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IIT Roorkee Scientist Confirm Existence of Vasuki Naag ( Photo Credit : Social Media)
Vasuki Nag: हिंदू धर्म में शायद ही ऐसा कोई होगा जिसे समुद्र मंथन की कहानी के बारे में पता न हो. समुद्र मंथन के दौरान ही अमृत और विश समेत संसार के तमाम रत्नों को निकाला गया था. इस महा मंथन में मंदराचल पर्वत को मथनी और वासुकी नाग को रस्सी के रूप में इस्तेमाल किया गया था. वहीं इस पर्वत को खुद भगवान विष्णु ने कछुए का रूप धारण कर अपनी पीठ पर रखा था ताकि इसे मथने में आसानी होगी. खास बात यह है कि समुद्र मंथन के दौरान हुए वासुकी नाग के अस्तित्व को लेकर अब विज्ञान ने भी पुष्टि कर दी है. देश के गुजरात राज्य में वासुकी नाग से जुड़े 4.7 करोड़ वर्ष पुराने अवशेष भी मिले हैं.
कहां से मिले वासुकी नाग के अवशेष
समुद्र मंथन वाले वासुकी नाग के अवशेष गुजरात के कच्छ स्थित खदान से मिले हैं. यहां पर एक विशालकाय सर्प की रीढ़ की हड्डी के अवशेष प्राप्त हुए हैं. मिली जानकारी के मुताबिक सर्प की हड्डे के यह अवशेष 4.7 करोड़ वर्ष पुराने हैं.
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वैज्ञानिकों ने दिया वासुकी इंडिकस नाम
साढ़े चार करोड़ वर्ष पुराने अवशेषों को वैज्ञानिकों ने खास नाम भी दिया है. उन्होंने इसे वासुकी इंडिकस बताया है. इसके पीछे एक्सपर्ट्स का कहना है कि ये धरती पर रहे विशालतम सर्प की हड्डियों के ही अवशेष हो सकते हैं. यही नहीं उन्होंने समुद्र मंथन के वक्त और इस अवशेष के वक्त को भी लगभग आस-पास का ही बताया है. जिससे यह साबित होता है कि यह अवशेष वासुकी नाग के ही होंगे.
27 अवशेष खोजे गए
गुजरात के कच्छ स्थित पनंध्रो लिग्नाइट खदान से खोजकर्ताओं को एक दो नहीं बल्कि पूरे 27 वासुकी नाग के अवशेष प्राप्त हुए हैं. इन्हें सर्प की रीढ़ की हड्डी के हिस्से बताया जा रहा है. यानी वासुकी नाग की रीढ़ की हड्डी के टुकड़े विज्ञानिकों को 4.7 करोड़ वर्ष बाद मिले हैं.
जहरीला नहीं था वासुकी
विज्ञानियों का मानें तो उस वक्त वासुकी जहरीला नहीं रहा होगा. एक्सपर्ट्स के मुताबिक अगर मौजूदा वक्त में वासुकी मौजूद होता तो किसी बड़े अजगर की तरह होता. बता दें कि विज्ञानियों ने जहां से इस इन अवशेषों को हासिल किया है वहां पर कोयले की खदान है. यहां निम्न स्तर की गुणवत्ता वाले कोयले निकाले जाते हैं. इस खोज से जुड़ा जर्नल भी साइंटिफिक रिपोर्ट में प्रकाशित किया गया है.
आईआईटी रुड़की के शोधार्थी इसके मुख्य लेखक हैं. इनका नाम देबाजीत दत्ता है. देबाजीत के मुताबिक वासुकि पूरी तरह धीमी गति से विचरण करने वाला सांप रहा होगा. यह दिखने में एनाकोंडा या फिर अजगर की तरह होगा जो अपने शिकार को जकड़ में लेकर उसकी जान ले लेता होगा.
वासुकि साइज में ऐसा रहा होगा
विज्ञानियों की मानें तो वासुकि नाग की रीढ़ की हड्डी में सबसे बड़ा भाग 4 इंच का मिला है. यही नहीं इस सांप शारीरिक संरचना भी बेलनाकार यानी गोल रही होगी और इसकी गोलाई करीब 17 इंच की होगी. हालांकि फिलहाल खोजकर्ताओं को सर्प का सिर नहीं मिला है, लेकिन देबाजीत की मानें तो वासुकि का आकार काफी विशाल रहा होगा, जो सिर को किसी ऊंचाई वाले स्थान पर टिकाता होगा और उसके बाद अपने बाकी शरीर को लपेट लेता होगा.
शोधकर्ता दत्ता की मानें तो वासुकि हमेशा जमीन के अंदर दलदली भूमि में एक ट्रेन की तरह सफर करता होगा और जरूरत पड़ने ही बाहर आता होगा. खास तौर पर अपने भोजन की तलाश में.
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क्या रही होगी वासुकि की खुराक
शोधकर्ताओं की मानें तो वासुकि की खुराक मगरमच्छ से लेकर कछुए और जल में पाए जाने वाले कुछ जीव रहे होंगे. आमतौर पर वासुकि इन्हीं को खाकर अपना गुजारा करता होगा. इसे नरभक्षी नहीं कहा जा सकता. इसके अलावा ह्वेल की आदम प्रजाति को भी वासुकि का भोजन माना जा सकता है.
9 करोड़ वर्ष पुराना है इतिहास
शोधकर्ताओं के मुताबिक वासुकि का इतिहास 9 करोड़ वर्ष पुराना है. यह उस वक्त के मैडसाइड सांप वंश का सदस्य था जो 12000 वर्ष पहले विलुप्त हो गया. भारत के अलावा यह सर्प दक्षिण यूरेशिया और उत्तरी अफ्रीका में भी पाई जाती है.
Source : News Nation Bureau
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