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भारत में पहले भी देखे जा चुके हैं सफेद कौवे, जानें रंग बदलने की वजह

बडवानी में नर्मदा किनारे ग्राम दतवाड़ा (Datwada) के चंगा आश्रम (Changa Ashram) के पास पेड़ों और बिजली के तारों पर बैठे इस पक्षी (White Crow) को कई लोगों ने देखा है.

Updated on: 26 Nov 2019, 03:01 PM

नई दिल्‍ली:

अभी कुछ दिन पहले ही हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh)  के सराहां में एक दुर्लभ सफेद कौवे (White Crow) की जोड़ी आकर्षण का केंद्र बनी थी कि हफ्तेभर बाद ही मध्य प्रदेश में एक सफेद कौआ (White Crow) सुर्खियों में है. बडवानी में नर्मदा किनारे ग्राम दतवाड़ा (Datwada) के चंगा आश्रम (Changa Ashram) के पास पेड़ों और बिजली के तारों पर बैठे इस पक्षी (White Crow) को कई लोगों ने देखा है.

ऐसा पहली बार नहीं है कि भारत के अलग-अलक राज्‍यों में सफेद कौवे देखे गए हों. अगस्‍त 2016 में तमिलनाडु के कोयंबटूर में एक सफेद कौआ देखा गया था. उस समय इसे स्थानीय चिड़ियाघर को दे दिया गया. सफेद कौए को जब बाकी कौओं ने देखा तो हमला कर दिया था. इसमें वह घायल भी हो गया था.

अगस्‍त 2017 में एक दुर्लभ प्रजाति का सफेद कौआ सतना जिले की नागौद तहसील के एक गांव में देखा गया था. वह नियमित तौर पर एक किसान की छत पर अन्य कौओं के साथ आता था. वहीं अगस्‍त 2017 में ही उत्‍तर प्रदेश के बिजनौर के गांव मुकरंदपुर में एक सफेद कौआ देखा गया था.

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मध्‍य प्रदेश के सतना जिले में ही 2006 में भी सफेद कौआ देख गया था. माधवगढ़ में पाया गया यह सफेद कौआ काफी छोटा होने के कारण काले कौओं द्वारा उसे परेशान किया गया था. बाद में उसकी मौत हो गई थी.

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जुलाई 2014 में भी झारखंड के ओरमांझी के पतरातू गांव मे सफेद पाया गया था जिसे लोगों ने पकड़ कर चिड़िया घर को सौंप दिया था. 2012 में तिरुवनंतपुरम में भी एक सफेद कौआ देखा गया था.

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जंतु वैज्ञानिक अरुण पांडेय के मुताबिक कौओं में यह बीमारी अनुवांशिक होती है और करीब एक लाख कौवों में किसी एक का रंग सफेद होता है. हो सकता है यह कौआ ऐल्बिनिज्म (रंगहीनता) नाम की बीमारी से ग्रसित हो.

कौवे के काला होने की पौराणिक कथा

प्राचीन काल में एक ऋषि ने एक सफेद कौवे को अमृत ढूंढने भेजा. ऋषि ने उसे सिर्फ अमृत की जानकारी ला कर देने का आदेश दिया था लेकिन सफेद कौवे ने अमृत को ढूंढ निकाला और अमृत पी लिया. कौआ ऋषि के पास आया और उसकी जानकारी दी. उसने यह भी बता दिया कि उसने अमृत पी लिया है.

इतना सुनते ही ऋषि आग बबूला हो गए और कौवे को श्राप दे दिया. ऋषि ने कहा कि वचन भंग करके तुमने अपनी जिस अपवित्र चोंच से पवित्र अमृत को जूठा किया है, लोग उससे घृणा करेंगे. लोग तुम्‍हें अशुभ मानेंगे और सदैव तुम्‍हारी बुराई करेंगे. तुमने अमृत पान किया है, इसलिए तुम्हारी स्वाभाविक मृत्यु कभी नहीं होगी. कोई बीमारी भी नहीं होगी एवं वृद्धावस्था भी नहीं आएगी. पितृपक्ष में तुम्हें पितरों का प्रतीक समझ कर आदर दिया जाएगा एवं तुम्हारी मृत्यु आकस्मिक रूप से ही होगी. ऋृषि ने यह श्राप देते हुए सफेद कौवे को अपने कमंडल के काले पानी में डुबो दिया जिसके बाद कौवे का रंग काला पड़ गया और तभी से कौवे का रंग काला है.