UP News: उत्तर प्रदेश के बिजनौर, इटावा, फर्रुखाबाद, कानपुर, बलरामपुर और बहराइच जिलों में पिछले कुछ महीनों में इंसानी आबादी के बीच तेंदुए पहुंचे हैं. जानकारी के मुताबिक कुछ तेंदुओं ने आम लोगों पर हमला कर उन्हें घायल कर दिये हैं और कुछ छिप-छिपकर रह रहे हैं. अब लोगों के मन में ये सवाल आ रहा है कि अचानक से आबादी के बीच तेंदुओं का आतंक कैसे बढ़ गया है? आइये इसके बारे में विस्तार से जानते हैं.
लॉकडाउन के दौरान आए पर कई लौटे नहीं
जानकारों का कहना है कि संरक्षण से तेंदुओं की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है. साथ ही, कोविड-19 के समय बाहर आए तेंदुए अब तक घने जंगलों में नहीं लौटे हैं. उन्होंने शहर से सटे जंगलों को ही अपना घर बना लिया. जब वे आबादी वाले इलाकों की ओर आए तो उन्हें लोग तो नहीं मिले, लेकिन कस्बों में उन्हें खाना जरूर मिला. इसके बाद ज्यादातर तेंदुए मैदानी इलाके के जंगल में लौट गये, लेकिन कुछ शहरों से सटे जंगल में चले गये. वहीं उनका प्रजनन हुआ और शावक का जन्म हुआ और वह बड़े हुए. ये तेंदुए अब लोगों के बीच भारी हलचल पैदा कर रहे हैं.
बिना कड़ी मेहनत के मिल रहा शिकार
जंगलों के किनारे रहने वाले किसानों के लिए जंगल आजीविका का एकमात्र स्रोत है. ये तेंदुए जंगल से बाहर निकल आसानी से ग्रामीणों के मवेशियों को खा जाते हैं. कड़ी मेहनत के बिना लक्ष्य हासिल करना तेंदुओं के लिए फायदेमंद हो रहा है. ध्यान देने वाली बात यह है कि जब भी तेंदुए ने किसी व्यक्ति पर हमला किया है, लगभग हर मामले में लोगों ने खुद को आत्मसमर्पण किया है. उदाहरण के लिए, जब फसल का उपयोग किया जाता है या शौच के समय इंसानों पर तेंदुए का पहला हमला अज्ञानतावश होता है, लेकिन इसके बाद उसके मुंह में खून आ जाता है फिर वह प्राणियों को पशु ही समझ लेते हैं.
मादा की तलाश में रहते हैं
सर्दी के मौसम में तेंदुओं का बाहर आना एक स्वाभाविक कारण है. हालांकि तेंदुए तो पूरे साल प्रजनन करते हैं, लेकिन सर्दियों के मौसम में तेंदुए विशेष तौर पर मादा की तलाश करते हैं. मादा की खोज में वे जंगल से बाहर आते हैं. तेंदुओं का गर्भकाल 90-95 दिनों का होता है. इस वजह से मार्च से मई के बीच खेतों में तेंदुओं के शावक मिलते हैं.