Himachal: यहां दूल्हा नहीं दुल्हन लेके जाती है बारात, सालों से निभा रहे हैं परंपरा
Himachal: आज ऐसे शादी की बात करेंगे जहां दुल्हन बारात लेकर दूल्हे के घर जाती है. जी हां आप सोच रहे होंगे ये कैसे. लेकिन ये सच है. ये कहानी है हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले की.
नई दिल्ली:
Himachal: शादी किसी भी शख्स के लिए बड़ा दिन होता है. ये उसके जीवन का अहम किस्सा होता है जिसे लोग यादगार बनाने के लिए कई तरह की रस्में और रीति-रिवाज करते हैं. लोग इसके लिए लाखों-करोड़ो रुपए खर्च कर दते है. वहीं हम देखते हैं कि आम तौर पर शादियों में लड़के के परिवार और दोस्त बारात लेकर आते हैं. इसके बाद लड़की के घर पर शादी होती है जिसमें लड़का और लड़की सात फेरें लेते हैं. लेकिन आज ऐसे शादी के बारे में बात करेंगे जिसमें लड़की बारात लेकर दूल्हे के घर जाती है.
सालों से चली आ रही परंपरा
आज ऐसे शादी की बात करेंगे जहां दुल्हन बारात लेकर दूल्हे के घर जाती है. जी हां आप सोच रहे होंगे ये कैसे. लेकिन ये सच है. ये कहानी है हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले की. यहां दुल्हन दूल्हे के घर शादी करने जाती है. इस रिवाज को जाजड़ा परंपरा कहते हैं. दरअसल सिरमौर जिले के गिरिपार एरिया में एक समुदाय है जिसे हाटी कम्यूनिटी कहते हैं. ये पूरा एरिया आदिवासियों का है. कुछ ही समय पहले ही केंद सरकार ने हार्टी कम्यूनिटी को एसटी केटेगरी में रखा है. इस समुदाय में ये परम्परा सालों से चली आ रही है.
आर्थिक कारण
हालांकि इस रिवाज के पीछे का क्या कारण है ये किसी को नहीं पता है. लेकिना माना जाता है कि पहले जमाने के समय में लोग गरीब होते थे और पैसे नहीं होते थे. इतना ही नहीं जनसंख्या भी अधिक थी. इसकी वजह से शादी एक बड़ा आयोजन माना जाता था. लोग सीमित साधन में ही शादी कर पाते थे. इसकी वजह से लड़के के परिवारवालों को सारा अरेंजमेंट करना पड़ता है. लेकिन ये परंपरा धीरे-धीरे खत्म होते जा रही है.
चार तरीके से शादी
इस साल की बात करें तो जनवरी 2023 में ऐसी ही शादी हुई. सिरमौर जिले के इस शादी में 100 से अधिक बाराती शामिल हुए जिसमें दुल्हन भी शामिल थी. ये बारात उत्तराखंड के चकराता से सिरमौर गई थी. ये शादी सुमन की राजेंद्र के साथ तय थी. यहां सारी रस्में दूल्हा राजेन्द्र के घर संपन्न हुई. रिपोर्ट के अनुसार सिरमौर में करीब 1.5 से 2 लाख लोग हाटी समुदाय से आते हैं. यहां चार तरीके से शादी होती है. पहला बाला ब्याह इसमें बचपन में ही रिश्ता तय हो जाता है. दूसरा झाजड़ा, तीसरा खिताइयूं और चौथा है हार परंपरा.
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