अमेरिका से लौटे इंजीनियर ने पथरीली पहाड़ी को हरा-भरा कर दिया, पढ़ें पूरी खबर
अब बांस-रोपण और बांस आधारित उद्योग के जरिये न केवल उनका परिवार आर्थिक रूप से समृद्ध हुआ, बल्कि बांस-रोपण की देख-रेख के लिये 30 परिवारों को जोड़ने के अलावा बांसकारी से अगरबत्ती बनाने की दो इकाइयों में 70 महिलाओं को भी रोजगार उपलब्ध करा रहे हैं.
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जब हालात बदलने का जज्बा और जुनून हो तो पत्थर पर भी पेड़ उगाए जा सकते हैं. इसका प्रमाण है मध्य प्रदेश के खरगोन जिले के दीपक गोयल, जो कभी अमेरिका में इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हुआ करते थे. अब वे अपनी पत्नी शिल्पा गोयल के साथ पथरीली पहाड़ी को भी हरा-भरा करने में कामयाब हुए हैं. गोयल दंपति लगभग एक दशक पहले अमेरिका से स्वदेश लौटे और खरगोन के सुंद्रेल गांव में खेती का मन बनाया. उन्होंने सुन्द्रेल की पथरीली पहाड़ी पर बांस की 'हरी भूमि' करने के लिये पहाड़ी के आस-पास के क्षेत्र की मुरुमी पथरीली भूमि को खेती के लायक बनाने के लिये दिन-रात मशक्कत की.
उनकी मेहनत का नतीजा यह कि अब बांस-रोपण और बांस आधारित उद्योग के जरिये न केवल उनका परिवार आर्थिक रूप से समृद्ध हुआ, बल्कि बांस-रोपण की देख-रेख के लिये 30 परिवारों को जोड़ने के अलावा बांसकारी से अगरबत्ती बनाने की दो इकाइयों में 70 महिलाओं को भी रोजगार उपलब्ध करा रहे हैं. इंजीनियर दीपक गोयल बताते है कि उन्हें अपनी संगिनी शिल्पा गोयल के साथ प्रदेश लौटते वक्त बांस की खेती से जुड़ने का ख्याल नहीं आया. यहां आकर सबसे पहले फल उद्यानिकी के कार्य को हाथ में लिया. इसके बाद उनके दिमाग में बांस प्रजाति का उपयोग कर अपनी और क्षेत्र की तस्वीर और तकदीर बदलने का जुनून सवार हो गया.
गोयल दंपति ने बांस की खेती की बारीकियों को साझा किया
गोयल दंपति ने विभिन्न राज्यों में जाकर बांस की खेती और इससे जुड़े उद्योगों की बारीकियों को समझा. फिर उन्होंने प्रदेश के वन विभाग के अधिकारियों से संपर्क किया. दो साल पहले गोयल दंपति ने बांस मिशन से सब्सिडी प्राप्त कर बड़े पैमाने पर टुल्डा प्रजाति के बांस के पौधे त्रिपुरा से लाकर रोपे. गोयल दंपति द्वारा भीकनगांव के ग्राम सुन्द्रेल, सांईखेड़ी, बागदरी और सनावद तहसील के ग्राम गुंजारी में तकरीबन 150 एकड़ एरिया में बांस का रोपण किया गया. इन्होंने बांस मिशन योजना में सब्सिडी प्राप्त कर पिछले साल बांस की काड़ी से अगरबत्ती बनाने की दो इकाई भी प्रारंभ की. इस वक्त इन इकाईयों में 70 महिलाओं को सतत रूप से रोजगार मिल रहा है.
किसानों को मन से गलतफहमी निकालनी चाहिए
अपने अनुभव साझा करते हुए दीपक गोयल ने बताया कि किसानों को इस गलतफहमी को दिमाग से निकाल देना चाहिये कि बांस के रोपण के बाद अन्य नियमित फसलें नहीं ली जा सकती. उन्होंने स्वयं बांस-रोपण में इंटरक्रॉपिंग के रूप में अरहर, अदरक, अश्वगंधा, पामारोसा आदि फसलों का उत्पादन प्राप्त किया है. उनका कहना है कि इंटरक्रॉपिंग से कुल लागत में कमी आती है और खाद तथा पानी से बांस के पौधों की बढ़त काफी अच्छी होने से समन्वित रूप से सभी फसलों में लाभ प्राप्त करना सहज मुमकिन है.
बांस की खेती में है कम रिस्क और ज्यादा मुनाफा
आपको बता दें कि मध्यप्रदेश राज्य बांस मिशन के तहत बांस के पौधे लगाने पर हितग्राही को तीन साल में प्रति पौधा 120 रुपये का अनुदान देता है. इस अनुदान के चलते किसान की लागत बेहद कम आती है. खासियत यह भी है कि इस फसल पर कोई बीमारी या कीड़ा नहीं लगता, जिससे महंगी दवाएं और रासायनिक खाद के उपयोग की जरूरत भी नहीं पड़ती. दीपक गोयल ने बताया कि हर साल बांस की फसल से प्रति हेक्टेयर तकरीबन ढाई हजार क्विंटल बांस के पत्ते नीचे गिरते हैं, जिससे उच्च गुणवत्ता की कम्पोस्ट खाद बनाई जाती है. इससे खेत की जमीन की उर्वरा शक्ति को सशक्त बनाया जा सकता है. दीपक गोयल ने अपने अनुभव के आधार पर दावा किया कि बांस की खेती से कम रिस्क और ज्यादा मुनाफा मिलता है. हर किसान को अपने खेत के 10 फीसदी हिस्से में बांस लगाना चाहिए.
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