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पुंडीर की चुनावी पोस्‍ट-3: अब तो देश पर दया करो अपना एजेंडा मत चलाओ

बौनों खबर को खबर ही रहने दो. इस एजेंडे में सिर्फ जस्टिस सीकरी ही नहीं बल्कि सीजेआई रंजन गोगोई भी आ रहे हैं.

Updated on: 16 Jan 2019, 04:14 PM

नई दिल्‍ली:

अब तो देश पर दया करो अपना एजेंडा मत चलाओ, बौनों खबर को खबर ही रहने दो. इस एजेंडे में सिर्फ जस्टिस सीकरी ही नहीं बल्कि सीजेआई रंजन गोगोई भी आ रहे हैं. बौनों के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट देश में बेईमानी की लहर दौड़ाना चाहता है. एक नई खबर आ गई. देश के सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा ईमानदारी की मशाल लेकर देश को रोशन कर रहे थे. वर्मा के खिलाफ अंधेरे को देश पर तारी करने में लगे हुए संघ की वोट से प्रधानमंत्री बने मोदी ने जाल तैयार किया.

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देश के लिए रात दिन खून के आंसू बहाने वाली कांग्रेस ने इस जाल को काटने के लिए वर्मा का साथ देने फैसला किया और इस अंधेंरे वक्त में अपनी जान जोखिम में डालकर काम कर रहे बौंनों (पत्रकारों ) ने फिर से नई मशाल हाथ में ली है. अब आरोपों की बात करते है एक अंग्रेजी अखबार के बड़े बौंने ने बताया कि जस्टिस सीकरी ने रिटायरमेंट के बाद के लिए बड़ी शानदार पोस्टिंग हासिल की है और इसकी मौखिक स्वीकृति उन्होंने दिसंबर में ही दे दी थी और इस खबर को लगाने का अर्थ अगर आपको समझ में नहीं आ रहा है तो इसका मतलब है कि सच्चाई के धर्मावतार श्री आलोक वर्मा जी के खिलाफ हाईपॉवर कमेटी में जो उन्होंने फैसला दिया है उसकी जड़ में है ये पोस्टिंग्स.

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ये बात दिखने में तो इतनी अपीलिंग है कि देश में सोशल मीडिया पर कांग्रेस के लिए आपातकाल से लड़ रहे बौंनों ने क्रांत्रि कर दी है. अब इस खबर के अंदर जाते है और इस खबर को समझते है तो फिर ये मानना होगा कि दिसबंर में ही वर्मा को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने ये जुगलबंदी सरकार से कर ली थी कि वर्मा को हटाने में सुप्रीम कोर्ट सरकार का साथ देगा और बदले में शानदार रिटायरमेंट प्लान हासिल कर लिया. हाई पॉवर कमेटी में जस्टिस ए के सीकरी सीधे मेंबर नहीं है बल्कि देश के सीजीआई होने के चलते चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ही इसके मेंबर है,लेकिन बैठक से एक दिन पहले उन्होंने खुद की जगह जस्टिस सीकरी को अपने प्रतिनिधि के तौर पर नामित कर दिया.

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ऐसे में क्या दिसंबर में ये तय हो गया था कि इस तारीख को मीटिंग्स होगी और उसमें जस्टिस रंजन गोगोई नहीं जाएंगे और उनके बदले सरकार से डील के तहत जस्टिस सीकरी को भेजा जाएंगा और वो सरकार के साथ गठबंधन कर लेगे और सच के लिए सबकुछ गंवाने वाली कांग्रेस के खिलाफ खड़े होगे. इस बात के मायने कितने गंभीर है, सीबीआई के डॉयरेक्टर को बहाल करने वाली बैंच ने भी क्या इस मामले को वापस हाईपॉवर कमेटी के पास किसी डील के तहत ही भेजा था क्या अगर कांग्रेस के चंपूओं में बदल चुके बौंनों की बात पर यकीन करे तो.

