मुजफ्फर अली ने सुनाई ‘उमराव जान’ कॉस्ट्यूम कलेक्शन की कहानी, बोले- ' कपड़ों में रचा बसा था इतिहास'

मुजफ्फर अली ने सुनाई ‘उमराव जान’ कॉस्ट्यूम कलेक्शन की कहानी, बोले- ' कपड़ों में रचा बसा था इतिहास'

मुजफ्फर अली ने सुनाई ‘उमराव जान’ कॉस्ट्यूम कलेक्शन की कहानी, बोले- ' कपड़ों में रचा बसा था इतिहास'

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IANS
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Muzaffar Ali

(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

मुंबई, 22 जून (आईएएनएस)। मशहूर फिल्म निर्माता-निर्देशक मुजफ्फर अली की साल 1981 में रिलीज कल्ट क्लासिक ‘उमराव जान’ एक बार फिर से सिनेमाघरों में दस्तक देने को तैयार है। अपनी शानदार कहानी, म्यूजिक के साथ-साथ 19वीं सदी के लखनऊ की शाही वेशभूषा के लिए मशहूर फिल्म को लेकर मुजफ्फर अली ने बात की।

समाचार एजेंसी आईएएनएस से बातचीत में मुजफ्फर अली ने बताया कि फिल्म के कपड़े बाजार से नहीं, बल्कि लोगों के घरों और पुरानी अलमारियों से जुटाए गए थे। इन कपड़ों में इतिहास की झलक के साथ बुनकरों के काम की खूबसूरती भी शामिल थी।

उन्होंने कहा कि फिल्म की भाषा सिर्फ डायलॉग तक सीमित नहीं थी, बल्कि इसे किरदारों के कपड़ों के जरिए भी व्यक्त किया गया। प्रत्येक किरदार की वेशभूषा कहानी कहने में अहम थी, जो उस दौर के हस्तनिर्मित, नेचुरल कलर्स से तैयार हुई थीं।

मुजफ्फर ने अफसोस जताया कि आज के समय में मार्केट में बिकने वाले कपड़ों ने उस दौर को पीछे छोड़ दिया जब लोग अपने कपड़े खुद बनाते, रंगते और पहनते थे। उन्होंने कहा, “फिल्म का हर सीन कपड़ों की भाषा से सजा है। ये कपड़े लोगों के घरों और पुरानी जगहों से कलेक्ट किए गए थे।

उस समय प्राकृतिक रंगों और हस्तनिर्मित बुनाई का काम होता था, न कि केमिकल युक्त कलर्स या नायलॉन का। इन कपड़ों को बनाने में समय और मेहनत लगती थी, लेकिन यह शानदार कला के रूप में सामने आती थी।

उन्होंने आगे कहा, “उस दौर में कपड़े, संगीत या कोई भी चीज बनाने में लोग पूरी तरह डूब जाते थे। आज के समय में वह चीजें नहीं मिलतीं, कह सकते हैं कि वह समय अब जा चुका है।”

‘उमराव जान’ की रिलीज के तीन दशक बाद, यह फिल्म 27 जून को 4के रिस्टोर्ड वर्जन में फिर से सिनेमाघरों में रिलीज के लिए तैयार है।

--आईएएनएस

एमटी/केआर

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