मध्य प्रदेश में दिग्गजों का जमावड़ा, बीजेपी के लिए कितनी बड़ी चुनौती?

दरअसल, बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व मध्यप्रदेश को लेकर संशय की स्थिति में है. उसे लगता है कि इस बार मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार के लिए सिंहासन का ताज काटों भरा है. इसलिए उसने उन चेहरों को तवज्जो दी है जो अपने दम पर सीट निकालने का माद्दा रखते हो.

author-image
Prashant Jha
एडिट
New Update
bjp cong

मध्य प्रदेश चुनाव में भाजपा कांग्रेस( Photo Credit : फाइल फोटो)

मध्य प्रदेश में साल के आखिरी में विधानसभा चुनाव होने हैं. चुनाव को लेकर अभी से ही कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है. 230 विधानसभा सीटों के लिए जहां बीजेपी फिर से सत्ता पर काबिज होने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगा रही है. वहीं, करीब 20 सालों से सत्ता का वनवास झेल रही कांग्रेस सियासी जंग फतह करने में जुटी है. इस बार के चुनाव का मुकाबला बेहद रोचक रहने वाला है. दोनों ही दलों में गुटबाजी चरम पर है. कांग्रेस कई गुटों में बंटी नजर आ रही है तो भाजपा चुनाव से पहले कई खेमों में है. यह अलग बात है कि भाजपा की गुटबाजी अभी तक खुलकर सामने नहीं आई है, भाजपा ने चुनावी मैदान में दिग्गजों को उतार दिया है.  लेकिन क्या भाजपा सभी नेताओं का हित साध पाएगी. पार्टी के लिए ये चुनौती कही भारी ना पड़ जाए. क्योंकि भाजपा केंद्रीय नेतृत्व ने एक साथ केंद्र स्तर के नेताओं को विधायकी चुनाव लड़ने का टास्क दे दिया है.  इसमें नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद पटेल, फगन सिंह कुलस्ते, कैलाश विजयवर्गीय, राकेश सिंह समेत कई दिग्गज नेता हैं. भाजपा को यह तो लगने लगा है कि प्रदेश का सियासी हाल इस बार मुफीद नहीं है.

Advertisment

केंद्रीय नेतृत्व इस बात को भांप लिया है कि चुनाव सिर्फ ''मामा'' शिवराज सिंह चौहान के भरोसे नहीं लड़ा जा सकता है. इसलिए पार्टी हाईकमान ने टिकट बंटवारे में ऐसा उल्टफेर किया है जिसका अंदाजा किसी को नहीं था. खासकर राज्य की राजनीति छोड़कर केंद्र की राजनीति करने वाले नेताओं को तो बिलकुल ही नहीं रहा होगा. भाजपा को लगता है कि इन चेहरों के दम पर वह प्रदेश में फिर से सरकार बनाएगी, लेकिन इस सबके बीच भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को मंत्री और सांसदों को उतारने की जरूरत क्यों पड़ी. क्या पार्टी हाईकमान को गुटबाजी का डर है. या फिर कुछ और.. लेकिन इतने सारे दिग्गजों के उतरने से भाजपा के प्रदेश इकाई में गुटबाजी की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है. पार्टी हाईकमान ने भले ही इन नेताओं पर भरोसा जताया है, लेकिन सारे नेताओं के होने से प्रदेश में गुटबाजी भी हावी हो सकती है. 

दरअसल, बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व मध्यप्रदेश को लेकर संशय की स्थिति में है. उसे लगता है कि इस बार मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार के लिए सिंहासन का ताज काटों भरा है. इसलिए उसने उन चेहरों को तवज्जो दी है जो अपने दम पर सीट निकालने का माद्दा रखते हो. साथ ही ज्यादा नेताओं के होने से गुटबाजी और  कल मोदी ने अपने भाषण में शिवराज सरकार की किसी उपलब्धि का जिक्र नहीं किया. बल्कि पूरे भाषण में वो केन्द्र सरकार की बड़ी उपलब्धियों को गिनवाते रहे. कार्यकर्ताओं को मिशन 150 का लक्ष्य दे दिया. मतलब साफ है कि मध्यप्रदेश में शिवराज का चेहरा जीत के लिए केद्रीय नेतृत्व को फीका नजर आ रहा है. पीएम मोदी शिवराज सिंह का नाम नहीं लेकर यह संदेश दिए हैं कि पार्टी के लिए बूथ कार्यकर्ताओं से लेकर मुख्यमंत्री तक सभी एक हैं, लेकिन इस सबके इतर पार्टी के भीतर नेताओं के आपसी मनमुटाव देखने को मिल ही जाते हैं.  

यह भी पढ़ें: मोदी और शाह की नई सियासी प्रयोगशाला बना मध्यप्रदेश, मंत्री और सांसद बनेंगे विधायक

कांग्रेस-भाजपा के बीच कांटे की टक्कर

मध्य प्रदेश की वर्तमान राजनीति पर अगर हम नजर डाले तो भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला कांटे की टक्कर का है. दोनों ही दलों में दर्जनों नेता हैं. अपने-अपने क्षेत्रों में नेताओं की लोकप्रियता से गुटबाजी भी चरम पर है. कांग्रेस तो इस समस्या से पहले से ही जूझती आ रही है. भाजपा भी इससे अछूती नहीं है. भाजपा में भी क्षत्रपों के अपने-अपने गुट हैं. बात चाहें महाकौशल की हो या मालवा, विंध्य, ग्वालियर- चंबल और बुंदलेखंड की हर क्षेत्रों में कांग्रेस और भाजपा के दिग्गजों की दखलअंदाजी से सियासी माहौल गरम है.

