Space ki Duniya: ISS पर हर 90 मिनट में होता है दिन और रात, वहां ऐसे मैनेज किया जाता है समय

भारत के शुभांशु शुक्ला ISS पर पहुंचने वाले पहले भारतीय बनाए गए हैं. वहां, हर 90 मिनट में सूर्योदय और सूर्यास्त होता है. पढ़ें रोचक खबर…

भारत के शुभांशु शुक्ला ISS पर पहुंचने वाले पहले भारतीय बनाए गए हैं. वहां, हर 90 मिनट में सूर्योदय और सूर्यास्त होता है. पढ़ें रोचक खबर…

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Jalaj Kumar Mishra
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Day and Night in every 90 Minutes in ISS Know Space ki duniya

ISS (NASA)

इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आईएसएस) धरती से करीब 400 किलोमीटर ऊपर स्थित एक विशाल लैब है. ये अमेरिका, रूस, जापाना और कनाडा की संयुक्त परियोजना है. इसकी स्पीड 28,000 किलोमीटर प्रति घंटे इसकी रफ्तार है, जिस वजह से महज 90 मिनट में ये धरती का पूरा एक चक्कर कर लेती है. भारत के शुभांशु शुक्ला इसी आईएसएस पर हैं. वे भारत के पहले व्यक्ति हैं, जिसने आईएसएस पर कदम रखा है.

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चूंकि आईसएस की स्पीड 28 हजार किमी प्रति घंटा है और 90 मिनट में ही ये पृथ्वी का एक चक्कर पूरा कर लेता है, इस वजह से आईएसएस पर हर डेढ़ घंटे में सूर्योदय और सूर्यास्त होता रहता है. ये ठीक उसी ट्रेन की तरह है, जो पूरी धरती के चारों ओर चक्कर काट रही है लेकिन बहुत तेज स्पीड में. रात के वक्त आईएसएस जब धरती की छाया में होता है तो धरती के शहरों की लाइटें तारों की तरह चमकती हैं.

ISS पर कैसे देखा जाता है समय? 

आईएसएस पर चूंकि हर 90 मिनट में दिन और रात होता रहता है. वहां कोई स्थायी दिन और रात की साइकिल नहीं होती. जैसे धरती पर होता है. आईएसएस यूटीसी के अनुसार चलती है. क्रू मेंबर्स को एक फिक्स शेड्यूल दिया जाता है, जैसे- सोने का, उठने का, खाने का और काम करने का. दिन और रात का एहसास आर्टिफिशियल लाइटिंग बनाई जाती है. अंतरिक्ष यात्री को स्पेशल घड़ियां और अलार्म सिस्टम दिया जाता है, जिससे उनकी बायोलॉजिकल घड़ी सही से काम करे. टेक्निकल रूप से इसे डिजाइन किया जाता है, जिससे मन और शरीर के संतुलन में गड़बड़ी न आए.

शुभांशु शुक्ला के लिए क्यों खास है ये अनुभव?

भारत के शुभांशु शुक्ला अब उन चुनिंदा अंतरिक्ष यात्री बन गए हैं, जिन्हें धरती से बाहर जाकर सूरज और पृथ्वी को देखने का मौका मिला. ये अनुभव सिर्फ वैज्ञानिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि मानवता और आत्मचिंतन से जुड़ा हुआ है. अंतरिक्ष से धरती को देखो तो एक नीली-हरी चमकदार गेंद जान पड़ती है. ऊपर से देखने पर सीमाएं नहीं दिखती. मनोवैज्ञानिक रूप से ये अनुभव दिमाग और सोच को बदल देती है. 

 

 

 

space ISS Shubhanshu Shukla
      
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