मध्य प्रदेश : आसान नहीं 2023 की राह
ये तो पहले से ही तय माना जा रहा था कि मध्य प्रदेश निकायों के नतीजे 2023 में होने वाले विधानसभा चुनावों का ट्रेलर होंगे. अब ये तस्वीर भी साफ भी हो चुकी है कि 2023 के चुनाव में बीजेपी-कांग्रेस में कैसा संघर्ष होने वाला है.
भोपाल:
ये तो पहले से ही तय माना जा रहा था कि मध्य प्रदेश निकायों के नतीजे 2023 में होने वाले विधानसभा चुनावों का ट्रेलर होंगे. अब ये तस्वीर भी साफ भी हो चुकी है कि 2023 के चुनाव में बीजेपी-कांग्रेस में कैसा संघर्ष होने वाला है. जो संकेत मिले हैं, या जो ट्रेंड दिखे हैं, उससे साफ है कि दोनों ही पार्टियों के लिए 2023 का संघर्ष कड़ा रहने वाला है. निकाय के नतीजों से जो तस्वीर निकलकर सामने आई है उसके मुताबिक चाहे बीजेपी हो या कांग्रेस राह किसी भी दल के लिए आसान नहीं है.
नतीजे बताते हैं कि मुकाबला जोरदार होगा और किसी भी दल को कमतर आंकना राजनीतिक अक्लमंदी तो कतई नहीं होगी. इससे पहले हुए निकाय चुनाव और इस बार के निकाय चुनाव के नतीजों का विश्लेषण इस पूरे समीकरण को और उलझा देता है. दरअसल, पिछले चुनाव में बीजेपी ने सभी 16 निगमों में जीत हासिल की थी, लेकिन इस बार 7 सीटें उसके हाथ से खिसक गईं. जिस कांग्रेस के पास पिछली बार एक भी सीट नहीं थी, वो इस बार 5 सीटें जीत गई.
हालांकि, कांग्रेस को छोटे शहरों में झटका लगा है, जबकि छोटे शहरों में बीजेपी की शानदार जीत हुई है. इसीलिए कहा जा रहा है कि 2023 में जहां कांग्रेस के सामने छोटे शहरों में आधार बढ़ाने की चुनौती होगी तो वहीं बीजेपी के लिए बड़े शहरों खासकर अपने गढ़ में दम दिखाने का दारोमदार होगा. इसका मतलब है कि न सिर्फ पार्टियों को अपना वोटबैंक बढ़ाना होगा, बल्कि जिन इलाकों को पारंपरिक गढ़ माना जाता है वहां पकड़ और मजबूत करने के साथ-साथ दूसरे दलों के प्रभाव वाले इलाकों और वोटबैंक में भी सेंध लगानी होगी.
पहले ये माना जा रहा था कि निकायों में एकतरफा मामला ना हो जाए, लेकिन जिस तरह से कांग्रेस के साथ आम आदमी पार्टी, जयस और AIMIM का दम दिखा है, उससे साफ है कि 2023 के चुनाव में भी कड़ी टक्कर देखने को मिल सकती है. वैसे सवाल तो ये भी है कि पार्टियों को 2023 के लिए क्या सबक मिला? तो टिकट क्राइटेरिया में बदलाव करना होगा, दमखम वालों को ही टिकट में प्राथमिकता देनी होगी.
प्रत्याशी चयन में दिग्गजों की सहमति जरूर हो, सिर्फ एक की पसंद का ख्याल ना रखा जाए. भितरघात से बचने के लिए सबका साथ जरूरी होगा, इसके साथ ही संगठन की बातों की अनदेखी ना हो, हर हाल में एकजुटता बनी रहे. ये कुछ ऐसे सबक हैं, जिनकी अनदेखी पार्टियों को 2023 में भारी पड़ सकती है, क्योंकि कहीं ना कहीं इन बातों की निकाय चुनाव में अनदेखी हुई है, और उसी वजह से पार्टियों को झटका लगा है.
ऐसे में अगर इतना कुछ होने के बाद भी 2023 में इन गलतियों को सुधारा नहीं गया तो पार्टियों को फिर इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है. ऐसा नहीं है कि राजनीतिक दलों को इन बातों की अहमियत का अंदाजा नहीं है, लेकिन फायदा तभी होगा जब इन्हें व्यावहारिक तौर पर सख्ती से लागू भी किया जाए.
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