क्वाड के करंट से चीन को 11 हज़ार वोल्ट का झटका !

24 सितंबर को व्हाइट हाउस की ओर से क्वाड देशों की मेजबानी का ऐलान किया गया है, मतलब क्वाड देशों के प्रमुखों की बैठक अमेरिका में होने जा रही है लेकिन इस बैठक की जरूरत किसके लिए फैयदेमंद है और क्यों क्वाड की जरूरत वक्त के साथ महसूस होने लगी है

24 सितंबर को व्हाइट हाउस की ओर से क्वाड देशों की मेजबानी का ऐलान किया गया है, मतलब क्वाड देशों के प्रमुखों की बैठक अमेरिका में होने जा रही है लेकिन इस बैठक की जरूरत किसके लिए फैयदेमंद है और क्यों क्वाड की जरूरत वक्त के साथ महसूस होने लगी है

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Mohit Sharma
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China ( Photo Credit : ANI)

24 सितंबर को व्हाइट हाउस की ओर से क्वाड देशों की मेजबानी का ऐलान किया गया है, मतलब क्वाड देशों के प्रमुखों की बैठक अमेरिका में होने जा रही है लेकिन इस बैठक की जरूरत किसके लिए फैयदेमंद है और क्यों क्वाड की जरूरत वक्त के साथ महसूस होने लगी है। क्वाड का जन्म दक्षिण चीन सागर में चीन के अतिक्रमण को रोकने के इरादे से हुआ लेकिन वक्त और हालात अब इस संगठन की जरूरत का दायर बढ़ने की तरफ ईशारा कर रहें हैं । चीन जमीन से लेकर समंदर तक अपने विस्तारवाद की रणनीति पर काम कर रहा है, 2040 तक चीन क्या करने वाला है इसका ब्लू प्रिंट एक चीनी वेबसाइट सोहू के जरिए दुनिया के सामने आ चुका है । ऐसे में क्वाड देशों के लिए यह सही वक्त है जब नाटो के तर्ज पर इस संगठन को खड़ा किया जाए। बहरहाल सबसे पहले हमें यह जानना चाहिए कि क्वाड से भारत को क्या मिलेगा और भारत अपने क्षेत्र में कितना मजबूत होगा । 

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क्वाड से भारत को क्या मिलेगा

भारत और जापान क्वाड के वो दो देश हैं जिस पर चीन सीधी नज़र है जबकि ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका समंदर में चीन की चालाकी और बदमाशी को रोकना चाहते हैं । अगर 24 सितंबर को होने वाली बैठक में क्वाड को नाटो के तर्ज पर काम करने जैसा संगठन बनाने की बात होती है तो भारत अपक्षेत्र में सबसे मजूबत हो जाएगा, LAC पर चीन का चर्कव्यूह हो या LOC पर पाकिस्तान की नापाक हरकत, भारत भविष्य में होने वाले किसी भी हालात से निपटने के लिए कई गुणा ज्यादा तकतवर हो जाएगा । अभी भारत के पास 1 जबकि चीन के पास 2 एयरक्राफ्ट करियर है । क्वाड यानी अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत के मिला दिया जाए तो कुल 27 एयरक्राफ्ट करियर होंगे । इसी तरह  सबमरीन क्वाड के पास कुल 108 सबमरीन होंगे, अभी भारत के पास 16 और चीन के पास 74 सबमरीन हैं, फाइटर प्लेन क्वाड के पास कुल 2984 फाइटर प्लेन होंगे, फिलहाल भारत के पास 538 जबकि चीन के पास 1232 फाइटर प्लेन है, टैंक की संख्या क्वाड के पास कुल 11644 टैक होंगे, अभी भारत के पास 4294 जबकि चीन के पास 3500 टैंक हैं और सैनिक की संख्या क्वाड के पास 31 लाख 51 हजार 160 हो जाएगी , अभी भारत के पास 14 लाख 44 हज़ार जबकि चीन के पास 21 लाख 83 हजार सैनिक हैं । जाहिर सी बात है कि क्वाड भारत की सैन्य शक्ति में ना सिर्फ इज़ाफा होगा बल्कि युद्ध के हालात में चीन और पाकिस्तान के खिलाफ भारत के साथ अमेरिका और जापान जैसे देशों का साथ होगा । 13 साल पहले क्वॉड 4 का कंसेप्ट बना था, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान क्वॉड ग्रुप का हिस्सा हैं । युद्ध हुआ तो क्वॉड देश सबसे पहले भारत की मदद के लिए आगे आ सकते हैं। 2007 में जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने इस ग्रुप को बनाने का प्रस्ताव रखा था, 10 साल तक निष्क्रिय रहने के बाद 2017 के बाद से चारों देशों की लगातार बैठकें हो रही हैं । चारों देश का कॉमन दुश्मन चीन ही है , चीन का बढ़ता दबदबा चारों की चिंता है, फिलहाल क्वॉड का कोई मिल्ट्री अलायंस नहीं है , लेकिन अब नाटो की तर्ज़ पर इसे बनाने की बात हो रही है । 

