पानी की हो रही थी किल्लत, महिलाओं ने चीर डाला पहाड़ी का सीना
गांव के किसान रामरतन राजपूत ने मीडिया से कहा कि साल 2020 में उनके गांव में केवल दो बार बारिश हुई, लेकिन इतनी कम बारिश के बावजूद, 10 कुएं और पांच बोरवेल सूखे नहीं. लगभग 12 एकड़ के खेत में भी पर्याप्त पानी है.
भोपाल:
बुंदेलखंड में पानी की खातिर महिलाओं ने कड़ी मशक्कत कर पहाड़ी को काट दिया. महिलाओं की दिलेरी की यह घटना इन दिनों चर्चा में है. दावा किया जा रहा है कि 200 महिलाओं ने मिलकर पहाड़ी को काटा और अपने गांव को पानी की समस्या से निजात दिला दी. इस मुहिम के लिए महिलाओं को 19 साल की लड़की बबीता राजपूत ने प्रेरित किया और उनकी अगुवाई की. यह कहानी है छतरपुर जिले के बड़ा मलहरा क्षेत्र के अंगरौठा गांव की. यहां कभी पानी का संकट हुआ करता था. यहां एक तरफ पहाड़ है और दूसरी तरफ नदी व एक छोटा सा तालाब भी है. जब नदी का पानी सूख जाता था, तब तालाब से ही लोगों की जरूरत पूरी होती थी. मई-जून आते तक पानी का संकट बढ़ जाता था. यहां की लड़की बबीता राजपूत ने मगर हालात बदलने की ठान ली.
बीए की डिग्री हासिल कर चुकी बबीता राजपूत ने महिलाओं को पहाड़ी को काटकर नदी और तालाब के पानी का उपयोग करने की अपनी योजना समझाई. सभी महिलाएं इसके लिए तैयार हो गईं. योजना के मुताबिक, गांव की 200 महिलाओं की मदद से बबीता ने 107 मीटर लंबी खाई खोदकर पहाड़ को काट दिया. इससे गांव के लोग पानी के संकट से मुक्त हो गए. असंभव को संभव कर दिखाने वाली लड़की और मेहनती महिलाओं की गांव ही नहीं, समूचे इलाके के लोगों ने सराहना की.
गांव के किसान रामरतन राजपूत ने मीडिया से कहा कि साल 2020 में उनके गांव में केवल दो बार बारिश हुई, लेकिन इतनी कम बारिश के बावजूद, 10 कुएं और पांच बोरवेल सूखे नहीं. लगभग 12 एकड़ के खेत में भी पर्याप्त पानी है.
बबीता के मुताबिक, वर्ष 2018 तक यहां पानी का भारी संकट हुआ करता था. सालों से गांव के निवासी पानी के संकट से जूझ रहे थे. जबकि उनके आसपास के क्षेत्र में तालाब था जो सूख जाता था . इसके अलावा थोड़ा सा बारिश का पानी एक पहाड़ी के दूसरी तरफ बह जाता और बछेरी नदी में विलीन हो जाता था.
बबीता ने बारिश के पानी को रोकने और एक रास्ते से तालाब तक पानी लाने की योजना पर काम किया. इसके लिए उसे वन विभाग से अनुमति हासिल करने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी. लोगों को इकट्ठा करने और पानी संरक्षण के लिए बबीता और अन्य लोगों को जागृत करने में परमार्थ समाजसेवी संस्थान ने बड़ी भूमिका निभाई. सामूहिक प्रयास हुए और पहाड़ी को काट दिया गया. एक खाई के जरिए नदी को तालाब से जोड़ दिया गया है.
गांव वाले बताते हैं कि तालाब के खाली हिस्से पर कुछ किसानों ने खेती में करना शुरू कर दिया था, और अपने लाभ के लिए सीमित जल संसाधन का उपयोग कर रहे थे. यदि बारिश का पानी झील में भर जाता, तो वे जमीन खो देते. इसलिए, उन्होंने इस संबंध में किसी भी संभावित विकास का विरोध किया. उसके बावजूद प्रयास किए गए और सफल रहे. बछेड़ी नदी का पानी तालाब तक एक खाई के माध्यम से आया.
महिलाओं द्वारा पहाड़ी को काटे जाने की इलाके में खूब चर्चा है, साथ ही सवाल भी उठे हैं. एक अधिकारी ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहा कि पहाड़ी काटी गई है, बछेड़ी नदी का पानी तालाब तक लाने के प्रयास हुए हैं, मगर यह पूरी तरह सच नहीं है कि महिलाओं ने पहाड़ी को काटा. सच यह है कि पहाड़ी को जेसीबी मशीन और डायनामाइट के जरिए काटा गया था. महिलाओं ने मिट्टी खुदाई में मदद जरूर की.
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