Gen Z शादी के बाद नहीं बदलते वाइफ का सरनेम, जानिए इसके पीछे की वजह

Wife Surname: भारतीय समाज में लंबे टाइम से परंपरा रही है कि शादी के बाद वाइफ अपने मायके का सरनेम छोड़कर पति का सरनेम अपनाती है. यह रीति लंबे समय से चली आ रही है.

Wife Surname: भारतीय समाज में लंबे टाइम से परंपरा रही है कि शादी के बाद वाइफ अपने मायके का सरनेम छोड़कर पति का सरनेम अपनाती है. यह रीति लंबे समय से चली आ रही है.

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Nidhi Sharma
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Wife Surname: शादी के बाद वाइफ का सरनेम बदलना पहले काफी नॉर्मल बात होती थी, लेकिन आज की जेनरेशन इसे इतना जरूरी नहीं समझती है. दरअसल, हमारे भारतीय समाज में लंबे टाइम से ये परंपरा रही है कि शादी के बाद वाइफ अपने मायके का सरनेम छोड़कर पति का सरनेम अपनाती है. इसे शादी का हिस्सा और सामाजिक पहचान का तरीका माना जाता था. लेकिन अब वक्त तेजी बदल रहा है. खासकर Gen Z और Millennials इस पुराने नियम को चुनौती दे रहे हैं. आज की लड़कियां शादी के बाद अपने सरनेम नहीं बदलती है. आइए आपको इसके पीछे का कारण बताते हैं. 

पहली वजह

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दरअसल, आज के दौर में हर शख्स के पास कई तरह के दस्तावेज होते हैं. जैसे बर्थ सर्टिफिकेट, आधार कार्ड, पासपोर्ट, पैन कार्ड, बैंक अकाउंट, नौकरी के कागजात, बीमा पॉलिसी और सोशल मीडिया प्रोफाइल. वहीं शादी के बाद सरनेम बदलने के बाद आपक इन सभी जगहों को अपडेट करवाना होगा.  जो कि एक टाइम टेकिंग और कॉम्पलिकेटेड प्रॉसेस है. 

बैंक अकाउंट और पैन कार्ड में नाम बदलने पर कई बार ट्रांजैक्शन में दिक्कतें आ सकती हैं.

पासपोर्ट या वीजा का प्रॉसेस लंबा और खर्चीला हो जाता है.

नौकरी के कागज़ात और डिग्री सर्टिफिकेट में नाम बदलने पर वेरिफिकेशन में अड़चनें आती हैं.

इन सभी झंझटों से बचने के लिए नई पीढ़ी मानती है कि सरनेम वही रहने दिया जाए जो पहले से दर्ज है. क्योंकि ट्रेडिशन के नाम पर और भावनाओं में बहकर नाम बदलने से आगे कभी न कभी कोई न कोई दिक्कत जरूर आएगी. 

नई सोच और पहचान

आज के दौर के लोगों की सोच पहले से कहीं ज्यादा इंडिपेंडेंट और प्रैक्टिकल है. उनका मानना है कि शादी के बाद सिर्फ रिश्ते बदलते हैं, लेकिन इंसान की पहचान वहीं रहती है. 

वहीं बहुत सी महिलाएं चाहती हैं कि उनकी पहचान उनके करियर और अचीवमेंट से हो ना कि पति के सरनेम से. 

वहीं मर्द अब इस बात पर जोर नहीं देते कि महिलाओं को पति का सरनेम अपनाना चाहिए.

कुछ कपल्स तो ये तक मानते हैं कि पिता ने बड़ी ही मोहब्बत से बेटी का नाम रखा होगा, इसलिए उनके जज्बातों की भी कद्र की जानी चाहिए.

अगर पहचान ही बदलनी हो तो दोनों मिलकर नया कॉमन सरनेम चुन सकते हैं.

अहम बातें

शादी के बाद सरनेम बदलना या न बदलना पूरी तरह से व्यक्तिगत निर्णय है. नई पीढ़ी मानती है कि रिश्ते निभाने के लिए नाम बदलना जरूरी नहीं है. जहां एक तरफ डॉक्यूमेंट्स का बोझ और झंझट है, वहीं दूसरी ओर नई सोच और पर्सनल आइडेंटिटी को अहमियत दी जा रही है. यही वजह है कि आज की शादीशुदा महिलाएं और कई बार पुरुष भी पुरानी परंपरा से अलग होकर वाइफ की ऑरिजनल पहचान को बरकरार रख रहे हैं.

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