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Gujarat Election: गुजरात विजय का टर्निंग पॉइंट, जानें-कैसे चुनाव जीते नरेंद्र मोदी

Gujarat Election: गुजरात विधानसभा चुनाव पर देश ही नहीं, दुनिया की निगाहें थी. जिसे बीजेपी ने भारी बहुमत हासिल करके जीत लिया है. गुजरात में इस बार ऐसी जीत मिली है, जो अब तक कभी नहीं मिली थी. वैसे- गुजरात में बीजेपी को माफ कीजिए मोदी को प्रचंड...

Updated on: 09 Dec 2022, 02:26 PM

highlights

  • गुजरात में बीजेपी ने रचा इतिहास
  • ब्रांड मोदी की बदौलत मिली जीत
  • नरेंद्र मोदी की रणनीति पड़ी सब पर भारी

नई दिल्ली:

Gujarat Election: गुजरात विधानसभा चुनाव पर देश ही नहीं, दुनिया की निगाहें थी. जिसे बीजेपी ने भारी बहुमत हासिल करके जीत लिया है. गुजरात में इस बार ऐसी जीत मिली है, जो अब तक कभी नहीं मिली थी. वैसे- गुजरात में बीजेपी को माफ कीजिए मोदी को प्रचंड जीत मिली है, जी हां ये जीत पीएम मोदी की है और मोदी की ही है. 182 में से 158 सीट जीतकर 47 साल सबसे ज्यादा सीटों के साथ सरकार बनाने का माधवसिंह सोलंकी का रिकॉर्ड भी टूट गया, तो इसका सेहरा बीजेपी के सिर नहीं मोदी के सिर बंधेगा. अब आप सोच रहे होंगे कि मोदी और बीजेपी तो एक ही हैं, बीजेपी पार्टी है और मोदी उसके नेता, सिंपल... फिर मैं मोदी मोदी क्यों रट रहा हूं. लेकिन राजनीति में हिसाब किताब इतना सिंपल होता तो फिर रीड विटवीन लाइन्स जैसे मुहावरे अपना अर्थ ही खो देंगे. हिमाचल और गुजरात के नतीजों को समझने के लिए इनके बीच छुपे संदेशों को भी समझना और बूझना पड़ेगा कि मोदी कैसे जीतते हैं, कैसे फैसले लेते हैं और कैसे सफाई से गलत फैसलों को सुधार भी लेते हैं,

चलिए आपको पिछले साल 11 सितंबर की एक घटना बताता हूं, आपको भी पता होगी, लेकिन फिर से बताता हूं. सुबह का वक्त था गुजरात के अहमदाबाद में किसी गर्ल्स हॉस्टल की आधारशिला रखी जा रही थी, इस कार्यक्रम में गुजरात के तत्कालीन सीएम विजय रूपानी मौजूद थे और साथ में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए जुड़े थे, देश के प्रधानमंत्री और गुजरात के पूर्व सीएम नरेंद्र मोदी. रूपानीने भाषण दिया, मोदी ने भी वर्चुअली इस कार्यक्रम को संबोधित किया, कार्यक्रम खत्म हुआ, सारे लोग अपने घर या दफ्तर उन्हें जहां जाना था चले गए जैसे किसी कार्यक्रम में शामिल होने के बाद हम और आप जाते हैं, सबकुछ सामान्य था,  लेकिन गुजरात के तत्कालीन सीएम विजय रूपानी राजभवन की तरफ गए, वहां राज्यपाल से मुलाकात की और अपना इस्तीफा उन्हें दे दिया. बाहर आए और मीडिया में भी घोषणा कर दी कि उन्होंने गुजरात के सीएम पद से इस्तीफा दे दिया है. अगले दिन ही दिल्ली से पार्टी के ऑब्जर्वर गुजरात जाते हैं और भूपेंद्र पटेल विधायक दल की बैठक में सीएम चुन लिए जाते हैं. जब भूपेंद्र पटेल को सीएम बनाने की भूमिका बनायी जा रही थी, तब वो अपने विधानसभा क्षेत्र के किसी हिस्से में सड़क किनारे पौधारोपण कर रहे थे. ये सब 24 घंटे के भीतर ऐसे घटा कि कुछ हुआ ही न हो. क्योंकि मोदी है तो ये भी मुमकिन है. अब समझिए कि एक साल पहले एक ऐसे नेता को जिसके चेहरे को देश तो छोड़िए गुजरात में ही कम लोग जानते थे, गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया, चुनाव के 14 महीने पहले.  और आज जब गुजरात चुनाव के नतीजे आए हैं, तो उसी चेहरे की अगुआई में बीजेपी पिछले 50 साल की सबसे बड़ी जीत दर्ज करती है, 158 सीट हासिल करती है, वो 27 साल सत्ता में रहने के बाद, तो सेहरा मोदी के मस्तक पर ही होगा.