क्वॉड 4 का मौजूदा रक्षा बजट

क्वाड अगर नाटो की तरह काम करेगा तो इसके सदस्य देशों को एक सामूहिक रक्षा बजट भी रखना होगा, फिलहाल 2020-21 के लिए भारत का रक्षा बजट जीडीपी का 2.1% है, अमेरिका अभी नाटो में जीडीपी का 3.5 % खर्च कर रहा है, जापान का रक्षा बजट जीडीपी का 1 % है, ऑस्ट्रेलिया का रक्षा बजट का 2 % है । इन चारों देशों के रक्षा बजट को अगर जोड़ दिया जाए तो अपने क्षेत्र में भारत बलवान कहलाएगा क्योंकि उसके पास तीन और देशों के रक्षा बजट बल होगा ।

क्वाड क्यों ज़रूरी

क्वाड में भारत और जापान ही दो ऐसे देश हैं जिनका चीन के साथ प्रत्यक्ष सीमा विवाद है, QUAD के दूसरे दो सदस्य देश अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के हित स्वतन्त्र नाविक आवागमन से जुड़े हैं । भारत और जापान के सामरिक हित एवं क्षेत्रीय संप्रभुता जुड़ी है और इन दोनों देश का दुश्मन एक ही है । साउथ चाइना सी में चीन की दादागिरी का जवाब क्वाड से ही दिया जा सकता है। भारत ये मानता है की दक्षिण चीनी समुद्र अंतर्राष्ट्रीय आवागमन और व्यापार के लिए साझा जगह है, यहां अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के पालन के साथ ही शांति और स्थिरता का माहौल ज़रूरी है। चीन लगातार इन चार देशों की नजदीकियों से परेशान रहा है, 2004 में सुनामी के बाद ये चार देश मदद के लिए इंडो-पैसिफिक में एक साथ आए थे । चीन दक्षिण चीन सागर के 80 % हिस्से पर अपना दावा करता है, इसे दुनिया के सबसे ज्यादा व्यस्त जलमार्गों में से एक माना जाता है । इसी मार्ग से हर साल 5 ट्रिलियन डॉलर मूल्य का इंटरनेशनल बिजनेस होता है, ये मूल्य दुनिया के कुल समुद्री व्यापार का 20 प्रतिशत है. इस सागर के जरिए चीन अलग-अलग देशों तक व्यापार में सबसे आगे जाना चाहता है । चीन ने समुद्र में कई आर्टिफिशयल द्वीप बना लिए हैं , जिसमें मिलिट्री बेस और जंगी जहाज तैनात हैं ।

कैसे काम करता है नाटो

क्वाड अगर नाटो की तरह काम करेगा तो आप यह भी जानिए कि नाटो कैसे काम करता है । नॉर्थ ऐटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन यानी NATO के 29 सदस्य हैं । इस संगठन को 1949 में सोवियत संघ के खिलाफ खड़ा किया गया था । सोवियत संघ के विघटन के बाद भी इसे खत्म नहीं किया गया, अब नाटो आतंकवाद से लड़ाई , पड़ोसी देशों में स्थिरता बनाए रखना , साइबर सुरक्षा आदि के लिए काम करता है। नाटो का मुख्यालय ब्रसेल्स (बेल्जियम) में है, इस संगठन के सभी 29 सदस्यों को अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत रक्षा क्षेत्र के लिए देना होता है, इतना पैसा न देने वाले देशों के लिए किसी तरह के दंड या जुर्माने का कोई प्रावधान नहीं है, अमेरिका मौजूदा समय में नाटो के कुल खर्च का 22 प्रतिशत देता है, अमेरिका जीडीपी का 3.5 प्रतिशत खर्च करता है। यूके 2 .14 % , पोलैंड 2 % , रोमानिया 2 .04 % , ग्रीस 2 .28 %, बुल्गारिया 3 .25 %, लिथुआनिया 2 .03 %, खर्च करता है । जर्मनी जैसे देश रक्षा क्षेत्र में जीडीपी का महज 1.38 प्रतिशत खर्च करता है । फ्रांस , इटली टर्की जैसे देश भी 2 % से कम खर्च करते हैं, 29 में से सिर्फ 8 सदस्य देश ही ऐसे हैं जो जीडीपी के 2 प्रतिशत के लक्ष्य को पूरा करते हैं ।

(विद्यानाथ झा एंकर/डेप्युटी एडिटर, न्यूज़ नेशन)

Source : Vidya Nath Jha

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