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Kachchatheevu Island: क्या तमिलनाडु में गेम चेंजर साबित होगा कच्चातिवु मुद्दा? पढ़ें पीछे की कहानी

Kachchatheevu: लोकसभा चुनाव से पहले कच्चातिवु द्वीप का मुद्दा अचानक गर्मा गया है...19 अप्रैल के पहले चरण के तहत तमिलनाडु में होने वाले चुनाव में यह मुद्दा कितना प्रभावी रहेगा.

Updated on: 10 Apr 2024, 02:42 PM

New Delhi:

Kachchatheevu Island: लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने पूरे देश में क्लीन स्विप कर दिया तो पार्टी दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में कोई प्रभाव बनाने में असफल रही.  2019 में पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली क्योंकि DMK के नेतृत्व वाले मोर्चे ने राज्य की 39 लोकसभा सीटों में से 38 पर जीत हासिल की. बीजेपी ने 2014 के चुनावों में केवल एक सीट जीती जब AIADMK ने 37 सीटें जीतीं (एक सीट PMK ने जीती थी). वहीं, 2024 लोकसभा चुनाव के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी पार्टी के लिए 400 से ज्यादा सीट हासिल करने का लक्ष्य रखा है. भारतीय जनता पार्टी के अबकि बार 400 पार...वाले नारे में तमिलनाडु बड़ी भूमिका निभा सकता है. 39 सीटों वाले तमिलनाजु में पहले चरण (19 अप्रैल) को मतदान होना है. 

लोकसभा चुनाव 2024 से पहले कच्चातिवु द्वीप अचानक से सुर्खियों में

लोकसभा चुनाव 2024 से पहले कच्चातिवु द्वीप अचानक से सुर्खियों में आ गया है. आलम यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी चुनावी रैलियों में भी कच्चातिवु द्वीप का खूब जिक्र कर रहे हैं. बीजेपी और पीएम मोदी जहां कच्चातिवु को लेकर कांग्रेस पर हमलावर है, वहीं देश की सबसे पुरानी पार्टी इस मुद्दे पर चुप्पी साधती नजर आ रही है. बीजेपी का आरोप है कि 1974 में जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार तो यह द्वीप श्रीलंका को दे दिया गया था. फिलहाल कच्चातिवु जहां देशभर में चर्चा का विषय बना है, वहीं इस मुद्दे ने तमिलनाडु में सियासी उबाल ला दिया है. ऐसे में ये जानना बहुत जरूरी है कि ये कच्चातिवु द्वीप और उससे जुड़े मुद्दा है क्या और तमिलनाडु से इसका क्या संबंध है. 

क्या तमिलनाडु में गेम चेंजर साबित हो सकता है कच्चतिवु का मुद्दा

दरअसल, चुनाव से ऐन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से कच्चातिवु मुद्दे को छेड़ा और फिर गर्माया, उसके पीछे एक ठोस वजह है. यूं तो तमिलनाडुवासियों का कच्चातिवु द्वीप से एक भावनात्मक जुड़ाव है, लेकिन मछुआरों के इससे सीधे हित जुड़े हुए हैं. कच्चातिवु द्वीप भारतीय मछुआरों के लिए न केवल जाल सुखाने का स्थान है, बल्कि वो यहां मछलियां पकड़ने भी जाते हैं. ऐसे में कच्चातिवु तमिलनाडु के मछुवारों के लिए बड़ा मुद्दा बन सकता है, जिसका सीधा फायदा बीजेपी को होगा. एक रिपोर्ट के अनुसार तमिलनाडु में मछुआरे 14 तटीय जिलों के 38 निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव परिणाम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे. कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में लगभग 40% मतदाता मछुआरे हैं. 

कहां स्थित है कच्चातिवु द्वीप

दरअसल, कच्चातिवु भारत और श्रीलंका के बीच पाक जलसंधि में 285 एकड़ में फैला एक निर्जन द्वीप है. यह द्वीप तमिलनाडु में भारतीय तट रामेश्वरम से करीब 33 किलोमीटर दूर और श्रीलंका के जाफना से लगभग 62 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. पीने के पानी का कोई स्रोत उपलब्ध न होने के कारण कच्चातिवु एक गैर-आबादी वाला निर्जन द्वीप है. 

पहले श्रीलंका और फिर भारत का हुआ कब्जा

कच्चातिवु द्वीप का निर्माण 14वीं शताब्दी में ज्वालामुखी विस्फोट की वजह से हुआ था. माना जाता है कि ज्वालामुखी से निकले लावा ने इस द्वीप के निर्माण से बड़ी भूमिका निभाई. जानकारी के अनुसार शुरुआती दौर में इस द्वीप पर श्रीलंका के जाफना साम्राज्य का शासन था, लेकिन बाद में 17वीं शताब्दी के आसपास यह मदुरै के रामनाद जमीदारी की हिस्सा हो गया.

1974 में कांग्रेस सरकार ने श्रीलंका को सौंपा था कच्चातिवु

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 1994 में जब कांग्रेस की सरकार थी और इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी तो भारत और श्रीलंका के बीच एक समझौता हुआ. इस समझौते में भारत सरकार ने कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया था. हालांकि कच्चातिवु श्रीलंका को सौंपते समय कुछ नियम व शर्ते रखी गईं थी. शर्त यह थी कि इस द्वीप पर भारतीय मछुआरों को जाल सुखाने और आराम करने की इजाजत होगी. इसके साथ ही इस द्वीप पर आने-जाने के लिए भारतीय मछुआरों को किसी वीजा की जरूरत नहीं पड़ेंगी. लेकिन बाद में श्रीलंका ने इन नियमों को नहीं माना और इस द्वीप पर भारतीय मछुआरों की पहुंच को बैन कर दिया गया. यहां तक कि हजारों भारतीय मछुआरों को गिरफ्तार किया गया, उनकी नाव को कब्जे में लिया जाने लगा था.