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General Elections 2019: यूपी में मुलायम के सहारे चाचा शिवपाल और भतीजे अखिलेश का दांव-पेच

लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2019) की सबसे बड़ी बिसात तो यूपी में ही बिछी है.यूपी की इस बिसात में सियासत के सारे धुरंधर ताल ठोंक रहे हैं.

Updated on: 13 Mar 2019, 02:38 PM

नई दिल्‍ली:

लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2019) की सबसे बड़ी बिसात तो यूपी में ही बिछी है.यूपी की इस बिसात में सियासत के सारे धुरंधर ताल ठोंक रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) , मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath), कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi), कांग्रेस की ट्रंप कार्ड प्रियंका (Priyanka Gandhi), बीएसपी अध्यक्ष मायावती (Mayawati) , एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) , एसपी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) इस बिसात पर हर कोई अपना मज़बूत से मज़बूत दांव चल रहा है तो विपक्षियों को चित करने की हर रणनीति आज़मा रहा है.एसपी-बीएसपी का गठबंधन भी इसी रणनीति का हिस्सा है तो प्रियंका गांधी वाड्रा का सक्रिय राजनीति में उतरना भी इसी रणनीति का हिस्सा है.

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लेकिन अपनी और विपक्षी रणनीति के बीच एक और ख़तरा सामने है.इस ख़तरे से फिलहाल कांग्रेस तो दूर है, लेकिन बीजेपी, एसपी और बीएसपी के सामने ये ख़तरा ज्यादा बड़ा है.ये ख़तरा है अपनों से निपटने का. वो अपने जो दिखा रहे हैं आंखें. एसपी के सामने ये ख़तरा डबल है, क्योंकि एक तो एसपी ने बीएसपी के साथ गठबंधन किया है, जिसकी वजह से उसकी आधी सीटों पर उम्मीदवारों की नाराज़गी है.दूसरी मुश्किल है घर की महाभारत.जब से भतीजा यानी अखिलेश यादव फुल फॉर्म में आए हैं, तब से चाचा यानी शिवपाल यादव भी ताल पर ताल ठोंक रहे हैं.दोनों के ही सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव है, लिहाजा यूपी में मुलायम के सहारे चाचा शिवपाल और भतीजे अखिलेश का दांव-पेच चल रहा है.

मुलायम ही तलवार, मुलायम की ढाल

समाजवादी पार्टी में मुलायम सिंह की स्थिति इस समय ऐसी है कि चाचा शिवपाल का खेमा उन्हें तलवार के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है तो अखिलेश का खेमा अब मुलायम को ही ढाल के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है. पुत्र अखिलेश ने जब से पिता मुलायम की गद्दी हथियाई है तब से चाचा शिवपाल इस फिराक़ में हैं कि मुलायम पूरी तरह से उनके साथ जुड़ जाएं.मुलायम भी गाहे-बगाहे अखिलेश को नसीहतें देते रहते हैं.लेकिन जिस समाजवादी पार्टी को खुद मुलायम ने पैदा किया.अपने ख़ून-पसीने से सींचा उसके संरक्षक तो वो आज भी हैं.अखिलेश भी आखिर को तो बेटा ही है. सियासी उठापटक की वजहें होती हैं और वजहों के मुताबिक ही नतीजे सामने आते हैं.

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ऐसे में जब अखिलेश ने अपनी पार्टी में सत्ताग्रह किया तो वो पिता से बगावत नहीं थी.पिता का सम्मान तो अखिलेश हर बेटे की तरह करते आए हैं.और अब उन्होंने सबसे बड़ा सबूत भी पेश कर दिया है. अखिलेश ने साफ कर दिया है कि मुलायम सिंह यादव अपनी सबसे पसंदीदा सीट मैनपुरी से ही चुनवा लड़ेंगे. ये एक बेटे के तौर पर अखिलेश का पिता मुलायम को दिया सम्मान है.पार्टी अध्यक्ष के तौर पर लिया गया एक रणनीतिक फैसला है और सबसे अहम.ये एक सियासी कूटनीति है चाचा शिवपाल से निपटने के लिए।

भतीजे अखिलेश ने चाचा शिवपाल को किया चित

मैनपुरी सीट मुलायम सिंह का अपराजित किला है. मुलायम पहली बार 1996 में यहां से सांसद बने थे.तब से अबतक ये सीट समाजवादी पार्टी का अजेय गढ़ है.यहां से बलराम यादव और मुलायम के भतीजे धर्मेंद्र भी सांसद रह चुके हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में जब मोदी की सूनामी ने यूपी में सारे विपक्षियों को साफ कर दिया उस वक्त भी मुलायम सिंह यादव ने आज़मगढ़ के साथ मैनपुरी सीट से भी फतह हासिल की. हालांकि बाद में आज़मगढ़ को अपने पास रखते हुए मुलायम ने मैनपुरी सीट छोड़ दी थी, जिस पर उपचुनाव में मुलायम के पौत्र तेजप्रताप सांसद चुने गए.

