logo-image

इन मुद्दों पर हो रही राजनीति से AAP को दिल्ली चुनाव में मिला जबरदस्त फायदा

16 फरवरी 2020 को आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे.

Updated on: 14 Feb 2020, 03:04 PM

नई दिल्ली:

दिल्ली विधानसभा चुनाव (Delhi Assembly Election 2020) में जीत को जहां आप विरोधी घृणा, धर्म, हिन्दू-मुस्लिम (Hindu-Muslim), हिंदुस्तान -पाकिस्तान (India-Pakistan) से इतर विकास और सकारात्मक राजनीति की जीत बता रही है वहीं बीजेपी समर्थकों का मानना है कि यह कांग्रेस के सरेंडर और विपक्षी मतों के धुर्वीकरण का परिणाम है। तमाम नैरेटिव से इतर राजधानी दिल्ली में आम आदमी पार्टी (Aam Adami Party) के प्रमुख अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejariwal) की ग्रैंड विक्ट्री (Grand Victory in Delhi Assembly Election 2020) का विश्लेषण करें तो सबसे पहले बिंदुवार मुद्दों पर आते हैं. 16 फरवरी 2020 को आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. 

1.सबसे बड़ा मुद्दा- CAA/NRC/शाहिन बाग... इस मुद्दे को लेकर आंदोलन रत लोग इसे संविधान बचाने की सबसे बड़ी क़वायद मानते हैं। इस आंदोलन के खिलाफ जहा बीजेपी के शीर्ष नेता चाहे पीएम मोदी हो या अमित शाह, सम्पूर्ण चुनाव काल में आक्रामक रहे तो वही इस मुद्दे से केजरीवाल ने समानांतर दूरी बनाए रखी। अगर यह मसला संविधान की रक्षा के लिए था तो सवाल है कि इस मंच से केजरीवाल दूर क्यों रहे?
क्या इस बात का डर था कि शाहिन बाग के पिच पर उतरते ही हिन्दू वोट बैंक का एक धड़ा खतरे में आ जायेगा?
जाहिर है इस डर ने ही केजरीवाल को शाहिन बाग से समानांतर दूरी बनाए रखने की सलाह दी।

यह भी पढ़ें: निर्भया केस: सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की राष्ट्रपति के फैसले के खिलाफ दायर दोषी विनय की अर्जी

2. धर्म का मुद्दा-
बीजेपी ने इन चुनाव में हिन्दू-मुसलमान से लेकर जय श्री राम को भी चुनावी मैदान में उतारा.
ऐसे में एक बार फिर आप के केजरीवाल के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी खुद को हिंदूवादी साबित करने की और अपने हिन्दू वोट बैंक में सेंध लगने से बचाने की। क्योंकि केजरीवाल बखूबी जानते थे कि एन्टी बीजेपी धुर्वीकरण में मुस्लिम वोट बैंक का खतरा उनके सामने दूर दूर तक नही है और इसके लिए उनका अमनुतुल्लाह काफी है।
लेकिन धार्मिक रूप से चुनावी ध्रुवीकरण अगर हुआ तो इसका सीधा नुकसान आप को होगा, लिहाजा केजरीवाल ने जय हनुमान के साथ चुनावी मैदान में गदा थामना बेहतर समझा और मौका मिलते ही हनुमान चालीसा पढ़ने लगे। यहां से और आगे बढ़ते हुये हनुमान मंदिर में प्रभु के दर्शन और उसके भरपूर कवरेज का शानदार इंतजाम किया और इस तरह हिन्दू- मुस्लिम जैसे गंभीर मुद्दे के पिच पर भी सॉफ्ट हिंदुत्व के सेफ्टी कवर के साथ बैटिंग करने में कामयाब रहे।

3. मुद्दा नंबर 3/ बदले बदले केजरीवाल.....
2013 से 2015 तक के चुनावों में आक्रामक रहे केजरीवाल ने विनम्रता और और शहनशीलता की असल सीख पंजाब चुनाव के बाद ली। उसके ठीक बाद से बदले बदले केजरीवाल ने मोदी के खिलाफ अपने आक्रामक रुख को बदल दिया और सॉफ्ट फेस के साथ दिल्ली केंद्रित हो गये क्योंकि वे बखूभी जानते है कि मुस्लिम वोट बैंक से इतर एक सामान्य हिन्दू वोट बैंक है जो लोकसभा चुनाव में बीजेपी और कमल पर शिफ्ट हो जाता है और वही वोट बैंक सूबे के चुनाव में उन्हें पसंद करता है लिहाजा इसे अपने साथ बनाये रखना तभी संभव है जब मोदी विरोध के बदले खुद के मुद्दों को ज्यादा तरजीह दी जाए।केजरीवाल इस राजनीति में भी बीजेपी को बैकफुट पर छोड़ने में कामयाब रहे।