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यानि एक ईमानदारी के पुतले को हटाने के लिए कितना बड़ी साजिश इस देश में हो रही है . जस्टिस सीकरी को इस डील का हिस्सा बनने के लिए क्या क्या नही करना पड़ा इसका एक उदाहरण जस्टिस ए के सीकरी का कर्नाटक सरकार के मसले में कांग्रेस के हक में दिया गया फैसला भी है. उस वक्त बौंनों और कांग्रेस को लगा था कि जस्टिस सीकरी इंसाफ के लिए कुछ भी कर सकते है लेकिन अब जाकर इनको समझ में आया कि नहीं कर्नाटक में सरकार बनाने का फैसला इस दिन के लिए ही दिया गया था ताकि वो इस देश में सच की लड़ाई लड़ रहे अकेले डायरेक्टर के खिलाफ खड़े होकर फैसला दे सके.

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इस बात को कितनी बार और कैसे लिखा जा सकता है कि अंग्रेजी के बौंनों के लिए इस देश का मतलब ऐसा देश है जहां दुनिया में किसी भी देश से ज्यादा अधिकार इन अँग्रेजी के बौंनों को हो और उन अधिकारों का पत्रकारिता से कोई मतलब नहीं है उनका मतलब है कि इनकी बताई गई व्याख्याओं को देश की जनता स्वीकार करे नहीं तो देश में अंधे लोग है. देश के लोगों ने 2014 में वोट नहीं किया था बल्कि संघ ने तमंचा रख कर लोगों को उनकी इत्छा के खिलाफ वोट डलवाया था नहीं तो लुटिंयंस में रात को विदेशी दारू या फेंके गए टुक़़ड़ों पर जूते चाटने वाले इन लुटिंयस के बौंनों को ये दिन नहीं देखने पड़ते. एक ऐसे आदमी को वोट दिया जो इनकी कहानियों का आदमी नहीं है.

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हालांकि उस आदमी ने प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद इस जमात में अच्छा कहलाने के लिए क्या क्या नहीं किया यहां तक कि अच्छे दिन की आस कर रही आम जनता को ही दांव पर लगा दिया लेकिन हासिल सिर्फ इतना हुआ कि सुप्रीम कोर्ट को भी आज इन बौंनों की नजरों से उतार दिया. सुप्रीम कोर्ट से बौंने इसलिए भी नाराज है क्योंकि कोर्ट की भाषा और उनकी भाषा तो एक है और दोनों का ही आम आदमी से कोई रिश्ता नहीं है बस तीन फीसदी लोगों की भाषा के दम पर चल रहे ये संस्थान कई बार आजादी के नाम ऐसे फैसले कर रहे है जो आम आदमी के खिलाफ होते है लेकिन यूरोप या अमेरिका जहां से पैदा हुई भाषा की नुमाईंदगी कर रहे इन लोगों को डेमोक्रेसी से नहीं एरिस्टोक्रेसी से मतलब है और टके के कबीलाई नेताओं के लिए इन संस्थाओं का कोई मतलब तब तक नहीं होता जब तक वो जाति के दम पर लूट रहे नेताओं की अबाध लूट में बाधा नही बनता है. पता नहीं इस कहानी से नाजिम हिकमत की लंबी कविता का ये हिस्सा जुड़ता है या नहीं पता लेकिन फिरभी आप पढ़ सकते है

हिफाजती वकील अपना मामला सामने लाता है

हजरात
ये शाहकार
जो आपके सामने मुल्जिम के तौर पर खड़ी है
एक अजीम फनकार की बेहद काबिल बेटी है
हजरात
ये शाहकार
हजरात ...
मेरे दिमाग में आग लगी है ..
हजरात ...
पुनर्जागरण....
हजरात
ये शाहकार
दूसरी बार ये शाहकार
हजरात, वर्दीधारी हजरात...
चुप्प
हद है
जाम मशीनगन की तरह खड़खड़ाना बंद करो
अमीन
फैसला सुुनाओ . "
अमीन फैसला सुनाता है.
फ्रांस का कानून
चीन में तोड़ा उसने
जिनका नाम दर्ज है किसी लिओनार्दों की बेटी, ज्योकोन्दा.
लिहाजा
हम मुलजिम को सजा देते है
मौत
जलाकर
और कल रात चांद निकलने के वक्त,
सेनेगल की एक रेजिमेंट
इस फौजी अदालत के
फैसलों को लागू करेगी..."

(डिस्क्लेमर: इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने विचार हैं. इस लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NewsState और News Nation उत्तरदायी नहीं है. इस लेख में सभी जानकारी जैसे थी वैसी ही दी गई हैं. इस लेख में दी गई कोई भी जानकारी अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NewsState और News Nation के नहीं हैं, तथा NewsState और News Nation उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.)