General Elections 2019: राजधानी दिल्ली में रोजाना दिख रहे सियासत के नए रंग
लेकिन गठबंधन की अफवाहों के बीच आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की सात लोकसभा सीटो में से 6 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर मामले को दिलचस्प बना दिया है.
नई दिल्ली:
राजधानी दिल्ली में सियासत के रोजाना नए रंग देखने को मिल रहे हैं. कभी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दिल्ली में जीरो सीट पर सिमटी कांग्रेस से गठबंधन की गुहार लगा रहे हैं तो कभी गठबंधन पर तल्ख तेवर दिखा रही कांग्रेस नरम पड़ती दिखती है. लेकिन गठबंधन की अफवाहों के बीच आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की सात लोकसभा सीटो में से 6 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर मामले को दिलचस्प बना दिया है. इतना ही नहीं पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस बेशक ही पार्टी के मजबूत होने की बात कह रही हो लेकिन आप को लगता है कि कांग्रेस आगामी लोकसभा चुनावों में वोट कटुआ साबित होने लायक भी वोट नहीं जुटा पाएगी. यही वजह है कि आम आदमी पार्टी ने बिना देरी किये अपने 6 उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है.
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दिल्ली में 2013, 2014, 2015 और 2017 के चुनावो में भी त्रिकोणीय मुकाबला हुआ था और इन सभी चुनावो में कांग्रेस तीसरे नंबर पर रही थी. लेकिन इस बार प्रदेश में कांग्रेस की कमान बदलने से उत्साही कांग्रेसियों का मानना है कि शीला दीक्षित ने कांग्रेस को मजबूत किया है. वहीं कांग्रेस ने पहले दिन आते ही साफ कर दिया था की आम आदमी पार्टी से कोई गठबंधन नही होगा और आप के 6 प्रत्याशियों की सूची से कुछ खास फर्क नहीं पड़ने वाला है. दिल्ली कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष राजेश लिलोठिया का तो यहां तक मानना है कि लोकसभा का चुनाव राहुल गांधी vs मोदी का चुनाव है और आम आदमी इस पूरे चुनाव में कहीं नहीं टिकती.
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भाजपा जानती है कि चुनाव सिर पर है और कांग्रेस -आप की लड़ाई का सीधा फायदा उन्हें मिल सकता है. यही वजह है कि नेता विपक्ष आप की सूची को कमज़ोर और आंखों का धोखा बता रहे हैं. भाजपा का मानना है कि सूची जारी कर आम आदमी पार्टी एक बार फिर गठबंधन के लिए कांग्रेस पर दबाव बना रही है.
दिल्ली की चुनावी लड़ाई त्रिकोणीय होने के साथ ही दिलचस्प भी हो गयी है. क्योंकि 2014 में भाजपा ने 7 सीटों पर विजय पताका फहराई थी और उस वक़्त भी आप दूसरे और कांग्रेस तीसरे नंबर पर रही थी जबकि दोनो दलों का वोट प्रतिशत भाजपा से ज्यादा था यानी गठबंधन होता तो भाजपा की राह मुश्किल हो सकती थी. कांग्रेस भाजपा और आप तीनो ही पार्टीयो के 2019 का लोकसभा चुनाव जीतने के अपने अपने दावे है लेकिन 2014 की तर्ज पर अलग अलग चुनाव लड़ रही पार्टीयो का चुनावी गणित तो जनता को ही तय करना है.
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