भाजपा-कांग्रेस में क्षत्रपों की बात करें तो विंध्य में अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह राहुल भैया का अपना दबदबा है. वहीं, बीजेपी के राजेंद्र शुक्ला की सियासी पकड़ यहां मजबूत है. उसी तरह महाकौशल की 38 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ मजबूती से पकड़ बनाए हुए हैं. छिंदवाड़ा में कमलनाथ पंजे के सहारे निर्णायक मोड़ में हैं.  तो वहीं, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और प्रह्लाद पटेल सियासी समा बांधे हुए हैं. ओबीसी जाति से आने वाले प्रह्लाद पटेल की सियासी जमीन यहां पर मजबूत स्थिति में है. मालवा-निमाड़ की 66 सीटों पर दोनों ही दलों की नजर है. यहां से कांग्रेस के कई दिग्गज चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचे हैं. कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया, अरुण यादव समेत कई दिग्गज नेता चुनावी मैदान में हैं. तो भाजपा से कैलाश विजयवर्गीय समेत कई नेता ताल ठोक रहे हैं.

कांग्रेस का कॉन्फिडेंस हाई तो भाजपा की नई स्ट्रैटजी

वहीं, 2023 के चुनाव के लिए दिग्विजय सिंह ने जमकर पसीना बहाया है. बीते दिनों 6 महीने की पदयात्रा के जरिए कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाने की भरपूर कोशिश की है. इसी का नतीजा है कि सूबे में कांग्रेस के प्रति लोगों की सहानुभूति थोड़ी बहुत दिख रही है. वहीं, मध्य प्रदेश में भाजपा के लिए शिवराज सिंह चौहान किसी जादूगर से कम नहीं हैं. वैसे तो शिवराज सिंह की लोकप्रियता इतनी मजबूत है कि वह प्रदेश में अपने बूते कमल खिलाने माद्दा रखते हैं, लेकिन इसबार का चुनाव काफी नेक-टु नेक होगा. प्रदेश की सियासत पर नजर रखने वाले पंडितों का कहना है कि इस बार बीजेपी के लिए मध्य प्रदेश जीतना आसान नहीं है. बीजेपी को कांग्रेस से कड़ी चुनौती मिल रही है. कर्नाटक जीत के बाद से कांग्रेस का कॉन्फिडेंस काफी हाई है. छत्तीसगढ़ में राहुल गांधी ने कहा कि हम मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जीत रहे हैं और राजस्थान में भी जीतना तय है.  

सिंधिया को संतुलन बनाने की जरूरत

Advertisment

ग्वालियर चंबल में कभी कांग्रेस का प्रमुख चेहरा रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया अब बीजेपी में आए चुके हैं. इस क्षेत्र में बीजेपी के कई चेहरे हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया, नरेंद्र सिंह तोमर, नरोत्तम मिश्रा समेत कई नेता पार्टी के प्रमुख चेहरा हैं. ग्वालियर चंबल में भाजपा की सियासी जमीन कमजोर है. पार्टी इस बार यहां से अधिक से अधिक सीटें जीतने की उम्मीद कर रही है. वहीं, कांग्रेस की बात की जाए तो कांग्रेस के लिए यह क्षेत्र कमजोर है. कांग्रेस यहां से गोविंद सिंह के भरोसे नैया पार करने में लगी हुई है.  ग्वालियर चंबल रिजन में ज्योतिरादित्य सिंधिया की पकड़ मजबूत है. तीन साल पहले जब सिंधिया अपने 20 विधायकों के साथ भाजपा का दामन थामे थे तो उन्हें उम्मीद थी कि पार्टी उन्हें प्रदेश की कमान सौंप सकती है, लेकिन भाजपा ने अभी उनपर उतना भरोसा नहीं जताया जितनी की सिंधिया उम्मीद जता रहे थे. लिहाजा एक दर्जन से अधिक संधिया समर्थक चुनाव से पहले कांग्रेस में शामिल हो गए. 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सिंधिया को 35 से 40 सीटें दी थी, लेकिन इस बार बीजेपी ने उन्हें 5 से 6 सीटें ही दी है. 

भाजपा की दो लिस्ट में सिंधिया समर्थकों के चार से पांच लोगों को ही टिकट मिली हैं ऐसे में सिंधिया को यह स्वीकार करना होगा कि कांग्रेस जैसी ऐसी स्थिति भाजपा में फिलहाल नहीं है. सिंधिया को यह भी कबूल करना होगा कि भाजपा में लंबे समय तक बना रहना है तो सियासी संतुलन बनाकर ही आगे बढ़ना होगा. साथ ही उन्हें संगठन में भी अपने समर्थकों को आगे बढ़ना होगा. कुल मिलाकर मध्य प्रदेश चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला कांटे का होने वाला है. चुनावी शंखनाद से पहले ही दोनों दल सियासी समीकरण साधने में हैं. भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व मिशन 150 का टारगेट लेकर अपने नेताओं को चुनावी मैदान में उतार रहा है. वहीं, कांग्रेस पुराने चेहरे के सहारे सत्ता में वापसी करने का दावा कर रही है.  

Source : News Nation Bureau

Scindia attack on Kamalnath Jyotiraditya Scindia Congress Leader Digvijay Singh Madhya Pradesh Election 2023 Date congress Madhya Pradesh Elections 2023 News Madhya Pradesh Assembly Election 2023 Kamalnath Home Minister Amit Shah Kamalnath News
Advertisment