यूपी में किसानों को लुभाने के लिए प्रियंका का प्लान बी
प्रियंका गांधी वाड्रा राजनीति में एक्टिव नहीं हुई हैं, बल्कि सुपर एक्टिव हो गई हैं.
नई दिल्ली:
प्रियंका गांधी वाड्रा राजनीति में एक्टिव नहीं हुई हैं, बल्कि सुपर एक्टिव हो गई हैं. एक-एक सीट, कई-कई घंटे और लखनऊ से लेकर दिल्ली तक प्रियंका अब सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस में संजीवनी भरने के मिशन में जुटी हैं. प्रियंका का पहला टारगेट तो 2019 का लोकसभा चुनाव ही है. लेकिन, उनका बड़ा टागरेट यूपी का 2022 में होने वाला विधानसभा चुनाव भी है, जिसमें प्रियंका कांग्रेस को सत्ता में लाना चाहती हैं. इसीलिए पूर्वांचल की सियासत को समझने के साथ ही प्रियंका अब प्लान बी पर काम कर रही हैं. प्रियंका का ये प्लान बी है बुंदेलखंड. प्रियंका यूपी में किसानों को लुभाने के लिए अपने प्लान बी यानी बुंदेलखंड पर काफी ज़ोर दे रही हैं.
बुंदेलखंड के बहाने कांग्रेसियों को प्रियंका का संदेश
प्रियंका ने दिल्ली में बैठकर बुंदेलखंड के कांग्रेसियों के साथ चर्चा की. वैसे प्रियंका ये चर्चा लखनऊ या बुंदेलों की धरती पर जाकर भी कर सकती थीं, लेकिन शायद एक बड़ा संदेश प्रियंका अपने कांग्रेसियों को देना चाहती थीं. संदेश ये है कि हर वक्त दिल्ली की ओर निहारने से कांग्रेसियों को कुछ हासिल नहीं होगा. पार्टी आलाकमान तो सिर्फ दिशा-निर्देश देंगे, उन पर अमल जमीनी स्तर पर बुंदेलखंड के नेताओं और कार्यकर्ताओं को ही करना है. प्रियंका ने ये सख्त संदेश बुंदेलखंड के कार्यकर्ताओं को दिया कि ज़मीन पर काम करो, आपसी खींचतान से दूर रहो और पार्टी विरोधी हरकतों से बाज आओ वरना गाज गिरेगी. प्रियंका का ये संदेश उत्तर प्रदेश के हर कांग्रेसी के लिए भी है. उन्होंने अबतक लखनऊ में जितने भी नेताओं से मुलाकात की है उनको पहला सबक यही पढ़ाया है. यानी एक्शन के पहले दौर में प्रियंका कांग्रेस को जिंदा करने में लगी है.
चार सीटों की जंग, किसानों पर चढ़ेगा कांग्रेसी रंग?
बुंदेलखंड में जंग तो सिर्फ 4 लोकसभा सीटों की है, लेकिन बुंदेलखंड के जरिये कांग्रेस किसानों को लुभाना चाहती है. बुंदेलखंड में किसान अगर कांग्रेस पर भरोसा दिखाते हैं तो इसका असर पूरे सूबे के किसानों पर दिख सकता है. यानी 2019 में बुंदेलखंड में कांग्रेस का दम, असल में 2022 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की बड़ी ताकत बन सकता है. बुंदेलखंड के सात जिलों को मिलाकर 4 लोकसभा और 19 विधानसभा सीटें आती हैं. बुंदेलखंड में चुनावी नतीजों के जो आंकड़े सामने हैं वो ये भी बताते हैं कि बुंदेलखंड में लोग किस कदर मजबूर हैं और सियासत ने उनको किस तरह वोट बैंक बनाकर इस्तेमाल किया. साल 2009 के लोकसभा चुनावों में बुंदेलखंड में समाजवादी पार्टी सबसे बड़ा दल बनकर उभरी, लेकिन बुंदेलखंड की हालत में कोई बदलाव नहीं आया. साल 2014 में बुंदेलखंड ने बीजेपी पर भरोसा जताया और लोकसभा की चारों सीटें बीजेपी की झोली में गई. 2014 लोकसभा चुनाव से पहले और समाजवादी पार्टी से निराश बुंदेलखंड की जनता ने 2012 विधानसभा चुनावों में बीएसपी को सबसे बड़ी पार्टी बनाया. 19 विधानसभा सीटों में बीएसपी ने साल 2012 में 7 सीटें जीती, लेकिन 2012 में यूपी की सत्ता ही बीएसपी के हाथ से निकल गई तो जाहिर है कि बुंलेदखंड एक बार फिर खुद को ठगा महसूस करने लगा था, लेकिन 2014 में बीजेपी को लोकसभा में एकतरफा वोट देने के बाद बुंदेलखंड ने 2017 विधानसभा चुनाव में भी सभी सीटें बीजेपी की झोली में डालकर अपनी किस्मत बदलने की कोशिश की. इस सारे उलटफेर में कांग्रेस लगातार पिछड़ती ही गई. कांग्रेस का वोट प्रतिशत भी करीब 6 फीसदी के पास आकर ठहर गया. यानी बुंदेलखंड में कांग्रेस वोट और सीट दोनों का सूखा झेल रही है.