बीजेपी की जीत का सेहरा मोदी के सिर सजेगा, तो चमत्कार सिर्फ मोदी के चेहरे का ही नहीं है, मोदी की रणनीति और मोदी के मैसेज यानी संदेश भी जीत का जरिया बनते हैं. गुजरात की जीत को सामने रखकर अगर हम कुछ पीछे जाएंगे, तो ये बात और पुख्ता होगी कि ब्रांड मोदी की मजबूती रिस्क और कॉन्फीडेंस दोनों ही बातों से लबरेज है. पिछले साल की ही बात है, उत्तराखंड में बीजेपी के लिए सरकार बचाना मुश्किल लग रहा था, बीजेपी ने उत्तराखंड में चुनाव से एक साल पहले सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाकर तीरथ सिंह रावत को सीएम बना दिया, लेकिन इस कदम में बीजेपी को कहीं चूक लगी तो छह महीने पहले फिर उत्तराखंड में तीसरे सीएम पुष्कर सिंह धामी को लाने में हिचक नहीं की, यही ब्रांड मोदी का कॉन्फीडेंस है, नतीजा ये हुआ कि एग्ज़िट पोल तक फंसे उत्तराखंड चुनाव को बीजेपी ने आसानी से जीत लिया. 

लेकिन बात ये भी है कि मोदी का मैजिक है, मोदी का मंत्र है और मोदी का चेहरा है, तब बीजेपी के विजय रथ हिमालय पर क्यों नहीं चढ़ पाया. क्यों बीजेपी की विक्ट्री मशीन हिमाचल में हांफ गई, तो गुजरात की जीत के साथ बात हिमाचल की हार की भी होगी, गुजरात में जीत का सेहरा मोदी के सिर तो फिर हिमाचल की हार का ठीकरा मोदी के माथे क्यों नहीं, पिछले साल उपचुनाव में जनता ने सरकार से नाराज़गी की संदेश भी दे दिया और सीएम जयराम ठाकुर के ही इलाके में उन्हें चुनौती भी मिली, लेकिन हिमाचल की सियासी परिस्थिति में मोदी बदलाव का फैसला नहीं ले पाए, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा के गृहराज्य में सीएम का चेहरा नहीं बदल पाए मोदी और शायद हिमाचल का हर चुनाव में सरकार बदलने का रिवाज़ भी इसीलिए नहीं बदल पाये मोदी. इसके पहले झारखंड में भी 2019 में सीएम का चेहरा नहीं बदला था और बीजेपी को राज्य गंवाना पड़ा था, 

हरियाणा में भी बिना चेहरा बदले जीत से दूर रही थी बीजेपी, भले ही यहां दूसरी पार्टी के विधायकों की मदद से सरकार बन गई हो. इसका मतलब है कि जहां जहां मोदी कड़े फैसले ले पाए, राज्यों में चेहरे बदल पाए, वहां बीजेपी बेहतर कर पायी, सरकार बना पायी और मौजूदा सरकार को बचा पायी, क्या आगे भी आने वाले राज्यों के चुनाव में ऐसा होगा, इसके बीच की लाइनों को पढ़ने (रीड विटवीन द लाइन्स) का सिलसिला गुजरात और हिमाचल के चुनाव की चकल्लस के बाद किसी दिन फुर्सत में छेडेंगे, अभी फिर से गुजरात की रिकॉर्डतोड़ जीत पर लौटते हैं. अब गुजरात में प्रचंड जनादेश के मायने हैं कि चेहरा सिर्फ मोदी का हो तो जीत की गारंटी है, रणनीति मोदी की हो तो जीत का भरोसा भी है. क्योंकि गुजरात में लड़ाई इस बार शुरुआत से जीतने या सरकार बनाने की नहीं थी, बल्कि इस बार तो उस नए रिकॉर्ड को कायम करने की थी, जिसे अपने सीएम रहते पूरा नहीं कर पाने का मलाल कहीं मोदी के मन में था.  इस बार वो टूट गया कांग्रेसी सीएम माधवसिंह सोलंक 145 सीटों के साथ जीते थे, अब बीजेपी की जीत का आंकड़ा उससे कहीं ज्यादा है और मोदी जीत के हीरो है. 

इसे समझने के लिए भी गुजरात चुनाव में बीजेपी की कैंपेन रणनीति को समझना पड़ेगा, कांग्रेस पहले ही बैकफुट पर थी, लेकिन उसका वोट बैंक मौजूद है और दूसरी बीजेपी के लिए सत्ता विरोधी फैक्टर भी था, ऐसे में जीत की उम्मीद तो की जा सकती थी, लेकिन प्रचंड जनादेश की नहीं, इसीलिए जानबूझकर बीजेपी ने बयानों और सरकारी एक्शन से आम आदमी पार्टी की गुजरात में मौजूदगी से हवा दी. केजरीवाल दम ठोक ही रहे थे, उनकी पार्टी पर बीजेपी की तरफ से हुए हमलों ने उन्हें और प्रासांगिक बना दिया, दिल्ली में शराब घोटाले में मनीष सिसौदिया पर शिकंजा और इससे जुड़े लोगों की गिरफ्तारियों ने आप को गुजरात के मुकाबले में फ्रंट पर ला दिया, लेकिन जैसे ही कैंपेन अपने चरम पर पहुंचता है, अमित शाह और मोदी के बयानों में कांग्रेस का जिक्र आने लगा, इस रणनीति से फायया ये हुआ कि बीजेपी के विरोधी वोट एक जगह इकट्ठा होने के बजाये कांग्रेस और केजरीवाल के बीच बंट गए, बस यही तो मोदी की रणनीति थी जिसके जरिए उन्होंने वो हासिल कर लिया जो वो अपने सीएम रहते हासिल नहीं कर पाये थे.