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गाजियाबाद के इस गांव में 12वीं सदी से नहीं मनाया जा रहा रक्षाबंधन, कारण जानकर हो जाएंगे हैरान

पूरे देश में रक्षा बंधन (Raksha Bandhan) का पर्व मनाया जाता है, लेकिन एक गांव ऐसा भी है, जहां यह पर्व नहीं मनाया जाता है। इस गांव के लोग जहां भी रहते हैं वहीं पर रक्षा बंधन नहीं मनाते हैं। इनका मानना है कि रक्षा बंधन मनाया तो बड़ा अपशकुन होगा।.

Updated on: 02 Aug 2020, 04:31 PM

गाजियाबाद:

पूरे देश में रक्षा बंधन का पर्व मनाया जाता है, लेकिन एक गांव ऐसा भी है, जहां यह पर्व नहीं मनाया जाता है. इस गांव के लोग जहां भी रहते हैं वहीं पर रक्षा बंधन नहीं मनाते हैं. इनका मानना है कि रक्षा बंधन मनाया तो बड़ा अपशकुन होगा. आइए जानते हैं ये कौन सा गांव है और यहां रक्षा बंधन क्यों नहीं मनाया जाता है. गजियाबाद के मुरादनगर थाना क्षेत्र के सुराना गांव में रक्षाबंधन का पर्व नहीं मनाया जाता है. गांव प्रधान रविंद्र यादव ने इसका कारण भी बताया.

मुरादनगर के सुराना गांव के लोगों के मुताबिक 12वीं सदी में मोहम्मद गौरी ने रक्षा बंधन के दिन इस गांव पर आक्रमण कर कत्लेआम मचाया था. इस हमले में गौरी ने एक महिला और उसके बच्चे को छोड़कर पूरे गांव वालों को मार डाला था. यह महिला और बच्चा भी इसलिए बच गये थे, क्योंकि हमले के समय वो गांव में नहीं थे.

वर्षों बाद त्योहार मनाया तो हुई घटना

जब कभी भी गांव वालों ने दोबारा रक्षाबंधन का त्योहार मनाने की कोशिश की तो कोई ना कोई दुर्भाग्यपूर्ण घटना हो जाती थी इसलिए गांव में तब से लेकर आज तक रक्षा बंधन नहीं मनाया जाता.

कहीं भी रहें, लेकिन नहीं मनाते त्योहार

इस गांव के लोग अपने मूल गांव को छोड़कर रोजगार के लिए कई शहरों में बस चुके हैं. लेकिन आज भी कोई रक्षा बंधन नहीं मनाता है. सुराना के मूल निवासियों का कहना है कि गांव के लोग अगर बाहर भी कहीं जाकर बस जाते हैं तो वहां पर भी त्यौहार को नहीं मनाते हैं. सिर्फ गांव में शादी करके आई महिलाएं ही अपने घर जाकर रक्षाबंधन का त्योहार मनाती हैं. गांव की कोई भी बेटी रक्षाबंधन का त्यौहार नहीं मनाती है.

गांव की एक बेटी ने कहा कि उन्हें भी रक्षाबंधन ना मनाने का दुख तो होता है लेकिन अगर वह त्यौहार मनाते हैं तो कुछ ना कुछ घटना हो जाती है. इसी वजह से अब त्यौहार नहीं मनाया जाता. उल्टा त्यौहार के दिन दुख मनाया जाता है और घर में सादा दाल रोटी बनाई जाती है.

यहां के रहने वालों के अनुसार सुराना गांव का नाम सोहनगढ़ था. 12वीं शाताब्दी में मोहम्मद गोरी यहां से गुजरा तो सब कुछ तबाह करता गया. इस हमले में छबिया गोत्र की एक महिला उस समय बच गई थी, क्योंकि वह गांव में नहीं थी. बाद में उसके बेटे लखन और चूड़ा वापस आए और उन्होंने गांव को फिर से बसाया. वर्तमान में इस गांव की कुल जनसंख्या में 80 फीसदी छबिया यादव ही हैं.

साफ है 12 वीं सदी में मोहम्मद गोरी द्वारा किए गए हमले के बाद इस गांव में रक्षाबंधन का यह पावन त्यौहार नहीं मनाया जाता और सभी लोग रक्षाबंधन के दिन दुख जताते हैं.