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Kargil Vijay Diwas: भारतीय जांबाजों ने कैसे पाक सेना को चटाई धूल? लाहौर पर भी लहरा सकता था तिरंगा, पढ़ें पूरी कहानी

कारगिल युद्ध में दुश्मनों के दांत खट्टे करने वाले लालचंद प्रसाद यादव कहते हैं कि जब सेना में रहा तब कारगिल के युद्ध में शामिल रहा और आमने-सामने की लड़ाई में दुश्मनों को मात दिया.

कारगिल युद्ध में दुश्मनों के दांत खट्टे करने वाले लालचंद प्रसाद यादव कहते हैं कि जब सेना में रहा तब कारगिल के युद्ध में शामिल रहा और आमने-सामने की लड़ाई में दुश्मनों को मात दिया.

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Mohit Sharma
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Kargil Vijay Diwas News

भारतीय जांबाजों ने कैसे पाक सेना को चटाई धूल

Kargil Vijay Diwas: कारगिल दिवस पर जहा आज पूरा देश कारगिल के वीरों को याद कर रहा है. ऐसे ही एक वीर हैं वाराणसी के लालचंद यादव, जो कारगिल युद्ध में शामिल रहे. काशी के लालचंद प्रसाद ने देश के दुश्मनों के खूब दांत खट्टे किए हैं. वो कहते हैं कि हम कारगिल विजय के बाद लाहौर पर भी कब्जा कर सकते थे पर हमे ऑर्डर नहीं मिला देखिए इस वीर सपूत की दास्तान....

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कारगिल युद्ध में दुश्मनों के दांत खट्टे करने वाले लालचंद प्रसाद यादव कहते हैं कि जब सेना में रहा तब कारगिल के युद्ध में शामिल रहा और आमने-सामने की लड़ाई में दुश्मनों को मात दिया. दुश्मन से युद्ध जीतने का का ऐसा जोश, जज्बा और जुनून था कि पहाड़ों की चढ़ाई होने के बावजूद थकान नहीं आती थी.

लालचंद प्रसाद बताते हैं कि वह वाराणसी के मूल रूप से अमरा गांव के निवासी हैं. बचपन से ही पहलवानी करते थे और राष्ट्रीय पहलवान के रूप में जाने जाते थे. कई विभागों ने इन्हें नौकरी का ऑफर दिया था लेकिन उनका सेना में सलेक्शन हुआ . इनकी भर्ती पहलवान होने के कारण ही सेना में हुई. लंबाई मात्र 5 फिट होने के बावजूद भी इन्हें सेना ने सेवा में लिया. 

लालचंद प्रसाद सेना में सेवा के दौरान देश में कई जगह तैनात रहे. कारगिल युद्ध के समय यह पूरे समय ड्यूटी पर रहे. घर के लोगों से बात नहीं हो पाती थी. सिर्फ उस समय दुश्मन को हराने और सबसे ऊंची चोटी पर अपने बंकर को अपने हाथ में लेकर तिरंगा फहराने का जज्बा था. उन्होंने बताया कि वह लोग कठिन परिस्थिति में थे, पर हर तरह से जंग जीतना चाहते थे. बताया कि भारतीय सैनिक हर रोज आगे बढ़ते जाते थे. कहा कि हमारे सामने चढ़ाई थी दुश्मन ऊपर बैठा था, लेकिन उसको भारतीय सैनिकों के जोश और जज्बे ने मार गिराया. और हम तो लाहौर भी जीत लेते पर हमे इसका ऑर्डर नहीं था.लालचंद दुख व्यक्त करते हैं कि बहुत से उनके साथी उस लड़ाई में साथ छोड़ गए, उन्हे वो आज के दिन सलाम करते हैं . कहते हैं कि वह दृश्य आज भी आंखों में तैरतें हैं. बचपन में किताबों में पढ़ा था वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो. वही पंक्तियां कानों में गूजती थीं. निगाह पक्का करके गोली चलाता था. लक्ष्य था एक गोली एक दुश्मन सैनिक. 

वीर लालचंद्र आज भी अपने सेना के वर्दी को संभाले रखा हैं और उसके साथ वो फोटो भी लेते है लालचंद्र ने 1993 से लेकर 2019 तक फौज में रहे है और रिटायर होने के बाद भी बिजली विभाग में उसी सिद्दत के साथ से नौकरी करते हैं.

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