इस गांव में लोग भूलकर भी नहीं पहनते जूते-चप्पल, रिवाज ऐसा कि जानकर भी नहीं होगा यकीन!

अंडमान गांव तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई से करीब 450 किलोमीटर दूर स्थित है, जहां रहने वाले लोग आज भी जूते-चप्पल नहीं पहनते हैं. वे ऐसा क्यों करते हैं इसकी वजह जानकर आप चौंक जाएंगे.

अंडमान गांव तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई से करीब 450 किलोमीटर दूर स्थित है, जहां रहने वाले लोग आज भी जूते-चप्पल नहीं पहनते हैं. वे ऐसा क्यों करते हैं इसकी वजह जानकर आप चौंक जाएंगे.

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Ravi Prashant
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अंडमान गांव की प्रथा (NN)


तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई से करीब 450 किलोमीटर दूर स्थित एक गांव अंडमान, अपनी अनूठी परंपराओं और विश्वासों के कारण दुनिया भर में जाना जाता है. बीबीसी की 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस गांव के लोग चप्पल और जूते नहीं पहनते हैं. ये परंपरा सिर्फ सांस्कृतिक आदान-प्रदान का हिस्सा नहीं बल्कि धार्मिक आस्था और मान्यताओं से गहराई से जुड़ी हुई है.

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मुथ्यालम्मा देवी की आस्था बनाता है अलग

अडमान गांव के लोग मानते हैं कि उनकी रक्षा मुथ्यालम्मा देवी करती हैं. देवी मुथ्यालम्मा के सम्मान में इस गांव के लोग गांव के भीतर कभी भी जूते या चप्पल नहीं पहनते हैं. उनके लिए उनका गांव किसी मंदिर से कम नहीं है और मंदिर के भीतर जूते या चप्पल पहनना पवित्रता का उल्लंघन माना जाता है. यह आस्था गांव के हर व्यक्ति में गहराई से बसी हुई है और गांव के लोग इस परंपरा का पालन पूरी निष्ठा के साथ करते हैं.

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गर्मी के मौसम में होते हैं अस्थायी परिवर्तन

हालांकि, गर्मी के मौसम में स्थिति थोड़ी भिन्न हो जाती है. जब ज़मीन बहुत अधिक गर्म हो जाती है तो कुछ लोग अस्थायी रूप से चप्पल पहन लेते हैं. लेकिन यह भी पूरी सतर्कता के साथ किया जाता है ताकि देवी की भावना को ठेस न पहुंचे. इसके अलावा बुजुर्ग और बीमार लोगों को विशेष अनुमति दी जाती है ताकि वे स्वास्थ्य कारणों से चप्पल पहन सकें. लेकिन सामान्य परिस्थितियों में गांव के लोग इस परंपरा का कठोरता से पालन करते हैं.

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कई सालों से चली आ रही है ये प्रथा

यह प्रथा कोई हाल की नहीं है बल्कि यह कई पीढ़ियों से चली आ रही है. गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि उन्होंने अपने पूर्वजों से यह परंपरा सीखी है और इसे भविष्य की पीढ़ियों तक पहुंचाने का दायित्व उनके कंधों पर है. यह परंपरा केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं है बल्कि यह अडमान गांव की सामूहिक पहचान का हिस्सा बन चुकी है.

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