मधुर भंडारकर को कैसे आया था फिल्म ‘कैलेंडर गर्ल्स’ बनाने का आइडिया?

मधुर भंडारकर को कैसे आया था फिल्म ‘कैलेंडर गर्ल्स’ बनाने का आइडिया?

मधुर भंडारकर को कैसे आया था फिल्म ‘कैलेंडर गर्ल्स’ बनाने का आइडिया?

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IANS
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Madhur Bhandarkar ,

(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

मुंबई, 25 अगस्त (आईएएनएस)। मधुर भंडारकर, एक ऐसे फिल्म निर्माता हैं जो अपनी फिल्मों में कठोर और यथार्थवादी कहानियों को दिखाने के लिए जाने जाते हैं। उनकी कहानियों की खासियत यह है कि वे अक्सर वास्तविक जीवन की घटनाओं से प्रेरित होती हैं और समाज के विभिन्न क्षेत्रों के स्याह पहलुओं को उजागर करती हैं।

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उन्होंने चांदनी बार, पेज-3, फैशन, और ट्रैफिक सिग्नल जैसी फिल्मों का निर्माण किया है। 26 अगस्त 1968 को जन्मे मधुर भंडारकर को फिल्म चांदनी बार के लिए सामाजिक मुद्दे पर आधारित बेस्ट फिल्म का नेशनल अवॉर्ड मिला था। उन्हें फिल्म जगत में उल्लेखनीय योगदान के लिए पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।

फिल्में बनाने से पहले वो एक वीडियो पार्लर में कैसेट बेचने का काम करते थे। यहीं से ही मधुर भंडारकर के मन में फिल्में बनाने का सपना जगा। वो दिन रात फिल्में देखते थे। मधुर भंडारकर बांद्रा के एक सिनेमा हॉल में फिल्में देखने जाते थे, उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया कि अगर उन्हें फिल्म पसंद आ जाती थी तो वो उसके लगातार चारों शो देख डालते थे।

मधुर भंडारकर ने कहा था की फिल्में समाज में जो कुछ होता है, उसी का प्रतिबिंब होती हैं। वह कड़वे सच को दिखाने से पीछे नहीं हटते। उन्होंने खुलासा किया था कि फिल्म चांदनी बार में उन्होंने रियल बार डांसर्स की जिंदगी को दिखाया है। इसके लिए उन्होंने बार डांसर्स की जिंदगी को करीब से देखा था।

यही नहीं, फिल्म हीरोइन की कहानी फिल्म जगत की सच्ची घटनाओं पर आधारित थी। उसका 70 फीसदी हिस्सा उसी पर बेस्ड था। वो अपनी फिल्मों में सच्चाई दिखाने के लिए जाने जाते हैं।

इसी तरह फिल्म ‘कैलेंडर गर्ल्स’ की भी कहानी मॉडल्स की रियल लाइफ पर आधारित थी। यह फिल्म 2015 में आई थी। इसका आईडिया भी उन्हें अपने ऑफिस में आया, जब कर्मचारी ने उनसे पुराने कैलेंडर्स के बारे में पूछा कि इनका क्या करना है।

दरअसल, उद्योगपति विजय माल्या उन्हें कैलेंडर भेजा करते थे। इसमें मॉडल्स की तस्वीरें होती थीं। इनके बारे में जब कर्मचारी ने पूछा तब मधुर भंडारकर को इन मॉडल्स की लाइफ पर फिल्म बनाने का उपाय सूझा।

जब उन्होंने रिसर्च किया तो पाया कि ऐसे फोटोशूट में शामिल होने वाली 99 फीसदी मॉडल्स एक कैलेंडर शूट के बाद गुमनाम हो जाती थीं। सिर्फ 1 प्रतिशत ही मॉडलिंग के क्षेत्र में सफल हो पाती थीं। इसके बाद उन्होंने इस पर फिल्म बनाई, जो पर्दे पर तो नहीं चली, लेकिन फिल्म जगत की एक और सच्चाई लोगों के सामने जरूर आई।

--आईएएनएस

जेपी/जीकेटी

डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.

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