आवश्यकता आविष्कार की जननी है, घरेलू सामान से ही बना डाला फ्लो-मीटर!
डॉ. मालवीय के अच्छे परिचित होने व एक डॉक्टर होने के बावजूद कोई हेल्प नहीं करने पर घर में मौजूद वस्तुओं के उपयोग से ही फ्लो-मीटर बनाने की तकनीक आधे घंटे में सुझी.
खरगोन:
कहा जाता है आवश्यकता आविष्कार की जननी है. कोरोना के बढ़ते संक्रणम के बीच लोगों को दवा, ऑक्सीजन, रेमडेसीविर इंजेक्शन के अलावा अन्य उपकरण आसानी से सुलभ नहीं हो पा रहे हैं. मरीजों को सिलेंडर से ऑक्सीजन देने के लिए फ्लो-मीटर जरुरी होता है. इसकी भी बाजार में कमी है तो मध्य प्रदेश के खरगोन जिले के सनावद कस्बे के चिकित्सक ने घरेलू सामान से ही फ्लो-मीटर बनाकर ऑक्सीजन के प्रवाह को आसान बनाने में कामयाबी पाई है. सनावद में श्री सांई अस्पताल के संचालक व डॉ. अजय मालवीय के मित्र प्रदीप को अचानक फ्लो-मीटर की जरूरत हुई.
प्रदीप ने इंदौर के कई मेडिकल शॉप पर फ्लो-मीटर ढूंढ़ा, लेकिन मिल नहीं पाया. ऐसी आपात स्थिति में इंदौर के मनीषपुरी निवासी प्रदीप ने अपने डॉक्टर मित्र मालवीय को सनावद में कॉल कर आवश्यकता बताई. डॉ. मालवीय के अच्छे परिचित होने व एक डॉक्टर होने के बावजूद कोई हेल्प नहीं करने पर घर में मौजूद वस्तुओं के उपयोग से ही फ्लो-मीटर बनाने की तकनीक आधे घंटे में सुझी.
डॉ. मालवीय ने पहले एक डायग्राम बनाया. उसके बाद उन आवश्यक वस्तुओं की सूची बनाकर एकत्रित की और फिर उन सब के संयोजन से एक अत्यंत अस्थाई उपयोगी फ्लो-मीटर बना दिया. इसके बाद डॉ. मालवीय ने अपने मित्र को डायग्राम और आवश्यक वस्तुओं की सूची तथा प्रयोगात्मक वीडियों बनाकर भेज दिया. जब प्रदीप ने इसका बखुबी इस्तेमाल किया व उपयोग साबित हुआ, तो डॉक्टर के मन में ऐसे ही कई लोगों को सहयोग करने की भावना जागी और उन्होंने सोशल मीडिया पर वीडियो पोस्ट कर दिया.
डॉ. मालवीय ने बताते कि हालांकि मेडिकल शॉप पर फ्लो-मीटर मिल जाते है, लेकिन ऐसी आपात स्थिति आने पर अस्थाई तौर पर घर में मौजुद वस्तुओं से ही फ्लो-मीटर बनाया जा सकता है. इसके लिए 20 एमएल की सीरींज, एक ट्यूब व मास्क, सिलेंडर, एक लीटर की खाली बोटल व आधा लीटर पानी की आवश्यकता होती है.
डॉ. अजय मालवीय ने बताया कि किसी भी मरीज को ऑक्सीजन देने में फ्लो-मीटर का बड़ा महत्व है. फ्लो-मीटर किसी भी मरीज को दी जाने वाली ऑक्सीजन की गति को नियंत्रित करता है. आवश्यकता से अधिक व सीधे दी जाने वाली ऑक्सीजन मरीज के लिए बहुत ही हानिकारक होती है. इसलिए अस्थाई व्यवस्था के लिए जो फ्लो-मीटर बनाया है, उसमें भी ऑक्सीजन को पहले सीधे पानी में छोड़ा गया है और फिर पानी से होकर बोतल की ऊपरी हिस्से से मास्क के सहारे मरीज को कनेक्ट किया गया है. फ्लो-मीटर ऑक्सीजन की एक तो स्पीड कंट्रोल करता है और दूसरा प्राकृतिक रूप से पानी में हृमूटिफॉयर बनाकर पानी के साथ दी जाती है, जिससे लंग्स में कोई समस्या न आएं.
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