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stray dogs
पूरे देश में जहां कुत्तों को लेकर बहस छिड़ गई है. जहां कुछ लोगों का मानना है कि बढ़ते डॉग-बाइट मामलों के बीच यह सही कदम है, जबकि पशु अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह ठीक नहीं है और जानवरों के साथ क्रूरता है. वहीं एक देश ऐसा भी है जहां पर एक भी आवारा कुत्ते नहीं है. खास बात यह है कि वहां इस अभियान के दौरान न तो कुत्तों को मारा गया और न ही उनके साथ अमानवीय व्यवहार हुआ. आइए आपको इस देश के बारे में बताते है.
इस देश में नहीं है कुत्तें
इस देश का नाम है नीदरलैंड. नीदरलैंड भी कभी आवारा कुत्तों और रेबीज के मामलों से जूझ चुका है, लेकिन आज वहां की सड़कों पर आपको एक भी आवारा कुत्ता नजर नहीं आएगा. इसके लिए उन्होंने अभियान चलाया था. एक वक्त पर नीदरलैंड ऐसा देश था, जहां कुत्तों को समृद्धि और शान का प्रतीक माना जाता था. अमीर घरों के लोग अपने घरों में कुत्ते पालना पसंद करते थे. लेकिन 19वीं सदी में रेबीज के मामले तेजी से बढ़ने लगे और ये बीमारी महामारी जैसी बन गई.
कुत्तों पर लगाया टैक्स
उस वक्त डर के कारण लोगों ने अपने पालतू कुत्तों को बड़ी संख्या में घर से हटाकर सड़कों पर छोड़ना शुरू कर दिया. शुरुआत में कुत्तों को मारकर समस्या खत्म करने की कोशिश की गई, लेकिन इससे कोई फायदा नहीं हुआ. तब सरकार ने परमानेंट उपाय सोचा. तब नीदरलैंड में पालतू कुत्तों के लिए रजिस्ट्रेशन अनिवार्य किया गया और बाहर से खरीदे गए कुत्तों पर भारी टैक्स लगाया, ताकि लोग शेल्टर होम से कुत्तों को गोद लें सकें.
लोगों पर लगाएं दंड
लोगों को प्रेरित किया गया कि वे आवारा कुत्तों को पालतू बनाएं. इसके लिए एनजीओ और वॉलंटियर्स की मदद से हजारों कुत्ते लोगों को गोद दिलवाए गए. वहां पर मीडिया और स्कूलों के जरिए पशु कल्याण के संदेश फैलाए गए और कहा गया कि लोग पेट शॉप की बजाय शेल्टर होम से जानवरों को गोद लें. नीदरलैंड में जानवरों के प्रति क्रूरता पर कड़े दंड लगाए गए, जिससे धीरे-धीरे आवारा कुत्तों की संख्या घटने लगी. इन्हीं सब उपायों के जरिए नीदरलैंड ने आवारा कुत्तों पर लगाम लगाई.