4. फ्री बीज का मुद्दा....
दिल्ली जैसे सूबे में, बदले हुये डेमोग्राफ, महानगर की चुनौतियां, महंगाई की मार और 2000 से ज्यादा अवैध कॉलोनियों जबकि 1000से ज्यादा अवैध अधिकृत कॉलोनियों में सबसे बड़ा मुद्दा बिजली,पानी,स्कूल,हेल्थ और समुचित विकास का रहा है। यह एक कोर वोट बैंक है जो पूर्वांचल बहुल है और यहां रहने वाली आबादी के लिए बिजली और पानी की कीमतों का बोझ दशकों से मुद्दा रहा है। यह वही मुद्दा है जिसके दम पर सबसे पहले केजरीवाल ने 49 दिनों तक सत्ता का स्वाद चखा और फिर अपार बहुमत के साथ अगली बार 5 सालो के लिए सत्ता में आये। अपने फ्री बीस के जरिये इस वोट बैंक को केजरीवाल ने अपने साथ सहेज कर रखा। बिजली-पानी की कीमतों पर राहत को जारी रखते हुये कल्याणकारी योजनाओ में बसों को महिलाओ के लिए फ्री करना और मोहल्ला क्लिनिक के साथ साथ सरकारी अस्पतालों में इलाज के अभाव में निजी अस्पतालों में भी अपने कोस्ट पर सुविधाओ के दरवाजे खोल दिए। हासिये पर खड़े वर्ग और लोवर मिडल क्लास को अपने साथ फेविकॉल की जोड़ से जोड़ने में इन योजनाओ का अभूतपूर्व योगदान रहा जबकि दूसरी तरफ बीजेपी शासित एमसीडी ने लोगो को राहत के बदले उनकी सड़को और मुहल्लों को समय समय पर कूड़ेदान बनाया जिसकी बदबू से लोगो का जीना समय समय पर मुहाल होता रहा।

यह भी पढ़ें: मोदी सरकार (Modi Government) को बड़ा झटका, जनवरी में थोक महंगाई (WPI) में भी बढ़ोतरी

5. कांग्रेस का सरेंडर.....
मत प्रतिशत के लिहाज से देखे तो इस चुनाव में बीजेपी ने 6 % वोट शेयर पिछले विधानसभा से ज्यादा लिए जबकि आप को सिर्फ एक फीसदी वोट शेयर का नुकसान हुआ। वही 15 साल तक दिल्ली के सत्ता में रही कांग्रेस ने पूरे चुनाव में ऐसा सरेंडर किया कि 60 सीटों पर उसके उम्मीदवारों का जमानत जब्त हो गया और अपने निम्नतम स्तर पर खड़ी कांग्रेस को सिर्फ 4 फीसदी वोट मिले। कांग्रेस जानती थी कि चुनाव में खुद को खड़ा करना बीजेपी को फायदा पहुचाना होगा, ऐसे में कांग्रेस नेतृत्व ने बीजेपी को बैक फुट पर ढकेलने के लिए आप के चुनाव का समूचा मैदान खाली छोड़ दिया।

इन मुख्य बिन्दुओ से गुजरते हुये क्या आपको ऐसा लगता है कि यह सिर्फ विकास की जीत है,लोकतंत्र की जीत है, सेकुलरिज्म की जीत है और सकारत्मकता की जीत है?
तो शायद आप बड़े भोले है।

-इस चुनाव में बीजेपी ने जय श्री राम कहा तो केजरीवाल ने जय हनुमान!

-इस चुनाव में लोकतंत्र और संविधान की दुहाई देने वालो ने पूस की रात शाहिन बाग सड़को पर बिताई लेकिन कभी रायसीना रोड की सड़क पर सोनेवाले केजरीवाल ने शाहिन बाग की सड़कों की तरफ पूरे चुनाव में मुड़कर नही देखा!

- बीजेपी के अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा गोली मारो और आतंकवाद के तीर चला रहे थे तो आप के अमानतुल्लाह प्रेम के फूल नही बरसा रहे थे!

यह भी पढ़ें: BS-4 वाहन 31 मार्च तक ही बिकेंगे, सुप्रीम कोर्ट ने कार कंपनियों की याचिका ठुकराई

-दिल्ली की सड़कों पर CAA/NRC को लेकर हिंसा का नंगा नाच हुआ, विश्वविद्यालयों में छात्रों के अधिकार का हनन खाकी वर्दी ने किया और इस माहौल में बीजेपी बनाम आप के नेताओ की भूमिका को जरा आईने में उतार कर देख लीजिये.

फिर इस जीत के मायने निकलकर सामने आएंगे जिसमे जनता की चाहत और देश की राजनीति का भावी रुख आपको साफ साफ दिखाई देगा।