क्‍या कांग्रेस को 'गांधी'मुक्‍त होना चाहिए, दो राज्‍यों के चुनावी नतीजों का इशारा

Haryana-Maharashtra Assembly Elections : जनता को गांधी परिवार (Gandhi Family) का नेतृत्‍व रास नहीं आ रहा है. पंजाब और हरियाणा विधानसभा चुनाव (Punjab and Haryana Assembly Elections) के नतीजों की बात करें तो लब्‍बोलुआब यही निकलकर आते हैं.

Haryana-Maharashtra Assembly Elections : जनता को गांधी परिवार (Gandhi Family) का नेतृत्‍व रास नहीं आ रहा है. पंजाब और हरियाणा विधानसभा चुनाव (Punjab and Haryana Assembly Elections) के नतीजों की बात करें तो लब्‍बोलुआब यही निकलकर आते हैं.

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Sunil Mishra
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क्‍या कांग्रेस को 'गांधी'मुक्‍त होना चाहिए, दो राज्‍यों के चुनावी नतीजों का इशारा

क्‍या कांग्रेस को 'गांधी'मुक्‍त होना चाहिए, चुनावी नतीजों का इशारा( Photo Credit : File Photo)

जनता को गांधी परिवार (Gandhi Family) का नेतृत्‍व रास नहीं आ रहा है. पंजाब और हरियाणा विधानसभा चुनाव (Punjab and Haryana Assembly Elections) के नतीजों की बात करें तो लब्‍बोलुआब यही निकलकर आते हैं. पंजाब (Punjab) में कैप्‍टन अमरिंदर सिंह (Capt Amrinder Singh) ने खुद मोर्चा संभाले रखा और राज्‍य के चुनाव प्रचार में आलाकमान का दखल नहीं होने दिया, वहीं हरियाणा विधानसभा चुनाव (Haryana Assembly Election) में कांग्रेस (Congress) ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा (Bhupendra Singh Hudda) के भरोसे बैठी रही और खुद निष्‍क्रिय पड़ी रही. हालत यह रही कि सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) की एकमात्र प्रस्‍तावित रैली भी नहीं हो पाई. उसी रैली को राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने संबोधित किया. उससे पहले राहुल गांधी नूंह में एकमात्र रैली कर चुके थे.

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दूसरी ओर, लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी ने कांग्रेस ने जान लगा दी थी. धुआंधार रैलियां की थी. उनकी बहन प्रियंका गांधी भी उनका बराकर साथ दे रही थीं. स्‍वास्‍थ्‍य कारणों से सोनिया गांधी चुनाव मैदान में सक्रिय नहीं रही थीं राहुल गांधी ने पीएम नरेंद्र मोदी पर आरोपों की बौछार कर दी थी. राफेल, चौकीदार चोर है आदि स्‍लोगनों से वे जनता की तालियां बटोर रहे थे, लेकिन जब चुनाव परिणाम आया तब कांग्रेस धराशायी होती दिखी. साफ था कि राहुल गांधी के नेतृत्‍व को जनता ने नकार दिया था.

इस चुनाव में भी राहुल गांधी ने काफी कम रैलियां कीं. सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने तो चुनाव में सक्रियता ही नहीं दिखाई. चाहे महाराष्‍ट्र हो या फिर हरियाणा, कांग्रेस या तो प्रदेश के नेताओं पर आश्रित रही या फिर शरद पवार के भरोसे बैठी रही. नतीजा सामने है. कांग्रेस-एनसीपी महाराष्‍ट्र के चुनाव में हार जरूर गईं, लेकिन बीजेपी-शिवसेना के जीत के अंतर के भारी-भरकम दावे को धराशायी कर दिया. यही नहीं, जीत का अंतर कम होने से बीजेपी और शिवसेना के बीच अब झगड़ा भी बढ़ गया है. शिवसेना ने ढाई-ढाई साल का मुख्‍यमंत्री होने की शर्त रख दी है.

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थोड़ा पीछे चलते हैं. उत्‍तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी ने कमान संभाल रखी थी और सपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था. नतीजा सामने है. कांग्रेस की तो बुरी गत हुई ही, सपा भी सत्‍ता से बाहर हो गई थी. बिहार में भी राजद से गठबंधन कर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस को सत्‍ता सुख नसीब नहीं हुआ था.

इसी तरह आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल, उत्‍तराखंड, हिमाचल प्रदेश, ओडिशा, दिल्‍ली और पश्‍चिम बंगाल में भी गांधी परिवार के नेतृत्‍व में कांग्रेस कोई खास कमाल नहीं दिखा सकी थी. कांग्रेस के प्रदेश स्‍तर के नेता जमीन सच्‍चाई से वाकिफ होते हैं और जमीनी मुद्दों को उठाते हैं, जबकि आलाकमान के नेता राष्‍ट्रीय स्‍तर के मुद़्दे उठाते हैं और स्‍थानीय स्‍तर पर वे हवाहवाई साबित होते हैं.

Source : सुनील मिश्र

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