Anna Bhau Sathe Life Story: हाल ही में कांग्रेस सांसद वर्षा एकनाथ खड़गे ने लोकसभा में महाराष्ट्र के प्रसिद्ध साहित्यकार अण्णा भाऊ साठे को भारत रत्न देने की मांग की है. उनका कहना है कि अण्णा भाऊ ने अपनी लेखनी के माध्यम से समाज को जागरूक किया और सामाजिक न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया. आइए, जानते हैं कि कौन थे अण्णा भाऊ साठे और क्यों उन्हें भारत रत्न देने की मांग उठाई गई है.
अण्णा भाऊ साठे का जीवन परिचय
अण्णा भाऊ साठे का पूरा नाम डॉ. तुकाराम भाऊराव साठे था. उनका जन्म 1 अगस्त 1920 को महाराष्ट्र के सांगली जिले के वालवा तालुका के वटेगांव गांव में हुआ था. वह एक गरीब दलित परिवार में पैदा हुए थे और बचपन से ही जातिगत भेदभाव का सामना किया. इसी कारण उन्होंने केवल डेढ़ दिन स्कूल में पढ़ाई की और फिर कभी स्कूल नहीं गए.
परिवार और विवाह
अण्णा भाऊ साठे ने दो बार शादी की थी. उनकी पहली पत्नी का नाम कोंडाबाई साठे और दूसरी पत्नी का नाम जयवंता साठे था. उनके तीन बच्चे थे - मधुकर, शांता, और शकुंतला.
कम्युनिस्ट विचारधारा और सामाजिक संघर्ष
अण्णा भाऊ साठे (Anna Bhau Sathe Life Story) का झुकाव शुरू से ही कम्युनिस्ट विचारधारा की ओर था. उन्होंने दलितों के साथ होने वाले सामाजिक भेदभाव को देखकर कम्युनिस्ट विचारधारा को अपनाया और इसके खिलाफ अपनी लेखनी का प्रयोग किया. उन्होंने 1944 में रेड फ्लैग परफॉर्मिंग ट्रूप की स्थापना की, जिसमें शाहिर दत्ता गावंकर और अमर शेख ने उनका साथ दिया.
स्वतंत्रता संग्राम और समाज सुधार
15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हुआ तो अगले ही दिन यानी 16 अगस्त 1947 को उन्होंने इसके खिलाफ मुंबई में मार्च निकाला. उनका मानना था कि देश पर सवर्णों का राज होगा और यह उन्हें स्वीकार नहीं था. उन्होंने नारा दिया, "यह आजादी झूठी है, देश की जनता भूखी है." उन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की सांस्कृतिक शाखा और इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन के माध्यम से संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन में भी भाग लिया.
साहित्यिक योगदान
अण्णा भाऊ साठे ने मराठी में 35 उपन्यास, 10 पटकथाएं, 10 गाथाएं और 24 लघु कथाएं लिखी थीं. उन्होंने रूस पर एक यात्रा वृतांत भी लिखा था. उनके उपन्यास "फकीरा" को महाराष्ट्र राज्य का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास का पुरस्कार मिला था. उनकी शॉर्ट स्टोरी कई भारतीय और गैर-भारतीय भाषाओं में अनुदूति की गई हैं.
डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर से प्रेरणा
अण्णा भाऊ साठे डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर से काफी प्रभावित थे. उन्होंने अपनी कहानियों में दलितों और श्रमिकों के जीवन के अनुभवों को प्रकट किया और सामाजिक न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने कहा था, "पृथ्वी शेषनाग के सिर पर नहीं, बल्कि दलितों और श्रमिकों की हथेलियों पर है."
रूस की यात्रा और प्रभाव
अण्णा भाऊ साठे ने अपने जीवन में कम से कम एक बार सोवियत संघ की यात्रा करने का सपना देखा था. उन्हें यह मौका मिला और उन्होंने मॉस्को में मराठी में भाषण दिया. उनके विचारों और साहित्य का रूस की जनता और वहां के चिंतकों पर गहरा प्रभाव पड़ा था.
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