बरोई गांव के जैन समाज का नारा 'हम दो, हमारे तीन', दूसरे-तीसरे बच्चे को 10 लाख भी
जैन समाज अभी भी अल्पमत में है. गांव में 400 परिवार हैं, जिनके सदस्य अब मुश्किल से 1,100 से 1,200 के आसपास हैं.
highlights
- बरोई गांव के जैन समुदाय की अपने लोगों से अपील
- आबादी बढ़ाने के लिए हम दो हमारे तीन का नारा
अहमदाबाद:
गुजरात के बरोई गांव में कच्छ वीजा ओसवाल जैन समुदाय की घटती जनसंख्या को रोकने के लिए 'हम दो, हमारे तीन' योजना की घोषणा की गई है, जिसमें संप्रदाय के युवा जोड़ों को और अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रेरित किया गया. इस योजना के तहत दंपति के दूसरे और तीसरे बच्चे को 10-10 लाख रुपये दिए जाएंगे. बच्चे के जन्म पर एक लाख रुपये और शेष नौ लाख रुपये उसके हर जन्मदिन पर 50,000 रुपये की किस्तों के रूप में 18 साल के होने तक दिए जाएंगे. 'मुंबईगरा केवीओ जैन महाजनों' (मुंबई चले गए समुदाय के लोगों का एक समूह) द्वारा शुरू किए गए अभियान का पैम्फलेट भी सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है. 1 जनवरी 2023 के बाद जन्म लेने वाले हर दूसरे और तीसरे बच्चे को इस योजना का लाभ मिलेगा.
बरोई गांव के जैनियों के लिए है योजना
बरोई केवीओ जैन समाज के सचिव अनिल केन्या ने कहा, 'यह योजना केवल हमारे बरोई गांव में जैन समुदाय के लोगों के लिए है. जैन समाज अभी भी अल्पमत में है. गांव में 400 परिवार हैं, जिनके सदस्य अब मुश्किल से 1,100 से 1,200 के आसपास हैं.' केन्या ने कहा, 'कुछ परिवारों में केवल बुजुर्ग होते हैं, तो भविष्य में उनकी देखभाल कौन करेगा? अगले 50 वर्षों में पूरे समाज का सफाया हो सकता है. आज कई युवा जोड़े अविवाहित या नि:संतान रहना पसंद करते हैं. आसपास के गांवों में कई ग्रामीण इस कदम के बारे में भी सोचें. जैन समाज में भी सभी परिवार समृद्ध नहीं हैं. इसलिए कुछ परिवार अन्य परिवारों की जिम्मेदारी लेने को भी तैयार हैं, भले ही उनके एक से अधिक बच्चे हों. यह एक तरह का प्रोत्साहन है.'
बहुत कम हो गई आबादी
जाने-माने समाजशास्त्री गौरांग जानी ने कहा कि पिछली तीन जनगणना के अनुसार, पिछले तीन दशकों में कच्छ के कुल परिवार के आकार में कमी आई है. यह कोई नई चिंता नहीं है, इसका एक मुख्य कारण यह है कि पलायन बहुत अधिक हुआ है. जानी ने कहा, 'शिक्षित और अमीर होने के कारण जैन लोग मुंबई, विदेश या अन्य बड़े शहरों में चले गए. भूकंप ने कई गांवों को भी खाली कर दिया. आप किसी को पलायन करने से नहीं रोक सकते. इसलिए नई पीढ़ी के पास ज्यादा बच्चे पैदा करना एकमात्र विकल्प है.' समाजशास्त्री ने कहा, 'आज पूरे भारत में केवल 53,000 पारसी हैं, इतने कम हैं कि उनका अलग धर्म कॉलम जनगणना के फॉर्म में नहीं दिया जा सकता. हमारे यहां प्रति महिला 2.2 बच्चे हैं, इसलिए हर समाज की आबादी घट रही है.' उन्होंने कहा कि जैन समुदाय की नजर में यह घोषणा उचित हो सकती है, लेकिन यह देखा जाना बाकी है कि क्या दंपति इसे व्यक्तिगत रूप से स्वीकार करेंगे या नहीं.
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