पीरियड के दौरान जहन्नम जैसी जिंदगी, गांव से बाहर कुर्मा घरों में रहती हैं महिलाएं
मासिक धर्म यानी पीरियड के दौरान महिलाओं को घर से 'निर्वासित' कर दिया जाता है. महिलाओं को अपने घरों को छोड़कर गांव की सीमा से दूर जंगल के पास टूटी फूटी झोपड़ियों में रहना पड़ता है.
गढ़चिरौली:
आधुनिक भारत में आज भी सदियों पुराने रीति रिवाजों को माना जाता है और इनके नाम पर महिलाओं पर अत्याचार होता आया है. देश में महिलाओं की स्थिति कुछ खास नहीं सुधरी है. शहरी इलाकों को अगर छोड़ दें तो देश के ग्रामीण इलाकों आज भी पुरानी बंदिशों में बंधी हैं. खासकर आदिवासी इलाकों में महिलाओं की हालत बहुत ही दयनीय है. जिसका उदाहरण आपको महाराष्ट्र के आदिवासी इलाकों में देखने को मिल जाएगा, जहां कुरीतियों की बदौलत आज भी मासिक धर्म यानी पीरियड (जिससे इस धरती पर हर महिला को गुजरना होता है) के दौरान महिलाओं को घर से 'निर्वासित' कर दिया जाता है. महिलाओं को अपने घरों को छोड़कर गांव की सीमा से दूर जंगल के पास टूटी फूटी झोपड़ियों में रहना पड़ता है.
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पीरियड के दौरान कुर्मा घरों में रहती हैं महिलाएं
पीरियड के दौरान महिलाओं को अपवित्र माना जाता है और ऐसे में उनको गांव से बाहर भेज दिया जाता है. इस दौरान महिलाओं का गांव में प्रवेश वर्जित रहता है. महिलाएं जंगल में टूटी-फूटी झोपड़ियों में रहती हैं, जिसे आदिवासियों की भाषा में कुर्मा घर या ग़ोकोर कहा जाता है. पीरियड के दौरान महिलाओं से पुरुष भी दूरी बना लेते हैं और अगर पुरुष ने मासिक धर्म वाली महिला को छू भी लिया तो उसे तुरंत नहाना होता है. खाने पीने के लिए इन महिलाओं को घर की दूसरी महिलाओं पर आश्रित रहना पड़ता है.
जहन्नम से खौफनाक भी हैं 'पीरियड हट्स'
ऐसा कहा जाता है कि कुर्मा घर कालापानी से कम नहीं होते हैं. कालापानी की जितनी भयावह और तकलीफदेह सजा होती थी, उससे भी ज्यादा कष्ट इन झोपड़ियों में रहने पर होता है. कुर्मा घरों में ना खाने पीने की व्यवस्था होती है और सोने का इंतजाम होगा. कई बार जंगली जानवर तक इनके अंदर घुस जाते हैं. बताया जाता है कि इन झोपड़ियों में रहते हुए कई महिलाएं सांप के काटने से अपनी जिंदगी खो चुकी हैं. कहा जाता है कि पीरियड हट्स भी एक जहन्नम की तरह है, जहां कोई महिला नहीं जाना चाहती. मगर सदियों से चली आ रही पुराने रीतिरिवाजों के नाम पर महिलाओं पर अत्याचार होता आ रहा है.
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मदद को आगे आए एनजीओ
हालांकि अब इन महिलाओं की मदद के लिए एनजीओ आगे आएं हैं. महिलाएं को इस नर्क भरी झोपड़ी से निकालने के लिए कई एनजीओ मदद कर रहे हैं. इन महिलाओं के लिए एक आरामदायक और जरूरी सुविधाओं से युक्त छोटी छोटी बांस की झोपड़ियां बनवाई जा रही हैं, ताकि पीरियड हट्स के दौरान महिलाओं को परेशानी न हो. ये पहले से काफी सुविधाजनक व कई गुना बेहतर हैं और इनको महिलाएं पसंद भी कर रही हैं.
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