World Press Freedom Day 2025: भारतीय लोकतंत्र की नींव को मजबूत करने में पत्रकारिता की भूमिका किसी सेनानी से कम नहीं रही है. भारत में पत्रकारिता की शुरुआत हुई थी उस दौर में, जब देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था. पत्रकार कलम को हथियार बना आजादी की अलख जगा रहे थे. और आज, जब हर साल 3 मई को 'वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे' मनाया जाता है, तो सवाल उठता है कि क्या पत्रकारिता आज भी उसी जज्बे और जिम्मेदारी के साथ खड़ी है?
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भारत में पत्रकारिता की नींव कैसे रखी गई थी?
भारत में पत्रकारिता की शुरुआत 1780 में जेम्स ऑगस्टस हिकी के ‘हिकीज बंगाल गजट’ से मानी जाती है. ये अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने वाला पहला अखबार था. इसके बाद राजा राममोहन राय ने ‘मिरात-उल-अखबार’ निकाला और बाल गंगाधर तिलक ने 'केसरी' और 'मराठा' के जरिए जनता को ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जागरूक किया. स्वतंत्रता संग्राम के समय पत्रकारिता का उद्देश्य था- जनता को सच्चाई बताना, विचारों को साझा करना और सत्ता से सवाल पूछना.
आज की पत्रकारिता: सशक्त या सेंसरशिप के साये में?
आज पत्रकारिता का दायरा बड़ा हुआ है, लेकिन चुनौतियां भी बढ़ी हैं. डिजिटल दौर में न्यूज पोर्टल, यूट्यूब चैनल्स और सोशल मीडिया ने सूचनाओं को त्वरित यानी कि इंस्टेंट बना दिया है. लेकिन इसके साथ-साथ फेक न्यूज, ट्रोलिंग, और सरकारी दबाव जैसी चुनौतियां भी सामने हैं. वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2025 में भारत की रैंकिंग 151 रही- जो चिंता का विषय है. कई पत्रकारों को रिपोर्टिंग के दौरान धमकियां मिलती हैं, केस दर्ज होते हैं, कुछ को जेल भी जाना पड़ता है.
कलम की धार कमज़ोर नहीं, लेकिन दबाव जरूर है
हाल के वर्षों में पत्रकारिता पर कई दबाव देखने को मिले हैं- राजनीतिक, कॉर्पोरेट और कभी-कभी सामाजिक भी. फिर भी देशभर में ऐसे कई पत्रकार हैं जो जमीनी हकीकत से जुड़ी रिपोर्टिंग कर रहे हैं, सत्ता से सवाल पूछ रहे हैं और लोकतंत्र की चौथी शक्ति को जिंदा रखे हुए हैं.
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आज की दिशा: टेक्नोलॉजी से ताकत, लेकिन सतर्कता जरूरी
AI, डेटा जर्नलिज्म और मोबाइल रिपोर्टिंग ने पत्रकारिता को पहले से ज्यादा स्मार्ट और तेज बनाया है. लेकिन इस टेक्नोलॉजी का दुरुपयोग भी उतना ही तेज है. ऐसे में पत्रकारों और पाठकों दोनों को सतर्क रहना जरूरी है.