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अब 2019 के महारण में अखिलेश ने मुलायम को मैनपुरी से उम्मीदवार बताकर शिवपाल यादव को पूरी तरह चित करने की कोशिश की है. दरअसल मुलायम और शिवपाल ने मिलकर ही समाजवादी पार्टी खड़ी की है, इस बात को अखिलेश भी अच्छी तरह जानते हैं. इसका मतलब ये भी है कि जो सीट मुलायम का अजेय किला है, वहां शिवपाल का वजूद भी स्वाभाविक है. भतीजे से ख़फ़ा चाचा शिवपाल समाजवादी पार्टी के गढ़ में सेंध लगाने की कूवत रखते हैं.ये सेंध कितनी तगड़ी होगी इसके बारे में कहना फिलहाल मुश्किल है, लेकिन सेंध तो लग सकती है.इनमें मैनपुरी एक अहम सीट है .

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साथ ही फिरोज़ाबाद और कन्नौज ऐसी सीटें हैं, जहां शिवपाल, अखिलेश का खेल बिगाड़ने की फिराक़ में हैं.मुलायम सिंह को आज भी अपना और अपनी पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) का सरपरस्त बताने वाले शिवपाल, मुलायम के जरिये ही समाजवादी पार्टी के वोटबैंक को इमोशनल ग्राउंड पर हथियाने की फिराक़ में हैं, जहां मुलायम सिंह को अखिलेश के खिलाफ तलवार की तरह इस्तेमाल करना चाहते हैं शिवपाल.लेकिन चाचा की चतुराई को समझते हुए अखिलेश ने मुलायम को ही अपनी ढाल बना लिया. जिन सीटों पर शिवपाल खेल बिगाड़ सकते हैं उसका केंद्र बिंदु बने मैनपुरी में मुलायम सिंह की उम्मीदवारी के जरिये अखिलेश ने यही दांव चला है.

लोकसभा चुनाव में एसपी के रिश्तों का खेल

पिता.चाचा.भतीजा. लोकसभा चुनाव की इस जंग में पूरा यादव खानदान इस बार सियासी बिसात पर है.कौन किस खेमे में है ये चुनाव के नज़दीक आने के साथ ही साफ होगा.लेकिन मुलायम के जरिये चाचा-भतीजा दाव-पेच चल रहे हैं तो खानदार के दूसरे किरदार भी टक्कर में हैं. कन्नौज से इस बार अखिलेश अपनी पत्नी डिंपल यादव को नहीं लड़ाएंगे बल्कि खुद ही ताल ठोंकेंगे और चाचा को आईना दिखाएंगे.

तो शिवपाल सिंह यादव ने फिरोजाबाद लोकसभा सीट से लड़ने की हुंकार भर रखी है. फिरोज़ाबाद से शिवपाल के चचेरे भाई और समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव सांसद हैं. इस खेल की वजह भी साफ है.पार्टी पर कब्जे को लेकर अखिलेश और शिवपाल की जंग में रेफरी अखिलेश के दूसरे चाचा रामगोपाल यादव ही बने थे.और रेफरी ने अखिलेश का साथ दिया था. अब लोकसभा चुनाव में शिवपाल, रामगोपाल के बेटे के सामने चुनौती बनकर असल में अपने चचेरे भाई रामगोपाल को सबक सिखाना चाहते हैं. शिवपाल अपनी पार्टी के जरिये यादव परिवार और उसके कई करीबियों को आमने-सामने लाकर जीत का समीकरण बिगाड़ने की फिराक़ में हैं. इसमें मुलायम की छोटी बहू अपर्णा यादव, शिवपाल की पत्नी सरला यादव और बेटा आदित्य भी मोहरा हो सकते हैं.

मुलायम प्रेमियों पर शिवपाल की नज़र

शिवपाल यादव की नजर परिवार और खानदान से आगे हर उस कद्दावर नेता पर है जो खुद को मुलायम सिंह के साथ जोड़कर देखता आया है. कई ऐसे नेता भी हैं, जिनकी टिकट बीएसपी के साथ समझौते की वजह से कटना तय है.इन सबको एक सूत्र में पिरोना चाहते हैं शिवपाल यादव.इसीलिए पूरी ठसक के साथ शिवपाल लोकसभा चुनाव में अपनी रणनीति पर आगे बढ़ रहे हैं.उन्हें उम्मीद है कि उनकी कूटनीति अखिलेश को धराशायी कर सकती है.

ख़ास बात ये है कि शिवपाल की उम्मीद पर कांग्रेस को भी पूरा यकीन लगता है, इसीलिए कांग्रेस और शिवपाल की पार्टी में गठबंधन की चर्चा भी जोरो पर है. प्रियंका गांधी भी उत्तर प्रदेश में छोटे-छोटे ऐसे दलों को अपने साथ जोड़ना चाहती हैं, जो अकेले दम पर बेशक़ ज़ीरो नज़र आएं. लेकिन कांग्रेस उनको अपने साथ जोड़ कर दस और सौ बनना चाहती है. ये गठबंधन जातीय समीकरण के आधार पर ही नज़र आता है.लेकिन अफसोस विकास और मुद्दों के तमाम दावों के बावजूद यूपी में चुनावी जीत का समीकरण तो आज भी जाति पर ही टिका है. ऐसे में अखिलेश यादव.मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव का त्रिकोण यूपी की सियासत में कोई नया गुल खिला सकता है.