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जब डॉक्टरों ने भी छोड़ दी थी उम्मीद तब ऐसे बची युवक की जान

जब डॉक्टरों ने भी उम्मीद छोड़ दी तो शख्स को वेंटिलेटर से भी हटा दिया गया था और 3 जुलाई को तेलंगाना के सूर्यपुरी जिले के पिल्लमरी गांव में उसके घर में वापस एंबुलेंस में ऑक्सीजन मास्क पहने पहुंचाया गया

जब डॉक्टरों ने भी उम्मीद छोड़ दी तो शख्स को वेंटिलेटर से भी हटा दिया गया था और 3 जुलाई को तेलंगाना के सूर्यपुरी जिले के पिल्लमरी गांव में उसके घर में वापस एंबुलेंस में ऑक्सीजन मास्क पहने पहुंचाया गया

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Aditi Sharma
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जब डॉक्टरों ने भी छोड़ दी थी उम्मीद तब ऐसे बची युवक की जान

फोटो- IANS

हैदराबाद के एक अस्पताल में डेंगू और पीलिया से पीड़ित 18 वर्षीय युवक गंधम किरण को ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया था, जिसे अब चमत्कारिक रूप से होश आ गया है. किरण की जान बचने की उम्मीद ही नहीं थी और उसके रिश्तेदारों और दोस्तों ने तो उसके अंतिम संस्कार की तैयारी तक कर ली थी. जब डॉक्टरों ने भी उम्मीद छोड़ दी तो उसे वेंटिलेटर से भी हटा दिया गया था और 3 जुलाई को तेलंगाना के सूर्यपुरी जिले के पिल्लमरी गांव में उसके घर में वापस एंबुलेंस में ऑक्सीजन मास्क पहने पहुंचाया गया.

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जैसा कि किरण के परिवार को सूचित किया गया था कि वह एक-दो घंटे में अंतिम सांस लेगा, इसके बाद उसके रिश्तेदार अंतिम संस्कार के लिए उनके घर पर इकट्ठे हो गए थे. किरण की मां, गंधम सैदम्मा, जिन्हें अपने बेटे की स्थिति के बारे में जानकारी नहीं थी, अंतिम संस्कार के लिए फूल, जलाऊ लकड़ी और अन्य सामग्री की व्यवस्था कर रहे रिश्तेदारों को देख हैरान रह गई और रो पड़ी.

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रात के करीब कुछ रिश्तेदारों ने किरण के गाल पर आंसू देखे. उन्होंने एक स्थानीय पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टिशनर (आरएमपी) जी. राजाबाबू रेड्डी को बुलाया, जिन्होंने रोगी की जांच की और एक बेहोश नाड़ी पाई. उन्होंने हैदराबाद के अस्पताल में किरण का इलाज करने वाले डॉक्टर से बात की और उनकी सलाह पर इंजेक्शन लगाना शुरू कर दिया. इसके बाद डॉक्टर ने किरण के शरीर में कुछ गतिविधि देखी तो उसे स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया गया. तीन दिनों के उपचार के बाद किरण को होश आया और वह अपनी मां से बात करने लगा.

किरण की मां सैदम्मा ने बताया, 'अब वह घर वापस आ गया है और कुछ लिक्विड खाना ले रहा है. हम दवा जारी रख रहे हैं.'

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सैदम्मा ने कहा, उनका मानना है कि भगवान ने उनकी प्रार्थनाओं को सुना और उसके छोटे बेटे की जान बचा ली. उन्होंने कहा कि 2005 में अपने पति को खोने के बाद, मैंने अपने दो बेटों को पालने के लिए मजदूरी की और उन्हें शिक्षा दी. वे मेरे लिए सब कुछ हैं. किरण सूर्यापेट के एक कॉलेज में बैचलर ऑफ साइंस (बीएससी) का छात्र है. उनके बड़े भाई सतेश ने बताया कि किरण को 26 जून को उल्टी और दस्त होने लगे थे. उसे पहले सूर्यापेट के सरकारी जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था. जब उसकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ, तो उसे हैदराबाद के एक निजी अस्पताल में ले जाया गया, जहां डेंगू और पीलिया का पता चला और बाद में वह कोमा में चला गया.

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