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मीडिया व पत्रकारिता के लिए सबसे मुश्किल साल रहा 2021

कोविड19 की दूसरी लहर भारत में पत्रकारों के लिए अब तक की महामारियों में सबसे ज़्यादा जानलेवा साबित हुई. मृतक मीडिया कर्मियों में ऐसे लोगों की तादाद भी कम नहीं जो अचानक ह्रदय या अन्य शारीरिक विकार के शिकार हुए

Updated on: 31 Dec 2021, 10:21 PM

नई दिल्ली:

कोविड19 की दूसरी लहर भारत में पत्रकारों के लिए अब तक की महामारियों में सबसे ज़्यादा जानलेवा साबित हुई| मृतक मीडिया कर्मियों में ऐसे लोगों की तादाद भी कम नहीं जो अचानक ह्रदय या अन्य शारीरिक विकार के शिकार हुए और वक्त पर या सही समुचित इलाज और अस्पताल उपलब्ध ना होने के कारण उन्हें अपनी बेशकीमती जानें गवानी पड़ीं. देश में मीडिया में काम करने वाले तकनीकी मीडिया स्टाफ या गैर पत्रकारों को मिलाकर बात करें तो यह संख्या कहीं अधिक है लेकिन  कोविड कि दोनों लहरों मे अब तक 300 से भी ज़्यादा  कि अपुष्ट सूचनाएं हैं. कोविड मरीजों वाले अस्पतालों में नियमित जाकर रिपोर्टिंग करना उनकी ड्यूटी का हिस्सा रहा है. प्रेस फ़ोटोग्राफर और टीवी कैमरामैन सबसे ज़्यादा सॉफ्ट टारगेट बने. ज़ाहिर है कि फ़ोटो जर्नलिस्ट का मौके पर गए बिना काम पूरा नहीं होता. 

जाने माने फ़ोटो जर्नलिस्ट प्रवीण जैन कहते हैं ” कोविड के बीते 20 माह भारत में मीडिया के लिए सबसे ज़्यादा चुनौतीपूर्ण और भयावह रहे. बकौल उनके आम लोग, राजनेता और स्वयंसेवी संगठन भले ही कोविड महामारी कवर करने वाले पत्रकारों को मुँह ज़ुबानी कोविड वॉरियर कहते रहें, लेकिन प्रधानमंत्री और दूसरे केन्द्रीय नेताओं में कहीं भी उन्हें कोविड वॉरियर नहीं माना.  जबकि देश के कई स्थानों पर पत्रकार और प्रेस फोटोग्राफर अस्पतालों की कवरेज करते हुए संक्रमण के शिकार हुए. ” फ़ोटो जर्नलिस्ट के तौर पर चार दशक से कार्यरत प्रवीण जैन ने कोविड19 की पहली और दूसरी लहर में गुजरात से लेकर देश के कोने-कोने में कोविड कवरेज की. बकौल उनके मेरा सबसे बुरा आंखोंदेखा हाल गुजरात के अहमदाबाद और बड़ोदरा अस्पतालों का रहा, जहाँ डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ कोविड के डर मारे अस्पताल छोड़कर भाग गए.  ऐसी घटनाओं की उचित कवरेज ही नहीं हुई, जैन कहते हैं. दूसरी लहर में कोविड की दहशत और बड़ी तादाद में लोगों के मारे जाने के बावजूद अपनी जान की परवाह किये बगैर मीडिया कर्मी अस्पतालों और मरीजों की दुर्दशा की कवरेज करते पाए गए.