एमपी के सहारे बुंदेलखंड को साधेगी कांग्रेस?
प्रियंका को बुंलेदखंड से उम्मीद भी काफी है. इसकी वजह है बुंलेदलखंड का भौगोलिक मानचित्र, जहां कई जिले मध्यप्रदेश से जुड़ते हैं और मध्यप्रदेश की कमान अब कांग्रेस के हाथ में है. यानी मुमकिन है कि प्रियंका के दिमाग में मध्य प्रदेश के जरिये बुंदेलखंड को लुभाने की रणनीति हो. बुंलेदखंड के जालौन, झांसी, ललितपुर, चित्रकूट, हमीरपुर, बांदा और महोबा जिले उत्तर प्रदेश में आते हैं तो मध्यप्रदेश का सागर, दमोह, टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना, दतिया, भिंड जिले की लहार और ग्वालियर जिले की मांडेर तहसील के साथ ही रायसेन और विदिशा जिले का कुछ हिस्सा भी बुंदेलों के राज का हिस्सा रहा है. इनमें भिंड, ग्वालियर और छतरपुर तो यूपी के बेहद करीबी इलाके हैं. मध्यप्रदेश सरकार की ओर से किसानों को लुभाने के लिए किए जा रहे तमाम जतन, उत्तर प्रदेश से सटे बुलंदेलखंड पर असर डाल सकते हैं और प्रियंका गांधी इस सकारात्मक असर की आस लगा सकती हैं. किसानों को लेकर राहुल गांधी का रुख भी बुंलेदखंड को अपने पाले में लाने की जुगत भिड़ा रहा है. मोदी-योगी राज में बुदंलों की मुराद पूरी हुई?
राजनीतिक बदलाव के तमाम दौर देख चुके बुंदेलखंड ने पिछली बार लोकसभा से लेकर विधानसभा तक बीजेपी पर ही भरोसा दिखाया. डबल इंजिन वाला पीएम मोदी का मशहूर कथन बुंदेलखंड पर कितना खरा उतरा इसका फ़ैसला भी आगामी लोकसभा चुनाव में हो जाएगा. यूं तो बुंदेलखंड की प्यास और रोजगार की तलाश अबतक पूरी तरह से पूरी नहीं हुई है, लेकिन अपने वादों पर खरा उतरने की कोशिश पीएम मोदी ने इन साढ़े 4 सालों में ज़रूर की है. बुंदेलखंड को सुनहरे कल का सपना दिखाते हुए पीएम मोदी पाइप्ड पेयजल योजना और डिफेंस कॉरिडोर समेत कई योजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास कर चुके हैं. पीएम मोदी सिर्फ किसान ही नहीं बुंदेलखंड को भी न्यू इंडिया की तर्ज पर विकास की राह पर ले जाना चाहते हैं, लेकिन चाहने और कर गुज़रने के बीच में खड़ा है लोकसभा चुनाव-2019. इस रण में एक बार फिर सपने दिखाने की रणनीति बुंदेलखंड के सामने होगी. देखना ये है कि बदलाव और बेहतरी की आस लिए बुंदेलखंड कांग्रेस में हुए सबसे बड़े बदलाव यानी प्रियंका गांधी वाड्रा पर भरोसा दिखा पाता है या नहीं।
इस ब्लॉग के लेखक जयंत अवस्थी, News State UP/UK चैनल के संपादक हैं.
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