जंगली जानवर खाने वाली महावत जाति दलितों के लिए भी 'अछूत', सरकारी योजनाएं भी है इनसे दूर

उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के वजीरगंज विकास खंड के गणेशपुर ग्रंट के देबियापुर, चड़ौवा के धोबही व राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत निर्मल ग्राम करदा में रहने वाले महावत (नट) जाति की यह दास्तां है. ग्राम पंचायतों में इनकी आबादी तकरीबन पांच सौ है.

उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के वजीरगंज विकास खंड के गणेशपुर ग्रंट के देबियापुर, चड़ौवा के धोबही व राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत निर्मल ग्राम करदा में रहने वाले महावत (नट) जाति की यह दास्तां है. ग्राम पंचायतों में इनकी आबादी तकरीबन पांच सौ है.

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Vineeta Mandal
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जंगली जानवर खाने वाली महावत जाति दलितों के लिए भी 'अछूत', सरकारी योजनाएं भी है इनसे दूर

untouchable Mahavat caste( Photo Credit : (फोटो-IANS))

घुमंतू महावत जाति के लोग दलितों के लिए भी अछूत हैं. जिंदगी उनके लिए नरक है. बूढ़े हों या जवान, इनकी सुबह की शुरुआत दो रोटियों की तलाश से होती है. लेकिन रोटी भी इनकी नसीब में नहीं है. इन्हें वन-बिलार यानी जंगली बिल्लियों का शिकार कर पेट भरना पड़ रहा है. महावत जाति दलितों के लिए भी अछूत है. दलित भी इनकी बस्ती से दूर रहने में ही अपनी इज्जत समझते हैं.

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उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के वजीरगंज विकास खंड के गणेशपुर ग्रंट के देबियापुर, चड़ौवा के धोबही व राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत निर्मल ग्राम करदा में रहने वाले महावत (नट) जाति की यह दास्तां है. ग्राम पंचायतों में इनकी आबादी तकरीबन पांच सौ है. दलितों के घरों से दूर बसे महावत खुद को भले ही दलित बताते हैं, लेकिन गांव के दलितों के लिए आज भी यह अछूत हैं. इनको अनाज की जगह चूहा, लोमड़ी, खरगोश व वन-बिलार (जंगली बिल्ली) खाकर जिंदगी गुजारनी पड़ रही है.

इसी पंचायत के रहने वाले जामू महावत का कहना है, 'हम बचपन से यहीं रहते हैं, लेकिन आज तक हमें किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल पाया है. रहने के लिए घर की बात तो दूर, यहां खाने के लिए राशन भी नहीं मिलता है. हम लोगों को मजबूरी में जंगली जानवरों का शिकार करके बच्चों को पालना पड़ रहा है.

पुल्ली नट ने बताया, 'हमारे बच्चे यहां के गांव के स्कूल में भी पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि न तो उनके पास पहनने के लिए कपड़े हैं और न ही हमारे बच्चों को कोई अपने बीच में रखना चाहता है. आज तक हमारे पास कोई भी सरकारी आदमी कोई भी योजना बताने नहीं आया है.'

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महावत (नट) एक ऐसी जाति है जो आज भी सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक रूप से अति पिछड़ी हुई है. इस जाति के लोगों के लिए पेट की आग बुझाने के लिए जानवरों को पकड़ने के तौर-तरीकों में झाड़ी-झंकाड़ पीटकर जानवरों को भगाना शामिल है. आगे पड़े जाल में फंसने वाले जंगली जानवर यानी वन-बिलार ही इनके परिवार का निवाला हैं.

जिले के पूर्व डीएम बी.एल. मीणा ने इन्हें चिन्हित करने के लिए एक कमेटी बनाई थी. मीणा चले गए, तब से कमेटी फाइलों में गर्द खा रही है. कहा जाता है कि दो-चार लोगों को ग्राम पंचायत की ओर से कुछ जमीन पट्टा की गई थी, लेकिन उस पर गांव के दबंग लोगों का कब्जा है.

इन महावतों के पास न रहने को घर है और न ही सोने के लिए बिस्तर, लेकिन इनकी इस दुर्दशा की ओर किसी का ध्यान नहीं दिया जा रहा है. चाहे जनप्रतिनिधि हों या फिर सरकारी नुमाइंदे. इनकी आबादी जिले के मनकापुर, इटियाथोक, नबाबगंज व तरबगंज में है.

टिल्लू ने बताया, 'आज तक हमें किसी प्रकार का कोई कार्ड नहीं मिला है. हम मिट्टीतेल ब्लैक में 50 रुपये लीटर खरीदते हैं.' सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएं इनके लिए बेमानी हैं. इन महावतों को अपनी ग्राम सभा के प्रधानों से भी शिकायत है. 'गणेशपुर ग्रंट के प्रधान पप्पू सोनकर ने कहा, 'अभी मुझे नया पदभार 5 माह पहले ही मिला है. इनके लिए अभी तक कोई योजना बनी नहीं है. आगे देखा जाएगा.'

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तरबगंज तहसीलदार नरसिंह नरायण वर्मा ने बताया कि यह जाति अभिलेखों में महावत के नाम से दर्ज है. ये घुमंतू लोग हैं. पिछड़ी व अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में दर्ज न होने के कारण इन्हें नट नहीं माना जा सकता, इसी कारण इनका कल्याण नहीं हो पा रहा है. गोंडा के जिलाधिकारी डॉ़ नितिन बसंल ने कहा कि उन्हें अभी इस बारे में कोई जानकारी नहीं है. उन्होंने कहा कि इस मामले की जांच कराकर जो समुचित होगा, वह किया जाएगा.

Source : IANS

Government scheme Uttar Pradesh Dalit Gonda Mahavat Caste
      
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