Gujarat Formation Day 2025: आप जब गुजरात की सीमा पर स्थित महागुजरात आंदोलन स्मारक की ओर बढ़ते हैं, तो आपको केवल पत्थरों की रचना नहीं, बल्कि एक राज्य के जन्म की गूंज सुनाई देती है. ये वही ज़मीन है जहां से एक नई पहचान ने आकार लिया था-गुजरात की पहचान. गुजरात स्थापना दिवस हर साल 1 मई को मनाया जाता है, लेकिन इसके पीछे की कहानी केवल एक तारीख नहीं, बल्कि एक लंबे संघर्ष, सांस्कृतिक गर्व और राजनीतिक चेतना की परिणति है.
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भाषाई आत्मसम्मान के लिए की अलग राज्य की मांग
1950 के दशक के अंत में, जब भारत भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की ओर बढ़ रहा था, तब गुजराती भाषी लोगों ने अपना अलग राज्य बनाने की मांग उठाई. यह सिर्फ एक प्रशासनिक निर्णय नहीं था, बल्कि भावनाओं और भाषाई आत्मसम्मान की लड़ाई थी. महागुजरात आंदोलन (Mahagujarat MovementMahagujarat Movement), जिसकी शुरुआत 1956 में हुई थी, धीरे-धीरे एक जनआंदोलन बन गया. इस आंदोलन में छात्र, बुद्धिजीवी, व्यापारी और आम नागरिक, सब शामिल हुए. अहमदाबाद, सूरत और वडोदरा की गलियों में नारे गूंजते थे- "जय जय गरवी गुजरात".
दो हिस्सो में बंट गया बॉम्बे स्टेट
कहते हैं, 1960 की शुरुआत में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को जनआक्रोश का अंदाज़ा हुआ, तब जाकर उन्होंने अलग राज्य की बात मानी. और फिर आया वो दिन- 1 मई 1960. इस दिन बॉम्बे राज्य का विभाजन हुआ और दो नए राज्य बने: महाराष्ट्र और गुजरात. गुजरात के पहले मुख्यमंत्री डॉ॰ जीवराज नारायण मेहता बने. उनके नेतृत्व में राज्य ने प्रशासनिक नींव रखी और आगे बढ़ने की दिशा तय की. तब अहमदाबाद यहां की राजधानी हुआ करती थी, जिसे बाद में गांधीनगर ने स्थानांतरित कर दिया.
भाषा, संस्कृति और लोकशक्ति ने मिलकर रचा इतिहास
गुजरात सिर्फ खनिज, उद्योग और व्यापार के लिए नहीं जाना जाता. ये राज्य सांस्कृतिक समृद्धि, गर्वीले गरबा, लोक संगीत, और महात्मा गांधी की जन्मभूमि के तौर पर भी पहचाना जाता है. आज जब हम गुजरात स्थापना दिवस मनाते हैं, तो ये केवल एक राज्य बनने की कहानी नहीं है. ये उस आत्मसम्मान की कहानी है, जहां भाषा, संस्कृति और लोकशक्ति ने मिलकर इतिहास को आकार दिया. गुजरात की यही खासियत है. यहां संघर्ष में भी गरिमा है, और विकास में भी संस्कार.
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