इस गांव के लोग मंदिर में ही करते हैं शादी, 350 साल से चली आ रही है परंपरा
पश्चिमी राजस्थान के इस गांव में चामुंडा माता का मंदिर है. इसी मंदिर में सभी को सात फेरे लेने पड़ते हैं. ऐसा कहा जाता है कि अगर कोई इस मंदिर में सात फेरे यानी शादी नहीं करता उस दंपति के बच्चे नहीं होते.
New Delhi:
शादी को लेकर हर गांव और शहर में अलग-अलग रीति रिवाज निभाए जाते हैं. राजस्थान में भी एक ऐसा ही गांव है जहां मंदिर में शादी करने की परंपरा है. ऐसा कहा जाता है कि अगर कोई इस परंपरा का पालन नहीं करता तो उसके घर में बच्चे का जन्म नहीं होता. इस गांव में ये परंपरा पिछले 350 साल से निभाई जा रही है. दरअसल, राजस्थान के बाड़मेर में आटी नाम का एक गांव है. जहां ये परंपरा निभाई जाती है. इस गांव में जब भी किसी की शादी होती है तो वह घर पर नहीं बल्कि गांव के मंदिर में होती हैं.
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घर जाने से पहले मंदिर में रुकती नई दुल्हन
पश्चिमी राजस्थान के इस गांव में चामुंडा माता का मंदिर है. इसी मंदिर में सभी को सात फेरे लेने पड़ते हैं. ऐसा कहा जाता है कि अगर कोई इस मंदिर में सात फेरे यानी शादी नहीं करता उस दंपति के बच्चे नहीं होते. ऐसा कहा जाता है कि अगर मंदिर में शादी नहीं हुई तो बहू या बेटी कभी गर्भधारण नहीं कर पाएंगी. इसीलिए आज भी गांव के बेटे-बेटियों की शादी गांव के चामुंडा माता के मंदिर में होती है.
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ऐसा कहा जाता है कि चामुंडा माता के मंदिर में ही शादी की शहनाई बजती है और दूल्हा वहीं तोरण भी लेता है. इस दौरान शादी के सात फेरों की पूरी रस्म वैदिक मंत्रोच्चार के साथ पूरी की जाती है. बेटियों के सात फेरों के अलावा गांव में पहला कदम रखने वाली नई दुल्हन को भी पहले मंदिर में रखा जाता है, जिसके बाद वह ही वह अपने नए घर में प्रवेश करती है. मंदिर समिति के अध्यक्ष का कहना है कि ऐसा नहीं है कि मंदिर में सिर्फ बेटियों की ही शादी होती है.
बेटी की शादी पर मंदिर में होता है जागरण
इस मंदिर में पुत्रों का विवाह संस्कार कराया जाता है. बारात के आगमन पर नवविवाहित दुल्हन को भी मंदिर में ठहराया जाता है. उसके बाद रात्रि जागरण और अगली सुबह पूजा के बाद ही दुल्हन को घर में प्रवेश कराया जाता है. यह भी माना जाता है कि अगर इस मंदिर में किसी लड़की की शादी नहीं की गई तो उसकी कोख सूनी रह जाती है और वह कभी मां नहीं बन पाती.
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