क्या चुनाव के बाद भी टेंट में ही रहेंगे भगवान श्री राम, शिवसेना ने कहा- भगवान का वनवास खत्म होने की संभावना नहीं
शिवसेना ने कहा कि चुनाव के बाद मंदिर का मामला देखेंगे, ऐसा कहने का मतलब सरयू में जिन्होंने रक्त और बलिदान दिया, ये उनके बलिदान को नकारने के समान है.
नई दिल्ली:
शिवसेना ने राम मंदिर के मुद्दे पर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर एक बार फिर से हमला कर दिया है. शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के जरिए बीजेपी पर एक के बाद एक ताबड़तोड़ हमले किए. शिवसेना ने कहा कि, ''अयोध्या के राम मंदिर के बारे में मोदी सरकार टालमटोल कर रही है. अब विश्व हिंदू परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी राम मंदिर के मामले में मुंह छिपाना शुरू कर दिया है. केंद्र में किसी की भी सरकार हो लोकसभा चुनाव के बाद ‘संघ’ राम मंदिर का निर्माण शुरू करेगा, ऐसा सरसंघचालक मोहनराव भागवत ने घोषणा की है. दो दिन पहले विश्व हिंदू परिषद ने इसी तरह की बात रखी. इसका अर्थ ऐसा है कि राम मंदिर के मामले को हिंदुत्ववादी संगठनों ने ही लपेटकर रखा हुआ है. 2019 के चुनाव में राम मंदिर का मुद्दा मोदी परिवार के लिए मुसीबत न बन जाए इसीलिए संघ परिवार ने यह रुख अपनाया है क्या? राम मंदिर राजनीतिक मुद्दा न बने तथा मोदी परिवार को लोगों के सामने जाते समय मुश्किलें पैदा न हों, ऐसा अब दिखाई देता है. चुनाव के बाद मंदिर का मामला देखेंगे, मतलब क्या देखेंगे? मोदी सरकार 2019 के पहले अध्यादेश निकालकर अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण शुरू करे, ऐसी श्री मोहनराव भागवत की ही मांग थी.
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विश्व हिंदू परिषद ने देशभर में जो सभाएं धर्म संसद के बैनर तले कीं, उसमें की प्रमुख मांग भी अयोध्या में राम मंदिर के लिए अध्यादेश लाने की थी. धर्म संसद का ऐसा भी दबाव था कि मंदिर निर्माण की तारीख बताओ. धर्म संसद में तो मंदिर मामले में आंदोलन की तैयारी शुरू थी और उसके लिए देशभर में हुंकार सभाओं का प्रयोजन किया गया. विशेष रूप से हमारे अयोध्या में जाकर लौटते ही इन धर्म सभाओं तथा हुंकार सभाओं का जोर बढ़ गया और शिवसेना अयोध्या का सवाल हल करने के लिए आंदोलन कर रही है, ऐसा दिखने पर हुंकार वालों की बेचैनी बढ़ने लगी. हमने उस समय भी कहा था और आज भी कह रहे हैं. राम मंदिर निर्माण के श्रेय में हमें नहीं पड़ना है. शत-प्रतिशत श्रेय आप लो. मगर एक बार प्रभु श्रीराम का वनवास खत्म करो.
2019 के चुनाव में राम मंदिर का विषय शेष नहीं बचना चाहिए, यही हमारा पक्ष था. इसका मतलब तलवार को ‘म्यान’ में डालकर मंदिर का सवाल लटकाए रखना नहीं होता. राम मंदिर की राजनीति चुनाव में नहीं चाहिए इसीलिए चुनाव के बाद देखेंगे, ऐसा संघ परिवार का कहना है लेकिन 25-30 वर्षों तक मंदिर मुद्दे का इस्तेमाल चुनावी मुद्दे के रूप में ही हुआ इसीलिए ‘हम’ सब यहां तक पहुंचे. राम मंदिर की राजनीति करने के कारण ही हम आज शिखर पर विराजमान हुए हैं. इसलिए अब राजनीति नहीं चाहिए, यह नया जुमला है क्या? 2019 के चुनाव में बहुमत मिलेगा, ऐसा नहीं लगता. इसलिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के नीतीश कुमार और रामविलास पासवान की राम मंदिर के बारे में निश्चित तौर पर भूमिका क्या है? उन्हें राम मंदिर चाहिए या नहीं? इसे अभी समझना होगा. ये दोनों नेता ‘बाबरी’वादी हैं तथा पासवान ने मंदिर के मामले में हमेशा विरोधी भूमिका अपनाई इसीलिए आज भाजपा के पास बहुमत है. इसलिए आज ही इस मामले पर निर्णय हो जाए, यह हमारी मांग है ही.
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सरकार विवादित न होनेवाली 62 एकड़ जमीन का मामला कोर्ट के पास ले गई है. यह जमीन विवादित न होने से राम जन्मभूमि न्यास के पास उसे देने की अनुमति कोर्ट से मांगी गई है. मूलत: इस जमीन का अधिग्रहण सरकार ने किया है और ये जगह केंद्र के पास ही है. ऐसे में कोर्ट से न पूछते हुए इस 62 एकड़ जमीन का कब्जा राम जन्मभूमि न्यास को देने में आपत्ति नहीं होनी चाहिए थी लेकिन सरकार ने उसके लिए कोर्ट से अनुमति मांगी है. कुल मिलाकर, प्रभु श्रीराम का वनवास खत्म करने की संभावना नहीं दिखाई दे रही है. विश्व हिंदू परिषद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मंदिर का विषय टालें, ये उनकी मजबूरी होगी या अंदरूनी बात. आखिरकार अपने इंतजाम के लिए चूल्हे अलग हों फिर भी एक-दूसरे से तय कर ही उनके विषय पीछे या आगे किए जाते हैं. कोलकाता में अमित शाह की रथयात्रा रोकी इसलिए वहां हिंदुत्व का हुंकार दिया जाता है लेकिन अयोध्या के राम मंदिर का विषय मात्र तालाबंद किया जाता है. आखिरकार, हिंदुत्व से लेकर श्रीराम तक सारी साजिश अपने इंतजाम के लिए की जाती है. चुनाव के बाद मंदिर का मामला देखेंगे, ऐसा कहने का मतलब सरयू में जिन्होंने रक्त और बलिदान दिया, ये उनके बलिदान को नकारने के समान है.
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