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कश्मीरियत को खत्म करने का खतरनाक मंसूबा!

क्या आतंकियों का मंसूबा कश्मीर में कश्मीरियत को खत्म करने का है। वो कश्मीरियत, जो पूरी कश्मीर घाटी के जर्रे जर्रे में बसा है। क्योंकि टारगेट किलिंग के जरिए आतंकी उन्हीं कश्मीरियों को टारगेट कर रहे हैं, जिन्होंने कश्मीर को बनाने और संवारने में अपनी पू

Updated on: 11 Oct 2021, 10:40 PM

नई दिल्ली:

क्या आतंकियों का मंसूबा कश्मीर में कश्मीरियत को खत्म करने का है। वो कश्मीरियत, जो पूरी कश्मीर घाटी के जर्रे जर्रे में बसा है। क्योंकि टारगेट किलिंग के जरिए आतंकी उन्हीं कश्मीरियों को टारगेट कर रहे हैं, जिन्होंने कश्मीर को बनाने और संवारने में अपनी पूरी जिंदगी बिता दी। आतंकी उन कश्मीरी पंडितों और सिखों की टारगेट किलिंग कर रहे हैं, जिनकी पहचान कश्मीर से है और कश्मीर की पहचान इन कश्मीरी पंडितों से। या फिर आतंकी न्यू कश्मीर की उस तस्वीर से बौखला उठे हैं, जहां उन्हें 29 साल बाद श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराता दिखाई दे रहा है। या फिर आतंकियों की ये बौखलाहट श्रीनगर की सड़कों से गुजरती जन्माष्टमी की झांकी और इस झांकी में जय श्री कृष्ण की गूंज से हो रही है। या फिर आतंकियों को नए कश्मीर की ये नई तस्वीर पसंद नहीं आ रही, जिसमें कश्मीरी युवा फैशन शो के रैंप पर अपनी संस्कृति का रंग बिखेर रहे हैं। या फिर आतंकी बदलते कश्मीर की उस बदलती तस्वीर को देखना ही नहीं चाहते। जिस नए कश्मीर में कश्मीरी लड़कियां खुले आसमान के नीचे आजादी से क्रिकेट खेल रही हैं। अपने सपनों को जी रही हैं।

कश्मीर में आतंक का नया और लेटेस्ट ट्रेंड यहां के अल्पसंख्यकों के खिलाफ दिख रहा है। जिसमें आतंकी कश्मीरी पंडितों को निशाना बना रहे हैं। कश्मीर में रहने वाले सिख समुदाय से जुड़े लोगों की आतंकी हत्या कर रहे हैं। और कश्मीर में बाहर से आए कामगार हिंदुओं को गोलियों को भून रहे हैं। तो क्या आतंकी टेरर का हाइब्रिड मॉड्यूल अपनाकर 31 साल पुराने उसी काले इतिहास को कश्मीर घाटी में दोहराने की फिराक में है, जिस इतिहास को कश्मीर खुद याद करना नहीं चाहता। क्योंकि आज कश्मीर में कश्मीरी पंडितों, अल्पसंख्यकों हिंदुओं और सिखों के खिलाफ जैसी दहशत फैलाई जा रही है। ठीक वैसी ही दहशत आज से 31 साल पहले फैलाई गई थी।

जनवरी 1990 तक कश्मीर घाटी में कुल 75,343 कश्मीरी पंडित परिवार थे। लेकिन 1990 से  1992 के बीच 70,000 से ज्यादा कश्मीरी पंडित परिवारों ने घाटी को छोड़ दिया। एक अनुमान है कि आतंकियों ने 1990 से 2011 के बीच 399 कश्मीरी पंडितों की हत्या की। पिछले 30 साल के दौरान घाटी में बमुश्किल 800 हिंदू परिवार ही बाकी रह गए थे। पीएम मोदी ने कश्मीरी पंडितों को कश्मीर में दोबारा बसाने की योजना लागू की। पिछले महीने ही जम्मू कश्मीर के एलजी मनोज सिन्हा ने कश्मीरी पंडितों की संपत्ति को बचाने के लिए ऑनलाइन पोर्टल लॉन्च किया। पीएम पैकेज के तहत घोषित कुल 6,000 सरकारी पदों में से करीब 3,800 कश्मीरी प्रवासियों को सरकारी रोजगार प्रदान करके सीधे पुनर्वास किया गया है। जम्मू और कश्मीर सरकार में कार्यरत 6,000 कश्मीरी प्रवासियों को आवास दिलाने के लिए 920 करोड़ की योजना से मकान तैयार किए जा रहे हैं। यही बात आतंकियों को शूल की तरह चुभ रही है।

अनंतनाग में मौजूद कश्मीरी पंडित कॉलोनी में भी लोग गुस्से में हैं। गुस्सा आतंक और आतंक को डायरेक्ट इन डायरेक्ट तरीके से समर्थन करने वाले उन सियासतदानों से भी है, जो आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई पर पहले आंसू बहाते हैं और फिर निहत्थे सिविलियन की किलिंग्स पर सवाल सरकार पर उठाते हैं। केन्द्र की मोदी सरकार का संकल्प है कि वो कश्मीर में कश्मीरी पंडितों का हक दिलाकर रहेगी और आतंकी इस कोशिश में हैं कि किसी तरह हाइब्रिड किलिंग के जरिए वो कश्मीर में दहशत फैला सके। ताकि जो कश्मीरी पंडित कश्मीर से बाहर हैं वो यहां आने से खौफ खाए और जो यहां पहले से हैं वो भी यहां से चले जाए। लेकिन आतंकियों का न तो ये मंसूबा कामयाब होगा और ना ही हाइब्रिड आतंक को लॉजिस्टिक सपोर्ट दे रहे आतंकियों के ओवर ग्राउंड वर्कर घाटी में ज्यादा जिंदा रह पाएंगे।