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Jama masjid( Photo Credit : social media)
हाल ही में दिल्ली की ऐतिहासिक जामा मस्जिद ने लड़कियों की एंट्री बैन लगा दी है. मगर बाद में विरोध के बाद इस फैसले पर रोक भी लगा दी गई. बताया जा रहा है कि उपराज्यपाल वीके सक्सेना के हस्तक्षेप के बाद जामा मस्जिद के शाही इमाम ने इस निर्णय को वापस ले लिया. मगर सवाल यह उठता है कि इस तरह से इबादत गाह में किसी के आने जाने पर बैन कैसे सही हो सकता है. भगवान, ईश्वर और अल्लहा की इबादत की जगह पर प्रवेश के लिए किसी की इजाजत की जरूरत क्यों पड़ रही है? जामा मस्जिद में लड़की या लड़कियों का अकेले आना मना कर दिया गया था. अगर लड़की या लड़कियों के साथ अगर कोई पुरुष अभिभावक नहीं है तो उन्हें मस्जिद में एंट्री नहीं मिल सकेगी. ऐसा कहा जा रहा है कि मस्जिद परिसर में अश्लीलता को रोकने के लिए ये कदम उठाया गया. इसे लेकर विवाद खड़ा हो गया. बाद में जामा मस्जिद को यह फैसला वापस लेना पड़ा.
इसी तरह केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगाई गई थी. हालांकि सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगाने को गलत माना था. पीठ का कहना था कि मंदिर एक सार्वजनिक जगह है और हमारे देश में निजी मंदिर जैसा कोई सिद्धांत नहीं है. इस सार्वजनिक जगह पर अगर पुरुष जा सकते हैं तो महिलाओं को भी अंदर जाने की इजाजत मिलनी चाहिए. देखा जाए दोनों ही अलग-अगल इबादत की जगहें हैं, मगर मुद्दा एक. महिलाओं को परिसर में प्रवेश से रोकना.
गौरतलब है कि सबरीमाला मंदिर में दस से 50 आयुवर्ष की महिलाओं का प्रवेश निषेध था. इतना ही नहीं जिन महिलाओं को मंदिर में जाने की अनुमति थी, उन्हें भी अपने साथ अपनी उम्र का प्रमाणपत्र लेकर जाना जरूरी था. जांच के बाद ही मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति मिल पाती थी. एक जनहित याचिका के जरिए मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की अनुमति मांगी गई थी.
Source : News Nation Bureau