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इस बार अक्टूबर में भी उत्तराखंड की वादियों में खिले ब्रह्मकमल, जानिए क्या है खासियत

ये सामान्य कमल के फूल की तरह जल में नहीं पैदा होता है. ये धरती की ऊंचाई वाली जगहों पर अक्टूबर-नवंबर के महीनों में उगता है. आपको बता दें कि अपने औषधीय गुणों के कारण ये मानवों के अस्तित्व में आया

Updated on: 10 Oct 2020, 04:57 PM

नई दिल्‍ली:

इस साल कोरोना गाइड लाइन के चलते प्रकृति के बहुत से परिवर्तन अपने समय से होते हुए दिखाई दे रहे हैं. इस साल उत्तराखंड के चमोली जिले में अक्टूबर के महीने में ही ब्रम्ह कमल खिले हुए दिखाई दे रहे हैं, साथ ही इसी समय यहां पर बर्फबारी भी शुरू हो गई है. ब्रम्ह कमल जमीन पर ही खिलने वाला एक औषधीय पुष्प है इस फूल की अपनी धार्मिक विशेषताएं भी होती हैं. पुरानी मान्यताओं की मानें तो इस फूल का नाम ब्रह्म कमल है जो कि ब्रह्मदेव के नाम पर मिला है. ब्रह्मकमल एस्टेरेसी कुल का पौधा है, इसका वैज्ञानिक नाम साउसिव्यूरिया ओबलावालाटा (Saussurea obvallata) है.  

ये सामान्य कमल के फूल की तरह जल में नहीं पैदा होता है. ये धरती की ऊंचाई वाली जगहों पर अक्टूबर-नवंबर के महीनों में उगता है. आपको बता दें कि अपने औषधीय गुणों के कारण ये मानवों के अस्तित्व में आया और इसी वजह से ये लुप्त होने की कगार पर जा पहुंचा है. इसके अलावा ब्रम्ह कमल को तीर्थयात्रियों से भी काफी नुकसान पहुंचता है. यह औषधीय पौधा होने के साथ ही विशेष धार्मिक महत्व भी रखता है. शिव पूजन के साथ ही नंदादेवी पूजा में भी ब्रह्मकमल विशेष रूप से चढ़ाया जाता है. मौजूदा समय में ब्रम्ह कमल की संख्या में 50 फीसदी से भी ज्यादा की कमी आ चुकी है. ब्रम्ह कमल का उपयोग अल्सर और कैंसर रोग में किया जाता है. 

अक्टूबर के महीने में ब्रम्ह कमल बिखेर रहा है अपनी खुशबू
हिमालय के ऊंचाइयों वाले क्षेत्रों में 15 सितंबर तक खिलने वाला ब्रह्मकमल इस बार अक्टूबर के महीनें में भी अपनी खुशबू बिखेर रहा है.  ये जमीन से लगभग 4750 मीटर की ऊंचाई पर पाए जाते हैं.विनायक, नंदीकुंड पांडवसेरा में अभी भी हजारों की संख्या में ब्रह्मकमल खिले हैं. आपको बता दें कि इस साल आई महामारी कोरोना की वजह से प्रकृति के कई नजारे अपने समय पर देखने को मिले हैं इसी में से अक्टूबर के महीनें में ब्रम्हकमल का मिलना भी है. कोरोना संक्रमण के दौरान लागू की गई सरकारी गाइड लाइंस ब्रम्ह कमल के लिए संजीवनी बन गईं हैं. मानवीय आवाजाही नहीं होने की वजह से इस बार ब्रम्ह कमल का दोहन नहीं हो पाया है. आपको बता दें कि इस दुर्लभ प्रजाति के लिए ये शुभ संकेत है.

औषधीय उपयोग के चलते विलुप्ति की कगार पर पहुंचा ब्रम्ह कमल
कोरोना गाइड लाइंस के चलते लेकिन इस बार अभी तक हिमालय क्षेत्रों में ब्रह्मकमल खिला हुआ है. वैसे तो इसके औषधीय उपयोग के चलते लोग इसे पूरी तरह से खिलने से पहले ही नष्ट कर देते हैं जिसकी वजह से ये लगातार विलुप्ति की कगार पर पहुंच गया है. इस बार नंदीकुंड के इर्द-गिर्द अभी भी हजारों की संख्या में ब्रह्मकमल खिला हुआ है. ब्रह्मकमल के कई औषधीय उपयोग भी हैं. जले-कटे में, सर्दी-जुकाम, हड्डी के दर्द आदि में इसका उपयोग किया जाता है. इसे सुखाकर कैंसर रोग की दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. इससे निकलने वाले पानी को पीने से थकान मिट जाती है. पुरानी खांसी भी काबू हो जाती है. ग्रामीण गांव में रोग और बीमारियों से बचने के लिए ब्नम्ह कमल के फूल को अपने घरों के दरवाजों पर ही लटका देते हैं.