पृथ्वी के जन्म से भी 2 करोड़ साल पुराना पत्थर मिला, सुदूर ग्रह से आया उल्का पिंड
यह एक उल्का पिंड (Meteorite) है, जो पिछले साल सहारा रेगिस्तान में मिला था. जांच में पता चला है कि इसकी उम्र 4 अरब 56 साल पुरानी है.
highlights
- उल्का पिंड दक्षिणी अल्जीरिया के इलाके बीर बेन टाकौल में 2020 में मिला
- वैज्ञानिक जांच में पाया गया है कि इसकी उम्र पृथ्वी से 20 लाख साल ज्यादा
- हमारा सौर मंडल 4 अरब 57 करोड़ साल पहले अस्तित्व में आया था
नई दिल्ली:
पृथ्वी (Earth) लगभग 4 अरब 54 करोड़ साल पहले अस्तित्व में आई थी. यह अलग बात है कि पृथ्वी से भी ज्यादा पुराना एक पत्थर सामने आया है. वास्तव में इसे पत्थर कहना गलत होगा. यह एक उल्का पिंड (Meteorite) है, जो पिछले साल सहारा रेगिस्तान में मिला था. जांच में पता चला है कि इसकी उम्र 4 अरब 56 साल पुरानी है. यह उल्का पिंड वास्तव में दक्षिणी अल्जीरिया के इलाके बीर बेन टाकौल में 2020 में मिला था. इसे एर्ग चेक बलुई समुद्र के नाम से जाना जाता है. इसीलिए इसका नामकरण एर्ग चेक 002 (EC 002) किया गया.
4 अरब 65 करोड़ साल पुरानी है पृथ्वी
वैज्ञानिकों के मुताबिक यह उल्का पिंड किसी प्रोटो प्लेनट का हिस्सा हो सकता है. प्रोटो प्लेनट सूरज या किसी बड़े तारे की कक्षा (Orbit) में तैरते पदार्थ का हिस्सा होता है. माना जाता है कि यही पदार्थ बाद में किसी ग्रह में तब्दील हो गया. यह तब हुआ होगा, जब हमारा सौर मंडल जवान रहा होगा. यानी उसकी उम्र 20 लाख साल से ज्यादा नहीं होगी. माना जाता पृथ्वी लगभग 4 अरब 54 करोड़ साल पहले अस्तित्व में आई थी. यह अलग बात है कि पृथ्वी से भी ज्यादा पुराना एक पत्थर सामने आया है. वास्तव में इसे पत्थर कहना गलत होगा. यह एक उल्का पिंड है, जो पिछले साल सहारा रेगिस्तान में मिला था. जांच में पता चला है कि इसकी उम्र 4 अरब 56 करोड़ साल पुरानी है. यह उल्का पिंड वास्तव में दक्षिणी अल्जीरिया के इलाके बीर बेन टाकौल में 2020 में मिला था. इसे एर्ग चेक बलुई समुद्र के नाम से जाना जाता है. इसीलिए इसका नामकरण एर्ग चेक 002 (EC 002) किया गया.है कि सभी ग्रहों सहित हमारा सौर मंडल इस रूप में 4 अरब 57 करोड़ साल पहले अस्तित्व में आया. सौर मंडल में सबसे पहले सूरज का जन्म हुआ, जो 4.6 अरब साल पहले माना जाता है. पीएनएएस जर्नल के मुताबिक ये खगौलीय ग्रह विशालकाय चट्टानी ग्रहों या सूरज से नजदीकी चलते कालांतर में नष्ट हो गए. इस कड़ी में बीते साल मिला उल्का पिंड ऐसे ही किसी ग्रह का हिस्सा हो सकता है, जो पृथ्वी से कहीं ज्यादा उम्र का रहा होगा. इस उल्का पिंड का स्वरूप दानेदार था, जो लावे के सूखने के बाद बनने वाले पत्थरों जैसा दिखता है.
एक उल्का पिंड का हिस्सा है चट्टान
बताया जा रहा है कि यह पत्थर दरअसल एक उल्का पिंड का हिस्सा है, जो अंतरिक्ष में घूमते समय धरती के गुरुत्वाकर्षण के कारण खिंचा चला आया. अभी यह पता नहीं चल सका है कि यह पत्थर धरती पर कब गिरा था. यह टुकड़ा किसी पुरातन ग्रह के मूल हिस्से का बताया जा रहा है. ऐसे पत्थरों को बिल्डिंग ब्लॉक के रूप में जाना जाता है. वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि यह अब तक खोजा गया सबसे पुराना पत्थर है, जो बाहरी दुनिया से हमारी धरती पर आया है. यह पत्थर हमारे सोलर सिस्टम के शुरुआती दिनों के दौरान ग्रहों के बनने के तरीके पर भी एक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है. इसमें वास्तव में कई सारे उल्कापिंड शामिल हैं, जिनका कुल वजन करीब 31 किलोग्राम के आसपास है. इस पत्थर की खोज के बाद वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि आखिर कब किसी पुराने ग्रह के क्रस्ट का लावा जो पिघला हुआ था वह ठोस में परिवर्तित हो गया. स्टडी के अनुसार, मैग्नीशियम और एल्यूमीनियम आइसोटोप की जांच से पता चला है कि यह पत्थर लगभग 4.5 अरब साल पहले ठोस में बदल गया था. बताया जाता है कि इन अग्निमय चट्टानों के अस्तित्व में आने के लाखों साल बाद धरती का निर्माण हुआ था.
ऐसी बनावट है इस उल्का पिंड की
यह उल्कापिंड में 58 प्रतिशत सिलिकॉन डाइऑक्साइड है जिससे पता चलता है कि पुराने पिंड के एंडेसाइट चट्टान की पर्पटी से बनी है. यह पृथ्वी के ज्वालामुखी इलाकों में पाई जाने वाली बेसाल्ट चट्टान से काफी अलग है. यह पभी पता चला है कि ऐसी पर्पटी हमारे सौरमंडल के शुरुआती समय में क्षुद्रग्रह और प्रोटोप्लैनेट में पाई जाती थी और आज यह बहुत ही कम पाई जाती है. प्रोसिडिसिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस में प्रकाशित इस अध्ययन की प्रमुख लेखिका और फ्रांस की वेस्टर्न ब्रिटैनी यूनिवर्सिटी में जियोकैमिस्ट्री की प्रोफेसरजीन एलिक्स बैरेट कहती हैं कि EC 002 दूसरे क्षुद्रग्रह समूहों से स्पष्ट तौर पर अलग है. किसी भी पिंड की स्पैक्ट्रल विशेषताएं इससे अभी तक कहीं भी मेल नहीं खाती नहीं दिखी हैं. बैरेट का दावा है कि पुरातन पर्पटी के अवशेष उल्कापिंड केरिकॉर्ड में न केवल बहुत ही कम पाए गए हैं, बल्कि ये आज के क्षुद्रग्रह की पट्टी में भी बहुत ही कम हैं. इससे यह संकेत मिलता है कि सौरमंडल के शुरुआती प्रोटोप्लैनेट और उनकी ज्यादातर टुकड़े या तो निश्चित तौर पर खत्म हो गए था. या फिर बढ़ते पथरीले ग्रहों से जुड़ते गए थे. यही वजह रही होगी पुरातन पर्पटी से निकलने वाले इस तरह के उल्कापिंड अपवाद की तरह दिख रहे हैं.
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