खाने के तेल से पड़ रही महंगाई की मार, लोग तेल की जगह पानी से बनाना चाहते हैं खाना
पेट्रोल डीज़ल की बढ़ती कीमतों पर कोहराम मचा केंद्र सरकार के प्रयास भी काम न आए, कीमतें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं,सरसों का तेल, सोयाबीन तेल, नारियल तेल या फिर सनफ्लावर तेल की क़ीमत में 35 से 65 फ़ीसद तक इजाफा हुआ जो अभी तक वहीं पर है
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पेट्रोल डीज़ल की बढ़ती कीमतों पर कोहराम मचा केंद्र सरकार के प्रयास भी काम न आए, कीमतें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं,सरसों का तेल, सोयाबीन तेल, नारियल तेल या फिर सनफ्लावर तेल की क़ीमत में 35 से 65 फ़ीसद तक इजाफा हुआ जो अभी तक वहीं पर है. गरीब की झोपड़ी से लेकर महलों तक खाने के तेल का बोलबाला है और अब तो त्योहार भी नज़दीक है ऐसे में कैसे चलेगा घर का खर्च, क्या पानी से तले जाएंगे पकौड़े या फिर दाल बिन तड़के के खाई जाएगी. जान लीजिए कि तेल का बाज़ार में भाव क्या है?
# सरसों यानी कच्ची धानी का तेल 195 रुपये ली से 240 रुपये ली में बिक रहा है जो पहले 130-150 रुपये ली था
# सोयाबीन तेल की कीमत 180 रुपये ली है जो पहले 90 से 100 रुपये ली था
# सन फ्लावर तेल की कीमत 230 रुपये ली जो पहले 150 रुपये ली था
दरअसल आपके घर जो एडिबल आयल पहुंचता है उसके पहुंचने से पहले ये तेल कई जगहों से होकर गुजरता है, सरसों के खेत से लेकर पिराई सेंटर तक और फिर सप्लायर से लेकर थोक और फिर रिटेल और फिर ग्राहक इसके बीच मे ही तेल की हर जगह कीमत बढ़ती जाती है लेकिन इस समय तेल की कीमत बढ़ने के सिर्फ ये कारण नहीं है क्योंकि ये सब तो पहले भी होता था
आपको बताते हैं कीमतें बढ़ने के पीछे का कारण
सरसों के तेल के लिए - कोरोना काल में घरेलू प्रोडक्शन में कमी जिससे डिमांड ज़्यादा और सप्लाई कम हुई तो कीमतें बढ़ीं
भारत खाने वाले तेल जैसे पाम आयल, सन फ्लावर आयल, नारियल तेल की ज़रूरत का करीब 70 फ़ीसदी तक आयात करता है कोरोना काल के प्रभाव के चलते सप्लाई में दिक्कत के चलते कीमतें बढ़ी
मलेशिया, इंडोनेशिया, ब्राज़ील से पाम आयल, सन फ्लावर आयल की सप्लाई बाधित होने से कीमतें बढ़ी और मुनाफाखोरों ने भी इसमे बड़ा रोल निभाया
डीज़ल की बढ़ती कीमतों के असर भी ट्रांसपोर्ट कोस्ट में जुड़ा जिससे कीमतों में इजाफा हुआ
यानी जो तेल 90 से 120 रुपये प्रति ली था वो आज 180 रुपये ली से 240 रुपये ली तक बिक रहा है जिसके कम होने के उम्मीद नहीं है
प्रति व्यक्ति तेल का खर्च बढ़ा
देश मे प्रति व्यक्ति पहले जो 650 ग्राम तेल प्रति महीना कंज़्यूम करता है वो आज बढ़कर 900 से 950 ग्राम कंजम्पशन पहुंच चुका है यानी डिमांड काफी बढ़ी है जबकि उत्पादन कम हुआ है आंकड़े बताते हैं कि 130 करोड़ जनता के लिए भारत में सरसों और दूसरे आयल की खेती सिर्फ 1.5 फ़ीसदी किसान खेती करता है जिसमें 100 फ़ीसदी खेती में से 65 फीसद ही इस्तेमाल या बेच पाता है जिससे सरसों उत्पादन में भी कमी आई है ये भी एक बड़ा फेक्टर है तेल की कीमत बढ़ने का
भारत मे तेल उत्पादन में कमी
भारत मे खाने के तेल प्रोडक्शन में कमी , भारत का कुल एडिबल ऑयल प्रोडक्शन 7.5 मिलियन टन है, वहीं भारत विदेशों से 15 मिलियन टन इंपोर्ट करता है. जिसके 20 मिलियन टन पहुंचने की उम्मीद है।
भारत में सिर्फ कच्ची घानी का तेल रोज़ाना 10 हज़ार टन की ज़रूरत होती है जितनी खेती नहीं होती
ऐसे में विदेशों पर निर्भरता ज़्यादा है और कुछ भी हलचल भारत मे कीमतें बढ़ने का कारण होती है
सरकार ने खाने के तेल पर कम की इम्पोर्ट ड्यूटी
भारत सरकार ने भी खाने के तेल की कीमतों को कम करने के लिए विदेशों से आने वाले तेल पर इम्पोर्ट ड्यूटी को 5 फ़ीसदी घटाया है विदेशी एडिबल आयल पर इम्पोर्ट ड्यूटी 27-28 फ़ीसदी है
इससे जुड़े व्यापारियों की मांग है कि सरकार cgst sgst को खत्म करे जिससे कीमतें कम की जा सके
त्योहारी सीज़न में कीमतें और बढ़ने के आसार
जानकार मानते हैं कि जब तक भारत में प्रोडक्शन तेज़ नहीं होगा कीमतें ऐसे ही बढ़ेंगी क्योंकि इसका सीधा संबंध ट्रांसपोर्ट से है जो अभी डीज़ल के चलते बाहत महंगा है
यानी त्योहार आपके सूखे ही बीतने वाले हैं सरकार ने इम्पोर्ट ड्यूटी घटाकर अपना फर्ज तो पूरा कर दिया लेकिन उसका फायदा आम आदमी को मिलेगा या नही ये कौन तय करेगा, फिलहाल पेट्रोल डीजल के साथ खाने के तेल में भी आग लगी है ये आग कब बुझेगी किसी को पता नहीं
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