निर्देशन मुझ पर एक तरह से थोपा गया था : रणदीप हुड्डा

निर्देशन मुझ पर एक तरह से थोपा गया था : रणदीप हुड्डा

निर्देशन मुझ पर एक तरह से थोपा गया था : रणदीप हुड्डा

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IANS
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Randeep Hooda: Direction was kind of thrust upon me

(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

मुंबई, 30 जुलाई (आईएएनएस)। बॉलीवुड अभिनेता रणदीप हुड्डा ने अपने निर्देशन की शुरुआत साल 2024 में बायोपिक फिल्म स्वातंत्र्य वीर सावरकर से की थी। उन्होंने बताया कि निर्देशन उनकी पहली पसंद नहीं थी। लेकिन जब अभिनेता ने डायरेक्शन में कदम रखा, तो उन्हें पता चला कि उनके पास इसको लेकर गहरी समझ और स्वाभाविक प्रतिभा है।

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निर्देशन में हाथ आजमाने की प्रेरणा के बारे में अभिनेता ने आईएएनएस को बताया, कुछ लोग जन्म से ही महान होते हैं, कुछ लोग महान बन जाते हैं, और कुछ लोगों पर महानता थोप दी जाती है। इसी तरह निर्देशन भी मुझ पर थोपा गया था।

सरबजीत फेम अभिनेता ने बताया कि निर्देशक बनने के बारे में उन्होंने इतनी जल्दी नहीं सोचा था।

रणदीप ने बताया, डायरेक्शन मैंने सोचा नहीं था कि करूंगा, लेकिन जब मैंने इसे किया, तो पता चला कि ये काम मुझे अच्छे से आता है। मेरे अंदर स्क्रिप्ट और फिल्म बनाने की समझ पहले से थी, जो मैंने एक्टिंग करते हुए सीखी थी।

अभिनेता को लगता है कि वो एक शानदार सहायक निर्देशक हैं।

रणदीप का कहना है, मैं अपनी हर फिल्म में एक बढ़िया असिस्टेंट डायरेक्टर बन जाता हूं। मतलब कि मैं अपनी हर फिल्म में सब चीजों पर ध्यान रखता था, जो कि एक सहायक निर्देशक करता है। भले ही यह मेरा काम नहीं है, लेकिन मुझे हर चीज की जानकारी रहती है। मेरी यही जागरूकता मेरे निर्देशन में बहुत काम आई थी। उन्होंने कहा कि अब जब डायरेक्शन का अनुभव ले लिया है, तो आगे भी ऐसा जरूर करेंगे।

स्वातंत्र्य वीर सावरकर फिल्म विनायक दामोदर सावरकर के जीवन पर आधारित है। इस फिल्म को रणदीप हुड्डा ने डायरेक्ट, सह-लेखन और सह-निर्माण भी किया है, साथ ही उन्होंने इस फिल्म में सावरकर की मुख्य भूमिका भी निभाई है। फिल्म में सावरकर के जीवन की महत्वपूर्ण घटना को विस्तार से दिखाया गया है।

रणदीप हुड्डा से जब पूछा गया कि अब तक का उनका सबसे बड़ा क्रिएटिव (रचनात्मक) रिस्क क्या रहा है?

उन्होंने कहा, अगर आप क्रिएटिविटी करते हैं, तो रिस्क तो फिर होगा। लेकिन जब आप कोई चीज दिल से बनाते हैं, तो आप खुद को सबके सामने खोल देते हैं, और वो एक नाज़ुक स्थिति होती है। जैसे ज़िंदगी में हमें कभी पूरा भरोसा नहीं होता कि चीजें कैसी बन रही हैं, वैसे ही कला में भी नहीं होता। और मुझे लगता है कि यही सबसे बड़ा रिस्क है। अगर आप ऐसे मौके नहीं लेते और अपने पुराने काम से आगे नहीं बढ़ते, तो फिर चीजें बोरिंग हो जाती हैं, आपके लिए भी और दर्शकों के लिए भी।”

--आईएएनएस

एनएस/एएस

डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.

      
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