गुड़ी पड़वा 2025 महाराष्ट्र के मुख्य त्योहारों में से एक है. ये चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन मनाया जाता है. यह त्योहार 30 मार्च को मनाया जाएगा. इस त्योहार को लोग बड़े ही उत्साह से मनाते है. यह त्योहार नई शुरुआत का प्रतीक होता है. इस दिन घरों में कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं. गुड़ी का मतलब होता है- विजय पताका, जबकि ‘युग’ और ‘आदि’ शब्दों से मिलकर बना है ‘युगादि’.
क्या है धार्मिक महत्व
धार्मिक मान्यता के अनुसार, इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था. इसलिए इसे ‘नवसंवत्सर’ भी कहते हैं. इसके अलावा महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी तिथि पर सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीने और वर्ष की गणना करते हुए ‘पंचांग’ भी रचा था. मान्यता है कि बिना कुछ खाए-पीए यह प्रसाद जो भी व्यक्ति ग्रहण करता है, वह सदैव निरोगी रहता है, उससे बीमारियां दूर रहती हैं.
स्वास्थ्य के लिए महत्व
इस त्योहार के स्वास्थ्य के लिहाज से भी कई महत्व है. इस दिन आंध्र प्रदेश में पच्चड़ी, महाराष्ट्र में पूरन पोली जैसे व्यंजन इस पर्व के लिए खासतौर पर बनाए जाते हैं. वहीं लोगों का मानना है कि खाली पेट पच्चड़ी को खाने से चर्म रोग दूर होते ही हैं. वहीं पूरन पोली को बनाने में गुड़, नीम के फूल, इमली और आम का इस्तेमाल करते हैं, यह सभी हमारे शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं.
गुड़ी का महत्व
गुड़ी पड़वा की सबसे खास परंपरा ‘गुड़ी’ बनाने की होती है. इसे घर के दरवाजे या खिड़की पर लगाया जाता है. इसे बनाने के लिए लकड़ी या बांस की छड़ी ली जाती है. इसके ऊपरी सिरे पर तांबे या चांदी का कलश उल्टा रख दिया जाता है. इसके बाद इस पर चमकदार बॉर्डर वाली धोती या साड़ी बांधी जाती है. इसे नीम या आम के पत्तों और फूलों की माला से सजाया जाता है. हालांकि कुछ लोग गुड़ और शक्कर की माला भी लगाते हैं. गुड़ी को लगाने का धार्मिक महत्व यह है कि यह बुरी शक्तियों को दूर करता है और घर में सुख-समृद्धि लाता है. यही कारण है कि महाराष्ट्र के सभी घरों में गुड़ी लगाई जाती है.
ऐसे करें तैयारी
गुड़ी पड़वा के दिन लोग घर की साफ-सफाई करने के बाद रंगोली, तोरण द्वार बनाकर घर को सजाते हैं. अपने घर के मुख्य द्वार के आगे एक गुड़ी यानि झंडा रखते हैं. घर में किसी बर्तन पर स्वास्तिक चिंह बनाकर उसको रेशम के कपड़े में लपेट कर रखा जाता है. प्रात:काल के समय सूर्यदेव की आराधना के साथ ही सुंदरकांड, रामरक्षा स्रोत और देवी भगवती के मंत्रों का जाप करके पूजा करने का चलन है.
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