होनी बेहद जरूरी है.

हाल में पी चिदंबरम ने कहा कि बीजेपी सरकार ने राष्ट्रीय गुप्तचर ग्रिड' (नैटग्रिड) और राष्ट्रीय आतंकवाद निरोधक केंद्र (एनसीटीसी) पर पिछले पांच वर्षों में कोई कदम क्यों नहीं उठाया? ये दोनों महत्वपूर्ण कदम थे जिससे आतंकवाद को रोकने में मदद मिलती. लेकिन इसपर बीजेपी सरकार ने कोई काम नहीं किया.

सवाल ये है कि आखिर मोदी सरकार नैटग्रिड और एनसीटीसी को लेकर कोई कदम क्यों नहीं उठाए? देश के प्रधानमंत्री का कहना है कि आतंकवाद को खत्म करने के लिए बड़े पैमाने पर काम हो रहा है. लेकिन क्या उन काम में देश के अंदर मौजूद 'दुश्मन' को खोजना शामिल है. वो दुश्मन जो सिस्टम के अंदर रहकर सिस्टम को खोखला कर रहे हैं.

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गुजरात के 'हरामी नाला' में आए दिन नौकाएं बरामद हो रही है. सूचना है कि इसके जरिए आतंकवादी भारत में दाखिल हो सकते हैं. मुंबई हमले के बाद वहां के नौकाओं में जीपीएस लगा दिया गया था. गुजरात के हरामी नाला में आतंकवादियों के घुसने की सूचना पर चौकसी ज्यादा कर दी गई है. लेकिन क्या ये काफी है. शायद नहीं क्योंकि सिस्टम के कई छेद हैं जिसे ठीक करना जरूरी है. सिस्टम के अंदर देविंदर सिंह पहला इंसान नहीं होगा जो 'जयचंद' का काम कर रहा है. बल्कि और भी कई लोग शामिल होंगे जिनका तार दहशतगर्दों के साथ जुड़ा होगा. देविंदर सिंह ने एक मौका दिया है कि हम बाहरी दुश्मन के साथ-साथ अपने घर में मौजूद भेड़ की खाल में छुपे 'जयचंदोंट को खोजे और उनका खात्मा करें.

फिलहाल तो देविंदर सिंह से कड़ी पूछताछ हो रही है, अगर देविंदर सिंह का राज खुलता है तो फिर इनके जरिए कई और पर्दानशीं बे-पर्दा होंगे.