अफगानी महिलाएं : घुप्प अंधेरे के खिलाफ रौशनी की पहली बगावत
अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे को 30 दिन पूरे हो गए. ये तीस दिन अफगानियों की जिंदगी पर कितना भारी साबित हुआ है हम इसकी कल्पना भर कर सकते हैं. अफगानिस्तान से आ रही खबरें तालिबानियों की क्रूरता और आम लोगों की मजबूरी की रोंगटे खड़े कर देने वाली तस्वीर
नई दिल्ली:
अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे को 30 दिन पूरे हो गए. ये तीस दिन अफगानियों की जिंदगी पर कितना भारी साबित हुआ है हम इसकी कल्पना भर कर सकते हैं. अफगानिस्तान से आ रही खबरें तालिबानियों की क्रूरता और आम लोगों की मजबूरी की रोंगटे खड़े कर देने वाली तस्वीर सामने ला रही है. अफगानिस्तान की पूर्व सरकार के मुलाजिमों की शामत आई हुई है. उन्हें चुन-चुन कर प्रताड़ित किया जा रहा है. मारा जा रहा है. लेकिन सबसे ज्यादा जुल्म महिलाओं पर हो रहे हैं. अफगानिस्तान के गुमनाम कस्बों और शहरों से महिलाओं के साथ ज्यादती की शर्मनाक तस्वीरें लगातार आ रही हैं। अफगानी महिलाओं का पूरा वजूद जैसे तालिबानी हंटर के साये में सिमट गया है. शरीयत के नाम पर उनकी जिंदगी को सैंकड़ों बंधनों में जकड़ दिया गया है. इन तस्वीरों को देखकर मन में ये सवाल बार बार उठता है कि क्या अफगानिस्तान में अब लोगों को हमेशा ऐसी ही नारकीय जिंदगी जीनी पड़ेगी या ये शैतानी सत्ता का अंत होगा? इस सवाल का जवाब आसान नहीं है लेकिन कुछ घटनाएं उम्मीद जगाती हैं. तालिबान के खिलाफ सबसे ज्यादा हौसला देने वाली तस्वीर है उन महिलाओं की जो जालिमों के बंदूक के सामने सीना तान कर खड़ी दिखाई देती हैं. तालिबानी जुल्म के खिलाफ महिलाओं का विरोध प्रदर्शन चाहे कितना ही छोटा क्यों न हो...तालिबान को इससे कोई फर्क पड़ता हो या न पड़ता हो, ये तस्वीर घुप्प अंधेरे के खिलाफ रौशनी की पहली बगावत के तौर पर दर्ज की जाएगी. एक ऐसे मुल्क में जहां ज्यादातर गैर-तालिबानी मर्द या तो मुल्क छोड़कर भागना चाहते हैं या तालिबान के सामने घुटने टेक चुके हैं, महिलाओं के हाथ में मशाल, एक बड़ी मिसाल कायम कर रही है.
सिर्फ अफगानिस्तान में ही नहीं, उसके बाहर भी तालिबान के विरोध में महिलाएं अग्रिम मोर्चे पर हैं. हिदुस्तान समेत दुनिया के तमाम मुल्कों में अफगानी रेसिसटेंस का चेहरा महिलाएं हैं. टीवी चैनलों की डिबेट से लेकर दूतावासों के सामने प्रदर्शन में अफगानी महिलाओं का चेहरा ही सबसे ज्यादा दिखाई देता है. इनमें से ज्यादातर महिलाएं वो हैं जो इसके लिए बहुत जोखिम उठा रही हैं। तालिबान और उसके मददगार हिंदुस्तान समेत दुनिया के कई देशों के टीवी चैनलों को मॉनिटर कर रहे हैं। ऐसे में उन महिलाओं का परिवार खतरे में पड़ सकता है जो अब भी अफगानिस्तान में रह रहे हैं. फिर भी तालिबान की बर्बरता को उजागर करने से ये महिलाएं पीछे नहीं हठ रहीं.
अफगानिस्तान में महिलाओं की सार्वजनिक मौजूदगी पर गहरा स्याह पर्दा डाल दिया गया है. अफगानिस्तान एक ऐसा मुल्क बन चुका है जहां महिलाओं के लिए आजादी तो छोड़िए, आजादी का ख्याल भी एक बड़ा गुनाह है. एक ऐसा मुल्क जहां आजादख्याली की सजा सार्वजनिक तौर पर कोड़े खाने से लेकर मौत तक हो सकती है. बावजूद इसके अफगानी महिलाओं ने अपनी उम्मीदों के आकाश में रंग भरना बंद नहीं किया है. परंपरागत रंग बिरंगे लिबास में अफगानी महिलाओं की तस्वीरें सोशल मीडिया पर एक नया आंदोलन है. #donttouchmycloths ये महज एक हैशटैग नहीं, बर्बर तालिबान के काले कानूनों के खिलाफ एक रंगीन क्रांति है। प्रतीकात्मक ही सही, एक जंग है. “अगर आप दुनिया बदलना चाहते हैं तो महिलाओं की मदद कीजिए” ये नेलसन मंडेला ने कहा था जिन्होंने रंगभेद के खिलाफ सबसे बड़ी जंग लड़ी और जीते भी. तालिबान की लड़ाई “रंग” के खिलाफ है. वो दुनिया से हर रंग को मिटा कर सिर्फ एक रंग की सत्ता स्थापित करना चाहता है. स्याह की सत्ता. अफगानी महिलाओं की लड़ाई दुनिया को रंगहीन होने से बचाने की लड़ाई है. और इस लड़ाई में हमें अफगानी महिलाओं के साथ खड़ा होना है.
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