मंच पर न बैठने का फैसला संगठन को मजबूत करने की दिशा में कदम: दिग्विजय सिंह

मंच पर न बैठने का फैसला संगठन को मजबूत करने की दिशा में कदम: दिग्विजय सिंह

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IANS
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Lucknow: Congress Candidatee For Rajgarh Lok Sabha Constituency Digvijay Singh addresses a press conference at Uttar Pradesh Congress Committee headquarter

(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

भोपाल, 6 जून (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह पिछले कुछ दिनों से पार्टी के मंच पर नहीं बैठ रहे हैं। उन्होंने साफ कर दिया है कि मंच पर नहीं बैठने का फैसला संगठन को विचारधारात्मक रूप से सशक्त करने की सोच को लेकर उठाया गया कदम है।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने पिछले दिनों मंच पर न बैठने का ऐलान किया था। उसके बाद आयोजित कार्यक्रमों में वे मंच पर नहीं बैठे। इसको लेकर कई सवाल उठे, सियासी गलियारों में चर्चा है। अब उन्होंने इस पर अपनी राय जाहिर की है। सोशल मीडिया पर दिग्विजय सिंह ने मंच पर न बैठने को लेकर लिखा है, मेरा मंच पर न बैठने का निर्णय केवल व्यक्तिगत विनम्रता नहीं बल्कि संगठन को विचारधारात्मक रूप से सशक्त करने की सोच को लेकर उठाया गया कदम है। यह निर्णय कांग्रेस की मूल विचारधारा, समता, अनुशासन और सेवा का प्रतीक है। आज कांग्रेस का कार्य करते हुए कार्यकर्ताओं को नया विश्वास और हौसला चाहिए। इसके लिए संगठन में जितनी सादगी होगी, उतनी सुदृढ़ता आएगी।

उन्होंने कहा, मैंने मध्य प्रदेश में 2018 में पंगत में संगत और 2023 में समन्वय यात्रा के दौरान भी मंच से परहेज किया, जिसका एकमात्र उद्देश्य रहा है कि कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच कोई दूरी न रहे और भेदभाव पैदा करने वालों को सामंजस्य की सीख दी जा सके। दिग्विजय सिंह ने राहुल गांधी की चर्चा करते हुए कहा, खुद राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रहते हुए ऐसी मिसाल प्रस्तुत कर चुके हैं। 17 मार्च 2018 को दिल्ली में तीन दिवसीय कांग्रेस का पूर्ण राष्ट्रीय अधिवेशन इस बात का गवाह रहा है। उस अधिवेशन में राहुल, सोनिया गांधी सहित सभी वरिष्ठ नेता और कार्यकर्ता मंच से नीचे दीर्घा में ही बैठे थे। यहां तक कि स्वागत-सत्कार भी मंच से नीचे उनके बैठने के स्थान पर ही हुआ।

उन्होंने कहा, मैं समझता हूं, वह फैसला कांग्रेस पार्टी का सबसे सफलतम प्रयोग था। कांग्रेस अपनी शुरुआत से ही ऐसे उदाहरणों से भरी हुई है। महात्मा गांधी से लेकर राहुल गांधी तक अनेक मौकों पर नेताओं का जनता के बीच में रहना और उनके साथ बैठना मिसाल बनता रहा है। दिग्विजय सिंह ने जिस दिन मंच पर न बैठने का फैसला लिया था, उसका जिक्र करते हुए कहा कि 28 अप्रैल को ग्वालियर में कांग्रेस पार्टी के कार्यक्रमों में मंच पर नहीं बैठने का निर्णय न तो मेरे लिए नया है और न ही कांग्रेस पार्टी के लिए। कांग्रेस पार्टी सदैव कार्यकर्ताओं की पार्टी रही है। केंद्र या राज्यों में जब-जब भी कांग्रेस पार्टी सत्ता में रही है, तो वह कार्यकर्ताओं के ही बल पर रही है। संगठन के बल पर रही है। जब नेतृत्व को कार्यकर्ताओं का समर्थन मिला है, तभी पार्टी सत्ता में आई है। लेकिन पिछले कुछ सालों में मैंने अनुभव किया है कि जिन्हें मंच मिलना चाहिए, वे उससे वंचित रह जाते हैं और नेताओं के समर्थक मंच पर अतिक्रमण कर लेते हैं। जिससे बेवजह मंच पर भीड़ होती है, अव्यवस्था फैलती है और कई बार मंच टूटने जैसी अप्रिय घटनाएं भी हो जाती हैं।

--आईएएनएस

एसएनपी/डीएससी

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