एक ऐसा भी क्षेत्र जिसका बाल भी बांका नहीं कर सका कोरोना. जानिए वजह
यह क्षेत्र मध्य प्रदेश के जनपद छिंदवाड़ा में पड़ता है. छिंदवाड़ा जिला मुख्यालय से 80 किमी दूर तामिया ब्लॉक में बसे पातालकोट की यह हकीकत आज सभी को अचंभित कर रही है.
highlights
- लोग पहले की तरह ही जीते रहे सामान्य जीवन
- क्षेत्र में लगती हैं 12 ग्राम पंचायत
- किसी भी लहर में नहीं हुआ कोई असर
New delhi:
देश तो क्या विश्व का कोई ऐसा इलाका नहीं बचा था जो कोरोना(corona) की चपेट में न आया हो. (who)की रिपोर्ट के मुताबिक इस भयंकर बीमारी ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया है. पर क्या आपको पता है भारत में एक विकास खंड क्षेत्र ऐसा भी है जिसका कोरोना भी बाल बांका नहीं कर पाया हो. विकास खंड में लगभग 12 गांव हैं. जिनमें पहली हो या दूसरी कोई सी भी लहर कोई असर नहीं दिखा पाई. वहां की जनता आम दिनों की तरह सामान्य जीवन जीती रही. आजकल क्षेत्र सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है. वहां के लोगों की बात सुनकर लोग अचंभित हो रहे हैं. साथ ही उनके रहन-सहन और खान-पान के बारे में पड़ताल की जा रही है. ऐसा इस क्षेत्र के गांवों में क्या है. जिसके चलते किसी भी गांव में कोरोना का एक भी मरीज नहीं मिल सका हो.
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आखिर कहां है ये क्षेत्र
दरअसल, यह क्षेत्र मध्य प्रदेश के जनपद छिंदवाड़ा में पड़ता है. छिंदवाड़ा जिला मुख्यालय से 80 किमी दूर तामिया ब्लॉक में बसे पातालकोट की यह हकीकत आज सभी को अचंभित कर रही है. तामिया ब्लॉक मुख्यालय से पातालकोट की दूरी 20 किमी है. पातालकोट एक ऐसी जगह जहां दोपहर 12 बजे सूरज की रोशनी पहुंचती है. यहां कुल 12 गांव हैं. जिनमें भारिया और गौंड समाज के परिवार निवास करते हैं. जिस समय मध्य प्रदेश समेत पूरा देश रेमडेसिविर इंजेक्शन और फैबिफ्लू जैसी दवाओं के लिए भटक रहे थे. उस समय भी यहां के लोग सामान्य जीवन बिता रहे थे. यहां के कुल 12 गांवों के आदिवासियों का कोरोना (corona) कुछ भी नहीं बिगाड़ पाया था.
क्या थी वजह
दरअसल तामिया और पातालकोट(patalcot) के 12 गांव पूरी तरह प्रकृति की गोद में है. ये सभा गांव समतल जमीन से करीब 10 किमी गहराई पर हैं. यहां दोपहर 12 बजे के बाद भी सूर्य भगवान के दर्शन होते हैं. साथ ही यहां के लोग आधुनिक दुनियां से कोसों दूर हैं. बीमार होने पर किसी चिकित्सक के पास नहीं जाते. बल्कि वनों से जड़ी-बूटी लाकर ही घर पर उपचार कर लेते हैं. पातालकोट के लोग खाने में कोदो कुटकी, सवा और महुआ का इस्तेमाल करते हैं. कंदमूल और जडी बूटियां यहां के रोजमर्रा के खाने में शामिल है. सैकेंड लहर के दौरान जब कोरोना पीक पर था. तब भी कई लोग इन गांवों में पहुंचे. पर गांव का कोई भी व्यक्ति संक्रमित नहीं हुआ. वहां के लोगों का कहना है कि कोरोना की दहशत के बीच कई लोग यहां दवा लेने के लिए आते थे, लेकिन हमारे पातालकोट में कोई संक्रमित नहीं हुआ.
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