 फ़ोटो पत्रकारिता कोविड के अलावा भी विगत 6-7 वर्षों से गहरे संकट में है. वरिष्ट फ़ोटो पत्रकार व youtube चैनल “ परफेक्ट पिक्चर” के संपादक जगदीश यादव कहते हैं “ सरकारी समारोहों में पत्रकारों का प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया है| दूसरा देश के आम आदमी और सुदूर क्षेत्रों के जनजीवन पर मुख्यधारा के मीडिया में प्रकाशित होने वाले फ़ोटो और फ़ोटो फ़ीचर्स की जगह सिकुड़ गयी है. यादव कहते हैं कि कोविड काल सरकारों के लिए राहत भरा इसलिए भी रहा क्योंकि ग्राउंड ज़ीरो से फ़ोटो कवरेज लुप्त सी हो गई.  इसकी जगह सरकारी प्रचार तंत्र ने ले ली. नतीजतन आम लोगों को सरकारी प्रचार के पीछे की सचाई ढक दी गयी है| ज्ञात रहे कि 2020 में जारी किये गए विश्व प्रेस फ्रीडम इंडेक्स के अनुसार भारत पत्रकारों के लिए काम करने की सबसे खतरनाक जगहों में शुमार है. रिपोर्ट्स विदाउट बॉर्डर्स द्वारा जारी सर्वे में भारत को 180 देशों की तुलना में पिछले साल की तर्ज पर इस साल भी 142 की रैंकिंग पर रखा गया है.

हालाँकि इस रिपोर्ट का फ़ोकस पत्रकारों को अपना काम करने की आज़ादी से जुड़ा है. लेकिन रिपोर्ट में इंगित किया गया है मोदी सरकार और उनकी पार्टी भाजपा से जुड़े संगठनों का मीडिया पर केवल अनुकूल खबरें छापने और ऐसा ना करने पर उन्हें डराने, हिंसा और हत्या की धमकियां तक मिली हैं. न्यूयॉर्क स्थित ’कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट 2021’ में वैश्विक स्तर पर पत्रकारों पर की गयी ज्यादतियों की चर्चा करते हुए कई तरह के आरोप लगाकर दुनियाभर में 293 पत्रकारों को जेलों में डाला गया जबकि पिछले साल 2020 में यह तादाद 280 ही थी| मीडिया विशेषज्ञों का मानना है कि इनमें कई पत्रकार कोविड रिपोर्टिंग के दौरान सरकारी व्यवस्था की पोल खोलने के आरोप में सलाखों में डाले गए. पड़ोसी देश चीन में सबसे ज़्यादा मीडिया टार्गेट पर रहा जबकि दूसरा नंबर भी पड़ोसी म्यांमार ही रहा. सीपेजी की रिपोर्ट्स में भारत का भी ख़ासतौर से उल्लेख है. पाँच पत्रकारों को अपना काम करने की वजह से मौत के घाट उतारा गया. इनमें अविनाश झा, चेनाकेश्वालू, मनीष कुमार सिंह और सुलभ श्रीवास्तव, टीवी पत्रकार रमन कश्यप को लखीमपुर खीरी में किसानों के साथ वाहन से कुचला गया, जिसे केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी के पुत्र आशीष मिश्र चला रहे थे, जो अब जेल में हैं.

संसद के बीते शीतकालीन सत्र में लोकसभा में सरकार ने 7 दिसंबर 2021 को एक लिखित जवाब में बताया कि प्रभावित पत्रकारों के परिजनों की सहायता के लिए पत्रकार कल्याण कोष के तहत सहायता दी जा रही है. इस मद में वर्ष 2020-21 में 2.60 करोड़ व वर्ष 2021-22 में 6.06 करोड़ रुपये की राशि दी गयी है. उत्तर प्रदेश, पंजाब, आन्ध्र, हरियाणा, केरल, झारखंड व दूसरे प्रदेशों में भी अलग से सहायता राशि मृतक पत्रकारों के परिजनों को दी. भारत के पत्रकार संगठनो की मांग है कि पत्रकारों की मृत्यु का मुआवजा 50 लाख घोषित हो और इस मामले में केंद्र व राज्य सरकारें मिलकर एक राष्ट्रीय नीति तैयार करें.